नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार पीएम की शपथ लेकर अपनी पहली विदेश यात्रा पर रवाना हो गये हैं. जी-7 में भाग लेने के लिए वह इटली गये हैं. 9 जून को हुए शपथ ग्रहण में न तो पहले वाला जोश दिखा और न ही उत्साह. आखिर ऐसा क्यों न हो तीसरी बार सत्तासीन हुई मोदी सरकार टीडीपी और जेडीयू की बैसाखी पर है.
नीतीश-नायडू बना सकते हैं दबाव
दोनों दलों के नेता चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार राजनीति के मझे खिलाड़ी हैं लिहाजा अपना हित साधने के लिए कभी भी बड़ा दांव चल सकते हैं. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए केंद्र पर काफी दिनों से दबाव है. खबर है कि आंध्र प्रदेश भी ऐसी ही मांग उठा सकता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार इन दोनों दलों के नेताओं को संतुष्ट करने के लिए इन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दे सकती है. जानकार बताते हैं कि मोदी और शाह की जोड़ी ने पहले ही ऐसी व्यवस्था कर दी है कि किसी भी सूरत में इन राज्यों की ये मुराद पूरी नहीं हो पाएगी.
पीएम मोदी ने बदल दी थी व्यवस्था
दरअसल 2014 में केंद्र में सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी ने योजना आयोग को इतिहास के पन्नों में समेट दिया था. साथ ही विशेष राज्य का दर्जा देने वाले प्रावधान भी खत्म कर दिये थे. 14 वें वित्त आयोग ने जो रिपोर्ट दी उसमें विशेष और सामान्य श्रेणी के राज्यों में कोई फर्क ही नहीं किया गया यानी कि अब किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल पाएगा.
1 अप्रैल 2015 से करों में राज्य की हिस्सेदारी को 10 फीसद बढ़ा दिया गया. पहले 32 फीसद हिस्सा मिलता था उसे 42 फीसद कर दिया गया. साथ में एक और प्रावधान किया गया कि यदि कोई राज्य बहुत कमजोर है और संसाधनों की कमी से जूझ रहा है तो उसे राजस्व घाटा अनुदान दिया जाएगा.
किसी राज्य को नहीं मिलेगा विशेष दर्जा
कहने का मतलब यह कि उत्तर पूर्वी राज्यों असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम व सिक्कम के साथ उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों को विशेष राज्य का जो दर्जा पहले मिल गया वो मिल गया. अब किसी भी राज्य को विशेष दर्जा नहीं मिल पाएगा. मार्च 2015 तक लागू प्रावधान के अनुसार, स्पेशल स्टेटस वाले राज्यों में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए 90 फीसद वित्तीय मदद देता है जबकि राज्यों का योगदान केवल 10 फीसद तक होता था.
राज्यों की बढ़ा दी थी हिस्सेदारी
केंद्र का तर्क है कि 2014-15 तक राज्यों को 3.48 लाख करोड़ की हिस्सेदारी मिलती थी जो कि व्यवस्था परिवर्तन के बाद 2015-16 में 5.26 लाख करोड़ रुपये हो गया. नई व्यवस्था के तहत राज्यों की हिस्सेदारी में 1.78 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी हो गई. राज्यों की हिस्सादारी तय करने के लिए एक फार्मूला है जिसमें भौगोलिक आधार, वन क्षेत्र और राज्य में प्रति व्यक्ति आय जैसे विषयों को शामिल किया जाता है.
मोदी सरकार को इस बात का भी डर है कि नये सिरे से व्यवस्था परिवर्तन कर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया तो ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्य भी इसके लिए दबाव बनाएंगे. 16वें वित्त आयोग और नीति आयोग के जरिए व्यवस्था परिवर्तन की किसी भी तरह की कोशिश बर्रे के छत्ते में हाथ डालने जैसा होगा जिसके लिए मोदी सरकार कभी तैयार नहीं होगी.
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