Mayawati BSP Assembly Elections 2018 Performance: एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में गठबंधन ना करने का लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से सूद सहित हिसाब लेंगी बसपा सुप्रीमो मायावती

Mayawati BSP Assembly Elections 2018 Performance: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बुलाई विपक्षी दलों की बैठक में ना बीएसपी सुप्रीमो मायावती गईं और ना ही एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव गए. दोनों यूपी में एक साथ हैं और कांग्रेस को भाव देने के मूड में नहीं हैं. दोनों की चाहत थी कि कांग्रेस दूसरे राज्यों में चुनाव में उनको साथ ले पर वो बात बनी नहीं. यूपी में इन दोनों को कांग्रेस की जरूरत नहीं है और वहां कांग्रेस इनकी चिरौरी करने को मजबूर है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस बहुमत से पीछे रह गई है तो उसे बीएसपी के 6 और 2 विधायकों के समर्थन की जरूरत है. बहनजी ने कह भी दिया है कि बीजेपी को रोकने के लिए सपोर्ट करेंगे. विधायक तो बहनजी के पास छत्तीसगढ़ में भी 2 हैं लेकिन वहां कांग्रेस अकेले दो तिहाई बहुमत के पार है.

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Mayawati BSP Assembly Elections 2018 Performance: एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में गठबंधन ना करने का लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से सूद सहित हिसाब लेंगी बसपा सुप्रीमो मायावती

Aanchal Pandey

  • December 13, 2018 6:50 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं जो 2018 के आखिरी विधानसभा चुनाव हैं. इसके बाद सीधे 2019 के अप्रैल-मई में लोकसभा के चुनाव होंगे. उत्तर प्रदेश से बाहर बसपा के पांव मजबूत करने में जुटीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती उर्फ बहनजी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में गठबंधन से कांग्रेस के इनकार का बदला कहें या हिसाब, आम चुनाव में राहुल गांधी से सूद सहित लेंगी. इसकी एक झलक तो वो 10 दिसंबर को राहुल गांधी की अगुवाई में हुई प्रस्तावित महागठबंधन की बैठक में ना शामिल होकर दे चुकी हैं.

राजस्थान और मध्य प्रदेश में गठबंधन नहीं करने के बावजूद मायावती ने कांग्रेस को सपोर्ट करने का ऐलान किया है तो बहनजी की रणनीति ये है कि लोकसभा चुनाव में अखिलेश के साथ मिलकर इस बार यूपी में कांग्रेस को तभी अपने गठबंधन में घुसने देंगी जब वो महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी बीएसपी को कम से कम एक लोकसभा सीट लड़ने दे. यूपी चाहिए तो बाकी जगह साथ लो- ये मायावती और अखिलेश का बार्गेनिंग फॉर्मूला होगा जिस पर बात ना बनी तो उन्हें बहुत फर्क नहीं पड़ता.

अंकगणित को छोड़ दें तो प्रभाव क्षेत्र और प्रसार के लिहाज से मायावती इस समय देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी की नेता हैं. बीएसपी को यूपी विधानसभा चुनाव में सपा से ज्यादा वोट मिले थे पर सीट 19 ही बने जबकि सपा ने 47 विधायक निकाल लिए थे. अखिलेश की पार्टी सपा अब यूपी के बाहर महाराष्ट्र और एमपी में एक-एक विधायक वाली पार्टी है. मायावती की बीएसपी अब बीजेपी और कांग्रेस को छोड़ दें तो सबसे ज्यादा राज्यों की विधानसभा में अपने विधायक बिठा रही है.

मायावती की बसपा के 7 राज्यों में कुल 32 विधायक बैठ रहे हैं. यूपी में 19, राजस्थान में 6, एमपी में 2, छत्तीसगढ़ में 2, हरियाणा, झारखंड व कर्नाटक में 1-1 विधायक बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीते. गठबंधन सरकार में राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए बड़ी हसरत पालने वालों में चाहें ममता बनर्जी हों या चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार हों या कोई और, किसी भी नेता की पार्टी का प्रभाव क्षेत्र इतना व्यापक नहीं है.

पांच राज्यों के चुनाव को ही देख लें तो बीएसपी मिजोरम छोड़कर बाकी सारे राज्य लड़ी. सबसे शानदार प्रदर्शन राजस्थान में रहा जहां उसे 4 परसेंट वोट मिले और सीट मिली 6. राजस्थान में 2013 में बीएसपी को 3.37 परसेंट वोट पर 3 सीट मिली थी. अब वो राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.

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इसी तरह मध्य प्रदेश में 2013 के मुकाबले सीट और वोट दोनों घटा है पर उनका वजूद त्रिशंकु माहौल में महत्वपूर्ण हो गया है. बीएसपी ने एमपी में 5 परसेंट वोट पर 2 सीटें जीती हैं. 2013 में उसे 6.29 परसेंट वोट और 4 सीट मिली थी. मध्य प्रदेश में भी वो बीजेपी के ठीक नीचे तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.

छत्तीसगढ़ में 2013 में बीएसपी को 4.27 परसेंट वोट पर 1 सीट मिला था और वो तब तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. इस बार अजित जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से गठबंधन करके मायावती लड़ीं और उनकी पार्टी 3.9 परसेंट वोट के साथ 2 सीट जीत गई. पार्टी चार नंबर पर है क्योंकि तीसरे नंबर पर अजित जोगी की जेसीसी है जिसे 7.6 परसेंट वोट और 5 सीट मिली है.

तेलंगाना के चुनाव में बीएसपी को सीट नहीं मिली पर वोट शेयर बढ़ा. 2014 में संयुक्त आंध्र प्रदेश के चुनाव में वो मात्र 0.95 परसेंट वोट के साथ 2 सीटें जीत गई थी. इस बार वो 2.1 परसेंट पर कोई सीट नहीं निकाल सकी. बीएसपी के 2.1 परसेंट को ऐसे समझें कि दक्षिण भारत की स्थानीय पार्टी टीडीपी को 3.5 परसेंट और असदउद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को 2.7 परसेंट वोट मिले.

सीटों की जीत-हार से आगे बढ़कर वोट शेयर पर चलें तो बीएसपी और मायावती का देश पर और प्रभाव दिखता है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 2 परसेंट से ऊपर वोट मिले. अगर 1 परसेंट से ऊपर का हिसाब करें तो राज्यों की संख्या 9 तक हो जाती है. वोट शेयर के हिसाब से बीएसपी को यूपी में 2017 के चुनाव में 22.23 परसेंट वोट, हरियाणा में 2014 के चुनाव में 4.37 परसेंट वोट, उत्तराखंड में 2017 के चुनाव में 6.98 परसेंट वोट, महाराष्ट्र में 2014 के चुनाव में 2.25 परसेंट वोट, बिहार में 2015 के चुनाव में 2 परसेंट वोट, झारखंड में 2014 के चुनाव में 1.82 परसेंट वोट, पंजाब के 2017 चुनाव में 1.52 परसेंट वोट, जम्मू कश्मीर के 2014 चुनाव में 1.41 परसेंट वोट और दिल्ली में 2015 के चुनाव में 1.30 परसेंट वोट मिले थे.

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महाराष्ट्र में सपा को वोट 1 परसेंट से भी कम मिला पर सीट मिल गई और बीएसपी को 2 परसेंट से ज्यादा वोट के बाद सीट नहीं मिली. बीएसपी को 2.25 परसेंट वोट को ऐसे समझिए कि वहां राज ठाकरे की मनसे को 3.15 परसेंट वोट और 1 सीट मिले. इन राज्यों के अलावा भी मायावती की बीएसपी ने कई राज्यों के चुनाव लड़े जहां उसे 1 परसेंट से कम वोट मिला. जैसे उड़ीसा 2014 चुनाव में 0.86 परसेंट, गुजरात 2017 चुनाव में 0.69 परसेंट, बंगाल 2016 चुनाव में 0.55 परसेंट, हिमाचल प्रदेश 2017 चुनाव में 0.49 परसेंट, कर्नाटक 2018 चुनाव में 0.30 परसेंट, केरल 2016 चुनाव में 0.24 परसेंट, तमिलनाडु 2016 चुनाव में 0.23 परसेंट और पुड्डुचेरी 2016 चुनाव में 0.07 परसेंट मिले. मतलब साफ है कि मायावती और बीएसपी अपना पांव पसारने, पार्टी को बड़ा करने, हर राज्य में खड़ा करने की कोशिश में लगी हैं और इसमें यूपी में हाथ पकड़ने के बदले वो दूसरे राज्यों में कांग्रेस से कंधा मांग सकती हैं.

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