नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी और बीजेपी की लहर में लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं जीतने के बाद मायावती और अखिलेश यादव का सपा बसपा महागठबंधन टूटने वाला है. गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उप-चुनाव में एसपी बीएसपी के गठबंधन से बीजेपी की हार ने यूपी में महागठबंधन की नींव रखी थी लेकिन ये तीनों सीट भी 2019 में बीजेपी ने बड़े मार्जिन से जीती है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर दिल्ली में मीटिंग बुलाई थी और सूत्रों के हवाले से मीटिंग से जो बात बाहर आई है वो ये कि मायावती ने पार्टी नेताओं से कहा कि चुनाव में अखिलेश यादव की एसपी से गठबंधन का बीएसपी को कोई फायदा नहीं हुआ. मीटिंग में बीएसपी नेताओं ने गठबंधन के भविष्य का फैसला लेने के लिए मायावती को अधिकृत कर दिया है. गठबंधन तोड़ने की पहली मायावती कर रही हैं और वो भी ये कहकर कि सपा से तालमेल का फायदा नहीं हुआ जबकि सच्चाई ये है कि एसपी और अखिलेश को साथ लेकर वो ना सिर्फ अपना वोट शेयर बचाने में कामयाब रहीं बल्कि लोकसभा में 10 सीट जीत पाईं जबकि 2014 में उतने ही वोट शेयर पर वो जीरो पर आउट हो गई थीं. नुकसान तो अखिलेश यादव को हुआ जिनका वोट शेयर 3 परसेंट गिर गया और सीट 5 की 5 ही रह गईं और ऊपर से पत्नी डिंपल समेत दो-दो भाई चुनाव हार गए.
सूत्रों के हवाले से ये खबर भी आ गई है कि सांसद बनने से यूपी विधानसभा में खाली हुए 11 विधायकों की सीट पर बीएसपी अकेले चुनाव लड़ेगी, ऐसा मन मायावती ने बना लिया है. ये फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बीएसपी आम तौर पर लोकसभा या विधानसभा का उप-चुनाव नहीं लड़ती है लेकिन 11 सीटों पर विधानसभा उप-चुनाव लड़ने का फैसला एक तरह से बीएसपी के लिए ये देखने और समझने का मौका होगा कि अखिलेश से अलग होकर लड़ने पर उसके पास कितना वोट और कितनी सीट आती है. जिन 11 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होगा उसमें 8 सीट बीजेपी और एक-एक सीट अपना दल, सपा और बसपा की है.
सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव शुरू से इस गठबंधन के खिलाफ थे क्योंकि उन्हें पता था कि अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाकर उन्होंने यूपी में जो मुस्लिम-यादव और अति पिछड़ों का वोट बैंक तैयार किया है वो अखिलेश यादव की इस फैसले से रिस्क में होगा. मुसलमान वोट एक बार सपा-बसपा के साथ आने के बाद अलग होने की हालत में किसके साथ रहेंगे, इसका रिस्क होगा. लेकिन अखिलेश यादव जिद पर अड़े थे और मायावती के साथ उन्होंने आगे बढ़कर और एक तरह से झुककर समझौता किया.
यूपी की 80 लोकसभा सीटों में बीएसपी 38, एसपी 37 और 3 आरएलडी लड़ी थी जबकि 2 सीट कांग्रेस की अमेठी और रायबरेली छोड़ दी थी. लोग कहते हैं कि सीट बंटवारे में मायावती ने अखिलेश को चुन-चुनकर वो सीटें दी जहां से जीतना मुश्किल था और जहां भी जीत की संभावना बेहतर थी वो सारी सीटें अपने पास रख लीं. यही वजह रही कि बीएसपी 10 सीट जीत गई जबकि एसपी 2014 की ही तरह 5 सीट पर ही लटकी रह गई. अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव, चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव तक चुनाव हार गए.
मायावती को दिख रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अभी तीन साल का वक्त है और इस समय का इस्तेमाल वो कुछ प्रयोग करने और पार्टी को फिर से खड़ा करने में कर सकती हैं. 11 सीटों के उप-चुनाव में बीएसपी को उतारने का फैसला भी एक तरह का एक्सपेरिमेंट होगा. ये देखने के लिए कि मुसलमान अब किसके साथ जाते हैं. लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के वोटर दिल से मिल नहीं पाए, ये तो बहुत साफ तौर पर जमीन पर भी दिखा. मैनपुरी में मुलायम सिंह के समर्थन में सभा में जहां डिंपल यादव ने मायावती के पांव छूकर आशीर्वाद लिए वहीं मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने मुलायम सिंह या अखिलेश यादव को प्रणाम तक नहीं किया. लोग अब खुलकर कह रहे हैं कि डिंपल का मायावती का पांव छूना यादवों को पसंद नहीं आया और सपा को उसकी भी कीमत चुकानी पड़ी. कहीं सपा वालों ने बसपा को वोट नहीं दिया तो कहीं बसपा वालों ने सपा को वोट नहीं दिया.
लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं कि यूपी में महागठबंधन का असल फायदा मायावती को मिला जबकि अखिलेश को नुकसान हुआ और उल्टे अब मायावती अखिलेश को ही सुना रही हैं कि उनके वोटरों ने बीएसपी का साथ नहीं दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती की बीएसपी को 19.77 परसेंट वोट तो मिले पर सीट एक भी नहीं मिली. इस बार 19.26 परसेंट वोट पर ही वो 10 सीट जीत गईं क्योंकि मुसलमान वोट आम तौर पर बंटे नहीं. वहीं अखिलेश यादव की एसपी 2014 के 22.35 परसेंट से 2019 में 17.97 परसेंट पर आ गई और सीट 5 की 5 ही रही. इसके बावजूद अगर मायावती ये कह रही हैं कि सपा से गठबंधन बसपा के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं हुआ तो जाहिर है कि बूआ अब बबुआ से हाथ छुड़ाकर फिर से बसपा को खड़ा करने में जुटना चाहती हैं.
अखिलेश यादव खामोश हैं और चुपचाह ये सब देख रहे हैं क्योंकि वो नहीं चाहते कि उनके वोट बैंक और खास तौर पर मुसलमानों के बीच ये मैसेज जाए कि बीजेपी को हराने के लिए बने यूपी के महागठबंधन को अखिलेश यादव या एसपी ने तोड़ा. मायावती जिस तरह जा रही हैं, एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने मकसद में कामयाब होते दिख रहे हैं कि वोटर को क्लीयर मैसेज मिले कि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन से जीत की मलाई खाकर मायावती ने अखिलेश यादव से मुंह फेर लिया.
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