Mamata Banerjee West Bengal Lok Sabha Election: सांसद का कॉलर पकड़कर घर से बाहर निकालने वालीं ममता बनर्जी बीजेपी के लिए क्यों बनी हुई हैं सिरदर्द? जानिए दीदी की पूरी कहानी

Mamata Banerjee West Bengal Lok Sabha Election: मामूली सी सूती साड़ी और साधारण सी सेंडल पहनने वाली 5'4 इंच लंबी ममता बनर्जी ने बीजेपी खेमे की नाक में दम कर रखा है. पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए लेकिन ममता बनर्जी ने हर बार बीजेपी पर जोरदार हमला बोला.

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Mamata Banerjee West Bengal Lok Sabha Election: सांसद का कॉलर पकड़कर घर से बाहर निकालने वालीं ममता बनर्जी बीजेपी के लिए क्यों बनी हुई हैं सिरदर्द? जानिए दीदी की पूरी कहानी

Aanchal Pandey

  • May 18, 2019 12:03 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली: राजनीति में कहा जाता है कि आप अपने विरोधियों से नफरत तो कर सकते हैं लेकिन उन्हें इग्नोर बिलकुल नहीं कर सकते. ममता बनर्जी के संदर्भ में ये बात बिलकुल सटीक बैठती है क्योंकि इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी की नाक में दम किसी ने किया तो वो ममता बनर्जी थीं. मां, माटी, मानुष का नारा देने वालीं ममता बनर्जी जिन्होंने अकेले दम पर 40 साल पुरानी लेफ्ट सरकार को उखाड़कर फेंक दिया और फेंका भी तो ऐसा कि लेफ्ट बंगाल में अगले दस साल तक वापसी की कल्पना भी नहीं कर सकती. ममता बनर्जी 2011 से लगातार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं

मामूली सी सूती साड़ी और साधारण सी सेंडल पहनने वाली 5’4 इंच लंबी ममता बनर्जी ने बीजेपी खेमे की नाक में दम कर रखा है. पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए लेकिन ममता बनर्जी ने हर बार बीजेपी पर जोरदार हमला बोला. ममता बनर्जी में भले ही बेबाक हों लेकिन इतना जरूर है कि पश्चिम बंगाल के लोग उन्हें प्यार करते हैं. बंगाल समेत पूरे देश में ममता बनर्जी को लोग दीदी बुलाते हैं. खुद पीएम नरेंद्र मोदी उन्हें दीदी बोलते हैं.

परिवार चलाने के लिए स्टेनोग्राफर से लेकर सेल्स वुमेन तक बनीं ममता बनर्जी

इसका कारण है ममता बनर्जी का अबतक का राजनीतिक करियर. जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वो एक साधारण से परिवार से आते हैं जो रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था उसी तरह ममता बनर्जी भी बेहद साधारण परिवार से आती हैं. जहां कम उम्र में ही पिता के देहांत के बाद उनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई. राजनीति में आने से पहले ममता बनर्जी ने स्टेनोग्राफर का काम किया है, इसके अलावा वो प्राथमिक विद्यालय में टीचर रही हैं. परिवार का खर्च चलाने के लिए वो प्राइवेट ट्यूशन भी देती थीं और सेल्स गर्ल का काम भी करती थीं.

संघर्ष की भट्टी में तपकर बना है ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर

ममता बनर्जी का जन्म निम्म मध्यमवर्गी परिवार में हुआ. मात्र 17 साल की उम्र में उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी का निधन हो गया क्योंकि उनके परिवार के पास उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे.  शुरुआत से उन्होंने संघर्ष देखा. कठिनाईयों से जूझते हुए शायद ममता बनर्जी इतनी सख्त और उग्र हो गईं जो उनके भाषणों में अक्सर देखने को मिलता है. ममता बनर्जी ने काफी युवा अवस्था में ही कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी और कांग्रेस की राज्य महिला मोर्चा की महासचिव बन गई थीं. ममता बनर्जी सुर्खियों में उस वक्त आईं जब उन्होंने महिला रिजर्वेशन बिल के खिलाफ विरोध ना करने को लेकर समाजवादी पार्टी के सांसद दारोगा प्रसाद सरोज को कॉलर पकड़कर उन्हें उनके घर से निकाल दिया था.

  • ममता बनर्जी जब 15 साल की थीं तब उन्होंने कांग्रेस की स्टूडेंट विंग छात्र परिषद यूनियन का गठन कर दिया था.
  • 1970 में उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और 1976 में उन्हें महिला कांग्रेस का महासचिव बना दिया गया.
  • 1984 में ममता बनर्जी में लेफ्ट के गद्दावर नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी पहली बार संसद पहुंचीं जो उस वक्त सबसे युवा सांसद थीं.
  • 1991 में ममता बनर्जी को मानव संसाधन मंत्रालय और युवा मामले, खेल और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री का कार्यभार दिया गया.
  • 1997 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस का साथ छोड़कर अपनी अलग पार्टी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस बनाई.
  • 1999 में ममता बनर्जी एनडीए में शामिल हो गईं जहां उन्हें रेल मंत्रालय सौंपा गया. लेकिन 2000-01 में पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का हवाला देकर उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया लेकिन 2004 में वो एक बार फिर पार्टी में शामिल हो गईं.
  • ममता बनर्जी ने साल 2009 में फिर से कांग्रेस का हाथ थामा लेकिन एफडीआई के विरोध में 2012 में पार्टी से एक बार फिर खुद को अलग कर लिया.

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा कंपनी के नेनो कार मेनुफेक्चरिंग यूनिट का जोरदार विरोध किया जिसका फायदा उन्हें 2011 के विधानसभा में मिला. जहां तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी कम्यूनिस्ट सरकार को उन्होंने उखाड़कर फेंक दिया और तब से अबतक वो बंगाल की मुख्यमंत्री हैं.

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