मैनपुरी : उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट पर का उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए काफी मायने रखता है. खासकर समाजवादी पार्टी के लिए क्योंकि ये सीट उनके परिवार की विरासत रही है. सवाल ये है कि इन उपचुनावों में क्या उनकी विरासत कायम रहेगी? मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद भाजपा भी इन […]
मैनपुरी : उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट पर का उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए काफी मायने रखता है. खासकर समाजवादी पार्टी के लिए क्योंकि ये सीट उनके परिवार की विरासत रही है. सवाल ये है कि इन उपचुनावों में क्या उनकी विरासत कायम रहेगी? मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद भाजपा भी इन चुनावों को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में है. सपा ने डिंपल यादव को बतौर प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है.पूरा समाजवादी कुनबा उन्हें जीत दिलाने के लिए तैयार है. लेकिन मैनपुरी की हवा कैसी है और इस सीट का क्या समीकरण है आइए जानते हैं.
मैनपुरी लोकसभा सीट में कुल 5 विधानसभा सीटे हैं. इनमें करहल और जसवंत नगर की सीट भी शामिल है. इन सीटों पर फिलहाल अखिलेश यादव और शिवपाल यादव बतौर विधायक काबिज हैं. मतदाताओं की बात करें तो इन दो सीटों पर लगभग 17 लाख मतदाता हैं, इनमें से यादव 4.25 लाख, शाक्य 3.15 लाख, ठाकुर 2.50, ब्राह्मण 1.25, दलित 1.50 लाख, लोधी 1 लाख, वैश्य 70000 और मुस्लिम 45000 हैं. मैनपुरी की बात करें तो यह मुलायम सिंह यादव का गढ़ रहा है. साल 2014 और 19 के चुनावों में वह इसी सीट से सांसद रहे. अब उन्हीं की इस विरासत को आगे बढ़ाने की उम्मीद से अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतारा है.
5 दिसंबर को इस सीट पर मतदान करवाया जाएगा. हालांकि इस सीट पर डिंपल के लिए जीत हासिल करना इतना भी आसान नहीं है. सीधे-सीधे देखा जाए तो उपचुनाव में मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच ही है. भाजपा इस बार मैनपुरी से सपा की विरासत ढहाना चाहती है. चुनौती की बात करें तो इस बार भाजपा की मजबूरी सपा की विरासत पर भारी पड़ सकती है. साल 2004 में हुए आम चुनाव की बात करें तो मुलायम सिंह यादव ने 3.37 लाख वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की थी. लेकिन वर्ष 2019 आते-आते ये भारी अंतर 94 हजार वोटों तक ही रह गया. सपा की जीत का ये अंतर ऐसे वक्त में घटा था जब बसपा और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा.
ऐसे में डिंपल यादव और समाजवादी पार्टी को उपचुनावों से पहले ये बात भांप लेनी चाहिए क्योंकी हो सकता है कि इस बार भी मतदाताओं का मन आम चुनाव जैसा ही हो. बता दें, साल 2019 में सपा के साथ बसपा थी इसलिए वोटबैंक अधीक रहा था. लेकिन इन उपचुनावों को सपा को अपने ही बल पर जीतना है. क्योंकि अगर भाजपा बसपा वोट में सेंध लगाती है तो ये बाजी पलट भी सकती है.
साल 1996 के चुनावों में सपा प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव को कुल 273303 वोट मिले थे. जबकि जीत का अंतर 51958 रहा था. ऐसे ही साल 1998 में ये अंतर 10366, साल 1999 में 28026, साल 2004 में 337870, साल 2009 में 173069, साल 2014 में 364666, साल 2014 में 321249, साल 2019 में 94389 रहा. देखा जाए तो समय के साथ ये अंतर काफी घट गया है. जिसका सीधा अर्थ है जनता का भाजपा के प्रति झुकाव.
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