मुंबई, महाराष्ट्र में जारी सियासी हलचल का केंद्र शिवसेना बनी हुई हैं, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त तक इस मामले की सुनवाई टाल दी है, लेकिन राज्य में शिवसेना के अंदर ही अंदरूनी लड़ाई का दौर जारी है. सबसे ज्यादा नुकसान तो उद्धव ठाकरे को हुआ है क्योंकि उन्होंने सिर्फ सत्ता नहीं गंवाई […]
मुंबई, महाराष्ट्र में जारी सियासी हलचल का केंद्र शिवसेना बनी हुई हैं, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त तक इस मामले की सुनवाई टाल दी है, लेकिन राज्य में शिवसेना के अंदर ही अंदरूनी लड़ाई का दौर जारी है. सबसे ज्यादा नुकसान तो उद्धव ठाकरे को हुआ है क्योंकि उन्होंने सिर्फ सत्ता नहीं गंवाई है, बल्कि उनकी पार्टी पर पकड़ भी कमजोर हो गई है. लेकिन टेंशन में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले हैं, उनके लिए राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे बन गए हैं जो उन्हें खासा परेशान कर रहे हैं.
असल में सुप्रिया सुले बारामती लोकसभा से सांसद हैं और यहां कुल 6 सीटें हैं- बारामती सिटी, दौंड़, इंदापुर, पुरानदर, खडकवासला और भोर. अब 2014 के लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले का बारामती में जीत का मार्जिन 50000 वोटों का था जो 2019 में एक लाख से ज्यादा हो गया था. साल 2019 में उनका मुकाबला बीजेपी की कंचन कॉल से था. तब सुप्रिया के लिए सबसे ज्यादा वोट बारामती में मिले थे, इसके बाद इंदापुर, भोर और पुरंदर से भी सुले को अच्छी संख्या में वोट मिले थे, लेकिन उन्हें झटका लगा दौंड़ और खडकवासला से जहां वे पिछड़ गईं.
अब 2019 के बाद से कई समीकरण बदले हैं, इंदापुर क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हर्षवर्धन पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है और कहा जाता है कि साल 2019 में यहां से सुप्रिया सुले को लीड दिलवाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन अब जब वह भाजपा के साथ जा चुके हैं तो सुले के लिए यहां पर समीकरण बदल सकते हैं. इसी तरह पुरंदर क्षेत्र में विजय शिवतारे ने शिंदे गुट का दामन थाम लिया है, वे पिछले चुनाव में कांग्रेस के संजय जागतपा से हारे जरूर थे, लेकिन पवार परिवार के हमेशा से ही विरोधी माने गए हैं.
कहा जाता है कि उन्हीं की वजह से पुरंदर क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से पवार परिवार की पकड़ कमजोर हो रही है. यहां ये जानना भी जरूरी है कि विजय शिवतारे, देवेंद्र फडणवीस के बहुत करीबी माने जाते हैं, ऐसे में इस क्षेत्र में उनकी तरफ से ज्यादा ध्यान दिया जाएगा. दौंड़ सीट पर भी सुप्रिया सुले की पकड़ कमजोर हुई है, साल 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राहुल कुल ने यहां से जीत दर्ज की है. शिंदे की बगावत के बाद तो वे नई महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बनने के दावेदार भी माने जा रहे हैं, एस में सुप्रिया सुले की टेंशन बढ़ गई है.
भोर सीट पर भी समीकरण सुप्रिया सुले के खिलाफ दिख रहा है, यहां पर पिछले चुनाव में सुले को मामूली बढ़त मिली थी और वो लीड भी इसलिए बन पाई क्योंकि उस क्षेत्र में उन्हें कांग्रेस विधायक संग्राम थोपटे का पूरा समर्थन मिला था. लेकिन अब संग्राम थोपटे एनसीपी से नाराज बताए जा रहे हैं.
2020 के बाद से तो रिश्तों में दूरियां भी बढ़ गई हैं, बताया जाता है कि जब नाना पटोले का विधानसभा स्पीकर के पद से इस्तीफा हुआ था, उस समय संग्राम स्पीकर बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे. लेकिन शरद पवार के विरोध की वजह से वो मौका उनके हाथ से छिटक गया, ऐसे में सुप्रिया सुले की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि बारामती में वे अपनी पकड़ को कैसे बनाए रखेंगी क्योंकि जिन साथियों का उन्हें लगातार समर्थन मिलता था, उनमें से कुछ ने तो बीजेपी का दामन थाम लिया है तो कुछ पार्टी से नाराज चल रहे हैं. इस वजह से सुप्रिया सुले की टेंशन इस समय बढ़ गई है.
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