Maharashtra Assembly Election 2019: महाराष्ट्र और भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता शरद पवार ऐसे तो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने चुनावी सत्ता संग्राम के बीच शरद पवार को ‘राजनीति का भीष्म पितामह’ कहकर नई बहस को जन्म दे दिया. उन्होंने पवार को एक नई परिभाषा में गढ़ने का प्रयास किया है, वो भी ऐसे वक्त में जब महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें एक आरोपी के तौर पर शामिल किया गया है. सवाल यह उठता है कि शिवसेना ने शरद पवार के बारे में ऐसा बयान क्यों दिया? क्या यह बयान किसी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है? कुछ भी हो सकता है, चुनाव का मौसम जो है.
दरअसल, बैंक घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने शरद पवार को जब से घसीटना शुरू किया है तब से शरद पवार की राजनीति में एक नई चमक आ गई है. दो दिन पहले जब उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर यह कहा कि दिल्ली की तख्त के आगे महाराष्ट्र नहीं झुकेगा तो इस एक बयान से उन्होंने महाराष्ट्र और मराठा राजनीति का दिल जीत लिया. ईडी के एफआईआर को एक साजिश करार देते हुए एनसीपी सुप्रीमो ने कहा कि दिल्ली के तख़्त के आगे महाराष्ट्र कभी नहीं झुकेगा. महाराष्ट्र का हर मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के संस्कारों से चलता है. केंद्र की एनडीए सरकार को चुनौती देते हुए पवार ने कहा कि मुझे बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान पर भरोसा है. जिस बैंक घोटाले की बात की जा रही है उस बैंक में मैं कभी किसी पद पर नहीं रहा. बावजूद इसके ईडी की जांच में मैं पूरा सहयोग करूंगा. शरद पवार ने इस एक बयान और एक ऐलान से पूरी राजनीतिक फिजां ही बदल दी. इसका अहसास किसी और को भले ही न हो लेकिन शिवसेना इस बात को समझ गई और पवार के नहले पर दहला मारकर संजय राउत ने यह कहकर मराठा आक्रोश को कम करने का प्रयास किया कि शरद पवार तो राजनीति के भीष्म पितामह हैं. पूरा महाराष्ट्र जानता है कि जिस बैंक घोटाले को लेकर ईडी ने एफआईआर में नाम दर्ज किया है, उस बैंक में शरद पवार किसी भी पद पर नहीं रहे हैं। संजय राउत ने केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय पर भी हमला किया और कहा कि ईडी तो आज भगवान से भी बड़ी हो गई है. भगवान माफ कर सकते हैं लेकिन ईडी नहीं करती. ईडी ने पवार के साथ गलत किया है. कुल मिलाकर शिवसेना ने शरद पवार को क्लीनचिट दे दी.
संजय राउत की इस टिप्पणी से कुछ और भले ही न हो, लेकिन इतना तो तय मानिए कि मराठा राजनीति का जो खेमा वर्तमान में शिवसेना के साथ है उसमें सेंध लगते-लगते रह गया. इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता माने जाने वाले शरद पवार के तारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं. उनकी पार्टी का लगातार गिरता प्रदर्शन, पुराने व भरोसेमंद नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना और अब घोटाले में नाम आना इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि इस वक्त पवार अपने करीब पांच दशक के सियासी करियर के सबसे नाजुक दौर से गुजर रहे . बावजूद इसके 78 साल की उम्र में भी कोई यह अंदाजा नहीं लगा सकता कि शरद पवार के दिमाग में इस वक्त क्या चल रहा है. सियासी पंडित उनके बारे में बड़ा ही एक खास लफ्ज़ इस्तेमाल करते हैं कि ‘पवार जो बोलते हैं वो करते नहीं और जो करते हैं वो बोलते नहीं. पीएम मोदी तक खुले तौर पर इस बात का बहुत पहले ऐलान कर चुके हैं कि पवार उनके राजनीतिक गुरु हैं. तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, केंद्र में रक्षा मंत्री और कृषि मंत्री रहे. राजनीति से बाहर क्रिकेट के मैदान में आईपीएल जनक के तौर पर भी उन्हें देखा जाता है. आज भी मराठा राजनीति में उनकी गहरी पैठ है और सियासी मिजाज को कब और कैसे मोड़ दें कोई नहीं जानता.
बहरहाल, शरद पवार ने प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष पेश होकर जांच में सहयोग देने का जो एक सियासी ड्रामा खेलने का प्रयास किया था वह विशुद्ध रूप से मराठा राजनीति में एक हलचल पैदा करने का एक जरिया था. इसमें बहुत हद तक पवार सफल भी रहे और बाद में कानून-व्यवस्था का हवाल देकर वह ईडी दफ्तर में पेश होने का इरादा बदल दिया. इस एक राजनीतिक नौटंकी भर से पवार राजनीति के भीष्म पितामह तक तो पहुंच ही गए. आने वाले वक्त में बैंक घोटाले को लेकर मोदी सरकार शिवसेना के संदेश और पवार की चाल को भांपकर ही कोई अगला कदम उठाएगी. अमित शाह निश्चित रूप से इस मामले को चुनाव तक टालना चाहेंगे क्योंकि इतना तो अंदाजा मोदी सरकार को लग ही गया होगा कि पवार झुकने वाले नहीं हैं. अगर वो अपने पर आ गए तो किसी भी हद तक जा सकते हैं. सरकार के दबाव में ईडी ने पवार को भी अगर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया तो महाराष्ट्र चुनाव में लेने के देने पड़ जाएंगे.
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