लखनऊ. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन और ईस्ट यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही हार मान ली है. दरअसल यह बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि एक वीडियो में यूपी के अमेठी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए प्रियंका गांधी उनसे साल 2019 नहीं बल्कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए कहती नजर आ रही हैं. वीडियो को देखकर साफ जाहिर हो रहा है कि प्रियंका गांधी की यूपी में एंट्री सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए नहीं की गई है.
यही नहीं, इससे पहले भी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि मेरे राजनीति में आने से कुछ जादू नहीं हो जाएगा. खास बात है कि प्रियंका गांधी की पार्टी में ऑफिशियल एंट्री के बाद उनका ये पहला बड़ा चुनाव है. इससे पहले प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय तो थीं लेकिन पार्टी में किसी पद पर नहीं थी.
कुछ समय पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी का राजनीति में आने का ऐलान किया था. राजनीति में कदम रखते ही प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनाव के लिए ईस्ट यूपी प्रभारी बनाया गया था, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को वेस्ट यूपी प्रभारी का पद सौंपा गया.
प्रियंका गांधी के आते ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर गया. प्रियंका गांधी को वर्तमान की इंदिरा गांधी भी कहा गया. हालांकि प्रियंका को इंदिरा पहली बार नहीं कहा गया, इससे पहले भी कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता उनकी तुलना दादी इंदिरा से करते आए हैं.
प्रियंका गांधी के कांग्रेस में आने से कार्यकर्ताओं के हौसले तो बुंलद हो गए लेकिन खुद प्रियंका के मन का किसी को कुछ समझ नहीं आया है. दरअसल जब उनकी एंट्री हुई तो कहा जा रहा था कि प्रियंका गांधी मां सोनिया गांधी की रायबरेली सीट या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं, लेकिन पार्टी की ओर खबर आई कि वे चुनाव नहीं लड़ रही हैं. हालांकि हाल ही में उन्होंने बयान में कहा कि अगर पार्टी चाहेगी तो वे जरूर चुनाव लड़ेंगी.
दूसरी ओर आकंड़ों की मानें तो लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को यूपी में उतारने से कांग्रेस को बड़ा फायदा मिलता नजर नहीं आया है लेकिन पार्टी का वोटबैंक जरूर पहले से ज्यादा बढ़त पाई गई है. जिसका नुकसान भाजपा से ज्यादा अखिलेश यादव की सपा, मायावती की बसपा और अजीत सिंह की रालोद के गठबंधन को पहुंचता नजर आ रहा है. क्योंकि कई सीटों पर महागठबंधन और कांग्रेस का करीब-करीब एक ही वोटबैंक है.
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