Loksabha Election 2019: पांच साल की BJP सरकार में देश के मुसलमानों का कितना दिल जीत पाए PM नरेंद्र मोदी ?

Loksabha Election 2019: चुनाव आयोग के लोकसभा चुनाव 2019 की तारीखों के ऐलान के बाद देश में आचार संहिता लागू है. नरेंद्र मोदी का वो ऐतिहासिक कार्यकाल खत्म हो गया जिसमें उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी और आर्थिक आधार पर आरक्षण जैसे बड़े फैसले किए. देश में कोई पीएम मोदी से खुश है तो कोई नाराज. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि अपने कार्यकाल में क्या देश के मुसलमानों का मन जीतने में सफल हो पाए पीएम मोदी?

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Loksabha Election 2019: पांच साल की BJP सरकार में देश के मुसलमानों का कितना दिल जीत पाए PM नरेंद्र मोदी ?

Aanchal Pandey

  • March 16, 2019 9:42 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. देश में 16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव के नतीजों ने नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बना दिया. 10 साल बाद भाजपा सत्ता में वापस आई. लेकिन बीजेपी की वापसी और मोदी के पीएम पद की शपथ लेना देश के मुस्लिम समुदाय के लोगों में चिंता का विषय बन गया. आखिर बनता भी क्यों नहीं, ये वही मोदी जी प्रधानमंत्री बने थे, जिनपर लोगों ने गुजरात के गोधरा कांड में सैंकड़ों का मुसलमानों के नरसंहार का आरोप लगाया गया था. हालांकि मोदी के 5 साल के कार्यकाल ने उनकी छवि को काफी बदला. अब जब लोकसभा चुनाव 2019 सिर पर है तो यह बात जानना जरूरी है कि क्या अपने कार्यकाल में मुस्लिम लोगों का मन जीतने में सफल हो पाए पीएम मोदी.?

मोदी को लेकर गांव और शहर के मुस्लिमों की सोच अलग
पिछले 5 सालों में नरेंद्र मोदी सरकार के कई मंत्री और नेताओं ने मुस्लिम समुदाय को लेकर टिप्पणी की. कई बार इन बातों से विवाद भी हुआ लेकिन प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला. हालांकि मुस्लिम समुदाय वर्ग के लिए नरेंद्र मोदी ने काम में कोई कमी नहीं की. सरकार की ओर से मुस्लिम समुदाय को लेकर कई योजनाएं बनाई गई. इसका फायदा भी मुस्लिम वर्ग को पहुंचा. हालांकि इस मामले में गांव और शहर के मुसलमान की सोच में थोड़ा अंतर पाया गया. शहर के काफी संख्या में मुस्लिम लोगों ने माना की मोदी ने उनके लिए काम किया, जबकि ग्रामीण क्षेत्र के मुसलमानों ने इस बात से इनकार कर दिया.

यूपी के हापुड़ जिले के देहरा गांव में रहने वाले हाजी अहमद हसन से जब मोदी के पांच साल के कार्यकाल को लेकर सवाल किए गए तो वे ज्यादा संतुष्ट नहीं नजर आए. हाजी अहमद हसन का कहना था कि नरेंद्र मोदी काबिल व्यक्ति तो हैं लेकिन उनकी पार्टी की नीतियों से खुश नहीं है. उनका कहना है कि बीजेपी में मुस्लिम समुदाय के लोगों को वो सम्मान नहीं मिलता जो बाकि दूसरी पार्टियों में मिलता है. वहीं अहमद हसन ने देश में हुई मॉब लिचिंग घटनाओं पर भी सवाल उठाए. हालांकि व्यक्तिगत तौर पर हाजी अहमद हसन ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि वे सभी लोगों के लिए अच्छा काम करना चाहते हैं.

वहीं दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके के पास रहने वाले इंजीनियर अमन खान से जब मोदी के कार्यकाल को लेकर पूछा गया तो वे संतुष्ट नजर आए. अमन ने कहा कि दूसरी सभी सरकारों की तरह मोदी सरकार ने भी विकास करने की पूरी कोशिश की. अमन ने बताया कि उन्होंने ये तो तय नहीं किया कि वोट किसे देंगे. लेकिन उन्हें अपनी वोट मोदी को देने में कोई हर्ज नहीं है. उन्हें बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता कि पीएम नरेंद्र मोदी किसी विशेष धर्म के बारे में सोचते हैं.

मॉब लिंचिग और गौ रक्षा के नाम पर हिंसा से नाखुश हैं मुसलमान
मोदी कार्यकाल में एक ऐसा समय आया, जब देशभर में गौ रक्षा के नाम पर हिंसा और मॉब लिंचिग की घटनाएं सामने आने लगीं. इन मामलों की शुरुआत यूपी के दादरी में स्थित बिसाहड़ा में अखलाख की मॉब लिंचिग से हुई जिसमें उसकी जान चली गई. उस समय देश के काफी संख्या में मुसलमानों को चिंता होने लगी कि मोदी राज में वे सुरक्षित नहीं है. जब ऐसे मामले तूल पकड़ने लगे तो पीएम मोदी ने निंदा करते हुए नाराजगी जताई. पीएम मोदी का कड़ा रुख देख मुस्लिम समुदाय के लोगों को तसल्ली हुई. जिसके कुछ समय बाद इस तरह की घटनाएं होनी बंद हो गई लेकिन मुस्लिम समुदाय के मन थोड़ा सा डर लगातार बना रहा.

तीन तलाक को लेकर मुस्लिम महिलाओं का मन जीत गए मोदी
जो भी हो, पीएम मोदी के तीन तलाक कानून ने मुस्लिम समाज में उनकी छवि में बदलाव किया. इस कानून से काफी संख्या में मुस्लिम लोग उनके साथ जुड़े और पार्टी का मुस्लिम कैडर मजबूत हुआ. तीन तलाक का असर तो इतना दिखा कि साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल्य सीट देवबंद पर भी बीजेपी ने जीत हासिल की. उस समय कहा गया कि तीन तलाक की वजह से मुस्लिम महिलाओं ने मोदी के नाम पर जमकर वोटिंग की है. खैर पीएम नरेंद्र मोदी का तीन तलाक बिल लोकसभा से तो पास हो गया लेकिन राज्यसभा में अटका रहा औऱ आखिरकार सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया. हालांकि इससे मुसलमानों के मन में मोदी की छवि जरूर बदली.

सोशल मीडिया पर फेक न्यूज से कन्फ्यूज देश का मुसलमान
डिजिटल हो रहे भारत में चुनाव बाहर की दुनिया में कम और सोशल मीडिया पर ज्यादा लड़ा जा रहा है. जो लोग पहले चाय की दुकानों पर चुनाव की चर्चा किया करते थे, अब शान से फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर फेक न्यूज फैला रहे हैं. फेक न्यूज इन तक पहुंचाने का काम भाजपा, कांग्रेस, राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी, सपा, बसपा समेत बड़ी राजनीतिक पार्टियों के नाम पर बने फर्जी फेसबुक पेज और व्हाट्सएप ग्रुप कर रहे हैं.

कई बार मेरे पास खुद ऐसी फेक न्यूज शेयर होकर आती हैं जिनमें पीएम मोदी को मुसलमानों के लिए गलत बताया जाता है. एक बार ग्रुप पर फेक न्यूज डलती है और 5 मिनट में कोई भी झूठी खबर लाखों लोगों तक पहुंच जाती है, जिसका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्र के लोगों पर ज्यादा पड़ता है.

क्या कहते हैं आकंड़ें
बेशक मोदी को मुसलमानों का सपोर्ट मिलना शुरू हो गया लेकिन आकंड़ों के अनुसार अभी मजबूती आनी बाकी हैं. लोकसभा चुनाव के माहौल में हाल ही में आए इंडिया टीवी-सीएनएक्स सर्वे में मुसलमानों का मूड भांपने की कोशिश की, जिसमें चौंकाने वाले आंकड़ें सामने आएं. गुजरात में पीएम मोदी की लोकप्रियता दूसरे राज्यों से बेहतर है और यहां 10 फीसदी मुस्लिमों का वोट भाजपा के खाते में जा सकता है, जबकि आसाम में 9 प्रतिशत मुस्लिम वोट बीजेपी को दे सकते हैं. वहीं राजस्थान में 4, मध्य प्रदेश में 6, उत्तर प्रदेश में 3, महाराष्ट्र में 2 और बिहार में सिर्फ 5 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोग नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट कर सकते हैं.

फिलहाल ये सिर्फ आकंड़ें और अनुमान है, 23 मई लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी. ऊपर लिखे गए लेखक के विचार और रिसर्च है जिससे इनखबर का कोई लेना-देना नहीं है.

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