Lok Sabha Election 2019: दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोटबैंक के सहारे सत्ता में वापसी का रास्ता तय कर पाएगी मायावती और अखिलेश यादव की जोड़ी?

Lok Sabha Election 2019: 2019 लोकसभा चुनाव पहले चरण के लिए मतदान की शुरूआत 11 अप्रैल से होगा. जबकि नतीजे 23 मई को आएंगे. भारत निर्वाचन आयोग ने दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रेस कांफ्रेंस कर 2019 लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था. 2019 लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार में जुट गई है. बीजेपी भी 2019 लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर चुकी है. वहीं बसपा सुप्रीमों मायावती ने भी 11 यूपी के 11 लोकसभा सीटों की उम्मीदवारों की घोषणा कर दिया है. अगामा लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ रहीं हैं.

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Lok Sabha Election 2019: दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोटबैंक के सहारे सत्ता में वापसी का रास्ता तय कर पाएगी मायावती और अखिलेश यादव की जोड़ी?

Aanchal Pandey

  • March 22, 2019 6:06 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. Lok Sabha Election 2019: 2019 लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है. चुनाव आयोग ने 2019 लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान 10 मार्च को ही कर दिया है. सभी राजनैतिक पार्टियां 2019 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए मैदान में उतर चुकी हैं. इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी अपनी पहली लिस्ट जारी कर दिया है. देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां कुल 80 लोकसभा सीटें है. 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी में यूपी की सभी क्षेत्रीय पार्टियां उड़ गई थी और एक तिहाई सीटों पर भी जीत नहीं दर्ज कर पाई. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव की सपा और मायावती की बसपा ने गठबंधन कर लिया है. बसपा जहां यूपी की 38 को सपा 37 और आरएलडी तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूपी में ऐसी लहर चली की बीजेपी ने कुल 73 सीटों पर जीत दर्ज किया. राज्य में सपा को सिर्फ 4 सीटें मिली थी जबकि बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. यूपी 2014 लोकसभा चुनाव वोट प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी को कुल 42.63 प्रतिशत, सपा को 22.35, बसपा को 19.77 प्रतिशत और कांग्रेस को सिर्फ 7.53 प्रतिशत वोट मिला था.

2014 लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से सबक लेते हुए 2019 लोकसभा चुनाव में सपा ,बसपा और आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ रही हैं. चुनाव आयोग की रिपोर्ट्स की मानें तो उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा का वोट प्रतिशत अगर मिला दिया जाएं तो बीजेपी को 2014 लोकसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत से ज्यादा होगा. ऐसी स्थिती में सपा और बसपा यूपी में कुल 70 से सीटे जीत सकती हैं.

2014 लोकसभा चुनाव के अलावा अगर यूपी 2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो राज्य में बीजेपी ने 403 सीटों में से कुल 312 सीटों पर जीत दर्ज किया था और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है. यूपी 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आंधी में सपा का काम बोलता भी भी बेदम साबित हुआ और कांग्रेस-सपा गठबंधन भी काम नहीं आया.

सपा, बसपा और कांग्रेस की लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में हार की वजह-

उत्तर प्रदेश में अगर सपा की बात करें तो अच्छे काम करने के बावजूद युवाओंं की नाराजगी सपा पर भारी पड़ी. सपा ने अपने कार्यकाल में प्रदेश का सबसे बड़ी एक्सप्रेसवें बनवाया जहां पर आपात स्थिति में फाइटर प्लेन भी उतारे जा सकते हैं. लखनऊ में इकाना स्टेडियम का निर्माण करवाया जो अब अटल बिहारी बाजपेई के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा सड़क से लेकर कई ऐसे क्षेत्रों में सपा ने अपने शासनकाल में काम करवाएं जिसकी वजह से यूपी की छवि राष्ट्रीय स्तर पर ठीक हुई थी, लेकिन युवाओंं की नाराजगी और बीजेपी का पिछड़ा वर्ग के लिए कार्ड खेलना सपा पर भारी पड़ गया. राज्य सरकार की कई ऐसी नौकरियां थी जिनमें सपा सरकार पर धांधली के आरोप लगें. इसमें सबसे ज्यादा जो मुद्दा उछला वो उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में एक विशेष जाति की नियुक्तियां थी. इसके अलावा सपा की टीईटी, यूपी एसआई, यूपीपी सहित कई भर्तियों को लेकर फजीहत हुई. जिसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी को राज्य में सिर्फ 47 सीटों पर ही जीत मिली.

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का उदय प्रदेश में अतिपिछड़ों को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक भागेदारी के लिए हुई. लेकिन कुछ वर्षों के बाद पार्टी अपने राह से भटक गई. जिसकी वजह से पार्टी का जनाधार राज्य में कमजोर हुआ और पार्टी के परंपरागत वोटर भी कट गए नतीजा पार्टी को विधानसभा चुनाव 2017 में सिर्फ 19 सीटे ही प्राप्त हुई.

उत्तर प्रदेश में अगर कांग्रेस की बात करें तो 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 7 सीटे ही मिली थी. यूपी में अमेठी और रायबरेली को छोड़ दिया जाए कांग्रेस का जनाधार न के बराबर है. यहां तक कि देश और कांग्रेस के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने जिस फूलपुर लोकसभा सीट से 1951 में जीत दर्ज किया था वहां भी पार्टी की हालत संतोषजनक नहीं हैं. ऐसे में देखना यह होगा कि क्या 2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन जीत दर्ज करती या नतीजे 2014 जैसे ही होंगे.

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