Lalu Yadav RJD Congress Elections Defeat Rahul Gandhi Resignation: आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने 2019 लोकसभा चुनावों में यूपीए की अगुवाई में विपक्ष की करारी हार पर चुप्पी तोड़ी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश को लालू ने आत्मघाती कदम बताया है. लालू ने विपक्ष की रणनीतिक गलतियों पर भी प्रकाश डाला है.
रांची. 2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल भी सुनिश्चित हो गया. दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष पूरी तरह बिखरा दिखा. बिहार में पहली बार लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल लोकसभा चुनावों में खाता तक नहीं खोल पाई. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 एनडीए उम्मीदवारों के पास गईं सिर्फ 1 सीट कांग्रेस के खाते में गई. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव इस वक्त रांची अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. लालू सजायाफ्ता हैं सो चुनावी प्रक्रिया से भी दूर रहे. चुनाव के बाद लालू यादव से अंग्रेजी अखबार द टेलिग्राफ के नलिन वर्मा ने बातचीत की. आगे आप लालू यादव का 2019 लोकसभा चुनावों में विपक्ष की हार का विश्लेषण पढ़ेंगे. लालू यादव ने यह लेख अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ के नलिन वर्मा से बातचीत में लिखा है. मूल लेख के लिए यहां क्लिक करें.
राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश एक आत्मघाती कदम है न सिर्फ उनकी पार्टी बल्कि उन तमाम समाजिक और राजनीतिक ताकतों के लिए भी जो संघ परिवार से सीधी लड़ाई लड़ रहे हैं. यह बीजेपी के जाल में फंसने जैसा होगा. जैसे ही कोई गांधी-नेहरू परिवार के बाहर का व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज होगा, मोदी-शाह ब्रिगेड उसे सोनिया और राहुल का प्यादा और रिमोट कंट्रोल ठहराने की कोशिश करेंगे.यह खेल अगले आम चुनावों तक चलेगा. राहुल गांधी को अपने विपक्षियों को ऐसा मौका देना ही क्यों चाहिए?
बिन दुल्हे की बारात, इसलिए नाकामी लगी हाथ
यह एक तथ्य है कि मोदी की अगुवाई वाले बीजेपी से विपक्ष चुनाव हार चुका है. सभी विपक्षी दलों को जो इन असहिष्णु और सांप्रदायिक ताकतों को रोकना चाहते हैं, उन्हें अपनी साझी हार स्वीकार करनी चाहिए और इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर गलती कहां रही. हार की वजह ढूंढना मुश्किल नहीं है.
विपक्षी पार्टियों का एक ही लक्ष्य है बीजेपी को हटाना लेकिन वो सभी एक राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में असफल रही हैं. पूरे भारत में विपक्ष ऐसे चुनाव लड़ा मानो यह देश का नहीं राज्यों का चुनाव हो. विपक्ष अपनी रणनीति और एक्शन को एकरूप करने से चूक गया. देश को एक राष्ट्रीय विकल्प की जरूरत थी, लेकिन विपक्षी दल अपने राज्यों में लड़ते रहे और यह विकल्प खड़ा ही नहीं हो पाया. हर चुनाव की अपनी अलग कहानी होती है. इस चुनाव में बीजेपी के पास मोदी के रूप में एक निर्विवाद नेता था. लेकिन विपक्ष की बारात का कोई दुल्हा ही तय नहीं हो पाया. मोदी को विपक्ष ने बिहार जैसे राज्य में भी वॉकओवर दे दिया.
मुलायम सिंह के कहने पर माना नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार
लोगों को यह जरूर याद रखना चाहिए कि 2015 में मैं नहीं चाहता था की नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनें लेकिन एक बार जब जनता परिवार के हमारे मुखिया मुलायम सिंह यादव जी ने नीतीश को महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया तो मैं सड़कों पर यहीं कहते हुए उतरा कि नीतीश हमारे दुल्हा हैं, बीजेपी का दुल्हा कहां है? हमें विधानसभा चुनाव में सफलता मिली बावजूद इसके कि एक साल पहले ही बीजेपी को लोकसभा चुनावों में बिहार में भी भारी जीत मिली थी. हमने बिहार में बीजेपी का पासा पलट दिया था. विपक्षी पार्टियों को हर राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का कैंडिडेट के तौर पर पेश करना चाहिए था. विपक्षी पार्टियों के कांग्रेस से अधिक सीटों पर सौदेबाजी में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन ऐसे नेता को जो एक राष्ट्रीय पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष है, जिसे देश भर में लोग जानते हैं, उसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करना बहुत बड़ा ब्लंडर था.
राहुल गांधी होने चाहिए थे विपक्ष के PM उम्मीदवार
कांग्रेस का घोषणापत्र बीजेपी से कहीं ज्यादा बेहतर था. लेकिन बेहतर घोषणापत्र होने के बावजूद इसे विपक्षी पार्टियों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला. ऐसे संकेत गए कि विपक्षी पार्टियां बीजेपी को हराने से ज्यादा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं. यह चुनाव मोदी बनाम ममता दीदी नहीं था न ही मोदी बनाम मायावती या अखिलेश या मोदी बनाम तेजस्वी यादव. यह लड़ाई थी एक निरंकुश सरकार और हाशिये पर खड़े समाज, बेरोजगार यवाओं, परेशान किसानों और प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के बीच. आपस में बंटी हुई विपक्षी पार्टियां देश के ऐसे तबकों को मंच मुहैया कराने में नाकाम रहीं.
कुछ विश्लेषक कह रहे हैं कि भारत बदल गया है और अब यह गांधी की नहीं गोड़से की विचारधारा पर चलेगा. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि हिंदू दिमाग को अपह्रत कर लिया गया है. अन्य कह रहे हैं कि जिन लोगों ने मोदी को समर्थन दिया है वो जात-पात से ऊपर उठ चुके हैं. वो भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर के कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के हराने को उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. मैंने सुना कुछ लोग कह रहे थे कि बंगाल में गोलवलकर और हेडगेवार ने गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर और इश्वरचंद्र विद्धासागर को रिप्लेस कर दिया है. ये मूर्खतापूर्ण बातें हैं.
एक चुनाव के नतीजे से देश नहीं बदलता
एक चुनाव का रिजल्ट इस देश की सच्चाई को नहीं बदल सकता. भारत एक बहुलतावादी देश है. यह गांधी, जेपी, टैगोर, पेरियार, ज्योतिबा फुले, अंबेडकर की धरती थी और रहेगी. हमारा देश सांप्रदायिक सदभाव वाला देश रहा है और आगे भी रहेगा. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आते रहेंगे-जाते रहेंगे लेकिन देश बचा रहेगा अपने बहुसांस्कृतिक सभ्यता के साथ. यकीनन ये बीजेपी और उसके नेता नरेंद्र मोदी की जीत है और विपक्ष की रणनीतिक हार है, इससे ज्यादा कुछ नहीं. भारत एक विशाल और विविधता से भरा देश है. चुनाव यहां अक्सर होते ही रहते हैं. विपक्षी पार्टियों को अपने-अपने राज्यों में रणनीति के बारे में सोचना चाहिए.उन्हें अपने कार्यकर्ताओं और लोगों का हौसला बढ़ाना चाहिए जो इस तानाशाही सरकार के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ते रहे हैं. अपनी आरामतलबी को छोड़कर अब विपक्ष को सड़क पर उतरना चाहिए, लोगों को दर्द को साझा करना चाहिए. चुनावी बिसात आज नहीं तो कल जरूर पलटेगी.