Raja Mahendra Pratap Singh : जानिए कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह, हाथरस के खंडहर में बन चुकी है जिनकी विरासत

Raja Mahendra Pratap Singh प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने अलीगढ दौरे के दौरान राजा महेंद्र प्रताप सिंह ( Raja Mahendra Pratap Singh ) विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया. बता दें कि 2019 में जब उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य स्तरीय इस विश्विद्यालय की चर्चा की थी तब से यह मुद्दा सुर्ख़ियों में बना हुआ है. […]

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Raja Mahendra Pratap Singh : जानिए कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह, हाथरस के खंडहर में बन चुकी है जिनकी विरासत

Aanchal Pandey

  • September 14, 2021 8:16 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

Raja Mahendra Pratap Singh

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने अलीगढ दौरे के दौरान राजा महेंद्र प्रताप सिंह ( Raja Mahendra Pratap Singh ) विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया. बता दें कि 2019 में जब उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य स्तरीय इस विश्विद्यालय की चर्चा की थी तब से यह मुद्दा सुर्ख़ियों में बना हुआ है.

कौन थे राजा महेंद्र प्रताप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जिस विश्वविद्यालय (राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय) का शिलान्यास किया है, क्या आप जानते हैं आखिर कौन थे राजा महेंद्र प्रताप? राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक स्वतंत्रता सैनानी थे. वे पूरी समर्पित रूप से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे हैं, उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई. उन्होंने समाज के लिए कई तरह के संस्थान खोले थे. एएमयू जैसी यूनिवर्सिटी के लिए उन्होंने ज़मीन दी थी.

मुरसान रियासत के राजा थे महेंद्र प्रताप सिंह

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1886 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत में हुआ था. वे आगे चलकर खुद मुरसान रियासत के राजा बने उनका सम्बन्ध जाट परिवार से था और उनकी शादी जिंद रियासत की बलबीर कौर से हुआ था. इनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया यह है की उनकी बारात के लिए हाथरस से संगरूर के बीच दो विशेष ट्रेनें चलाई गई थीं.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने बनाई थी पहली निर्वासित सरकार

बता दें कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने जीवनकाल में 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी लेकिन इसके बावजूद उनके पास भारतीय पासपोर्ट नहीं था. इसके बाद उन्होंने अफगानी प्रशासन के सहयोग से 1 दिसंबर 1915 को पहली निर्वासित हिंद सरकार का गठन किया. इन सब के बीच आजादी का बिगुल बजाते हुए वह 31सालों से भी अधिक समय तक विदेश में रहे. चूँकि वे एक सच्चे स्वतंत्रता सैनानी थे इसलिए उन्होंने भारत को आज़ाद करवाने के लिए भारत से बाहर स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी. दिलचस्प बात यह है कि ये इकलौता देश को आज़ादी दिलवाने का प्रयास था जो की देश के बाहर किया गया था.

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