पटनाः बिहार के बेगूसराय लोकसभा सीट पर इस बार सबकी निगाहें टिकी हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इस सीट पर सीपीआई-सीपीएम ने मिलकर जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और युवा छात्र नेता कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर बीजेपी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह और आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी, हम और वीआईपी महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन से लेफ्ट कैंडिडेट कन्हैया कुमार की कड़ी टक्कर है. बेगूसराय सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना जताई जा रही है.
इन सबके बीच सबसे अहम मुद्दा ये है कि महागठबंधन से दरकिनार किए जाने के बाद सीपीआई को क्या हड़बड़ी थी कि उसने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से चुनाव लड़ाने की घोषणा कर दी जबकि पार्टी को पता था कि कन्हैया कुमार के सामने गिरिराज सिंह और तनवीर हसन जैसे दिग्गज नेता थे.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि खुद सीपीआई के कई बड़े नेता कन्हैया कुमार की लोकप्रियता से अंदर ही अंदर जलते हैं और वे इस फिराक में हैं कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद कन्हैया कुमार का राजनीतिक करियर खत्म हो जाए. कन्हैया सीपीआई के बड़े नेताओं की आंख में खटक रहे हैं.
सीपीआई के सीनियर नेता अतुल कुमार अंजान भी लखनऊ यूनिवर्सिटी के तेज तर्रार छात्र नेता माने जाते थे और बाद में राजनीति में आए थे, लेकिन घोसी से 1998 से लगातार लोकसभा चुनाव हारते-हारते बड़े पर्दे से उतरते गए. ऐसे में कन्हैया कुमार को लेकर भी ये आशंका गहराती है कि कहीं इनका हश्र भी अतुल अंजान जैसा न हो जाए.
मालूम हो कि बेगूसराय अब पहले जैसा नहीं है जहां सीपीआई कैंडिडेट्स का झंडा बुलंद रहता था और वे लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करते थे. अब चूंकि बेगूसराय सीट पर बीजेपी और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी मजबूत स्थिति में है, ऐसे में महागठबंधन से सीपीआई को दरकिनार किए जाने के बाद अब इस लेफ्ट पार्टी की स्थिति यहां कमजोर हुई है.
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी भोला सिंह को 4 लाख 28 हजार मत मिले थे और उन्होंने अपने निकटतम प्रत्याशी आरजेडी के तनवीर हसन को करीब 60 हजार मतों से मात दी थी. वहीं सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को एक लाख 92 हजार वोट मिले थे और वह तीसरे नंबर पर थे. ऐसे में चाहे जातीय समीकरण के लिहाज से हो या पार्टी की मजबूत स्थिति या बेगूसराय की जनता के बीच लोकप्रियता की लिहाज से, कन्हैया हर जगह पिछड़ते नजर आ रहे हैं. हालांकि अच्छे वक्ता और युवा होने की वजह से युवाओं में उनका क्रेज दिखता है.
एक बात और अहम है कि आरजेडी लीडरशिप के भरोसे के बाद भी कन्हैया को महागठबंधन की तरफ से सीट नहीं दी गई. आरजेडी का मानना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के वाबजूद जब उनकी पार्टी के प्रत्याशी तनवीर हसन करीब 3 लाख 70 हजार वोट वोट मिले थे और वे बस 60 हजार मतों से बीजेपी से हार गए थे, ऐसे में क्यों न फिर से तनवीर हसन को बेगूसराय से उतारा जाए.
एक और बात है कि जातिगत और दलीय समीकरण में कन्हैया बाकी दोनों प्रमुख कैंडिडेट से काफी पीछे दिख रहे हैं. गिरिराज सिंह भी सवर्ण हैं और कन्हैया कुमार भी. वहीं महागठबंधन कैंडिडेट तनवीर हसन की सवर्णों के साथ ही अन्य जातियों पर भी अपने सहयोगियों की वजह से पकड़ मजबूत हो गई है. ऐसे में कन्हैया कुमार के पास गिरिराज सिंह और तनवीर हसन के चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल होगा.
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