Gujarat assembly election results 2017- पहले माना जा रहा था कि जीएसटी की वजह से गुजरात का व्यापारी वर्ग बीजेपी से नाराज है लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि व्यापारी वर्ग ने जीएसटी पर मुहर लगा दी.
गांधीनगर. गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद से बीजेपी में खुशी का माहौल है, वहीं कांग्रेस खेमे में लोगों के चेहरे लटके हुए हैं. बीजेपी के सभी पार्टी कार्यालयों में पार्टी समर्थकों का जमावड़ा है. वहीं हर जगह मोदी-मोदी के नारे लग रहे हैं. गुजरात में सरकार बनाकर 2019 फतह का सपना देख रही कांग्रेस को निराशा हाथ लग रही है. गुजरात में बीजेपी सिर्फ सरकार ही नहीं बनाने जा रही बल्कि उसका वोट प्रतिशत भी बढ़ा है. हर वर्ग बीजेपी के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के पक्ष में नजर आ रहा है. लोगों ने पीएम मोदी के गुजरात ही नहीं बल्कि देश के भी कार्यकाल को स्वीकार किया है. बीजेपी के गुजरात मॉडल पर जनता ने मोहर लगाई है. वहीं बीजेपी की जीत से उत्साहित केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश की जनता ने बता दिया है कि जीएसटी ‘गब्बर सिंह टैक्स’ नहीं, देश के विकास का टैक्स है. बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताया था.
वहीं रविशंकर के इस दावे पर गुजरात समेत हिमाचल की जनता ने भी मुहर लगा दी है. पहले माना जा रहा था कि जीएसटी की वजह से गुजरात का व्यापारी वर्ग बीजेपी से नाराज है लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि व्यापारी वर्ग ने जीएसटी पर मुहर लगा दी. राहुल गांधी ने व्यापारी वर्ग को साधने के लिए जीएसटी को आसान बनाने का दावा किया था लेकिन वे वोटरों को साधने में नाकाम रहे. गुजरात व्यापार प्रधान प्रदेश है. जीएसटी के बाद काफी व्यापारी पीएम मोदी से नाराज थे. इसके बावजूद कांग्रेस व्यापारियों को बीजेपी से दूर करने में नाकाम रही.
माना जा रहा था कि हार्दिक पटेल का जादू युवाओं में चल रहा है लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट आए हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी अपने पारंपरिक वोटबैंक पाटीदार समुदाय को अपने पक्ष में बरकरार रखने में कामयाब रही है. इसके साथ ही आदिवासी समुदाय में भी बीजेपी का वोटबैंक बढ़ा है. गुजरात में आदिवासी वोटरों की संख्या करीब 12 प्रतिशत है. सूबे में आदिवासियों के लिए 27 सीटें आरक्षित थीं. आदिवासी वोटर कुल 182 सीटों में करीब 40 सीटों पर निर्णायक की भूमिका में रहते हैं. आदिवासी वोटर किसी भी पार्टी के परंपरागत मतदाता नहीं रहे हैं. कांग्रेस ने जेडीयू के पूर्व नेता छोटूभाई वसावा के जरिए आदिवासी वोटरों को साधने की कोशिश की थी. कांग्रेस ने छूटूभाई ग्रुप को चार सीटें दी थीं. छोटूभाई वसावा जेडीयू नेता थे लेकिन राज्यसभा चुनावों में उन्होंने कांग्रेस के अहमद पटेल को वोट दिया था जिसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया था।
सूबे के दक्षिणी इलाके में आदिवासियों का काफी असर है. आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में से 17 सीटें इसी क्षेत्र से आती हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इनमें से 8 और बीजेपी ने 7 सीटें जीती थीं. ताजा मतगणना में बीजेपी को आदिवासी वोटरों का भी मत मिलता नजर आ रहा है. कांग्रेस के बारे में माना जा रहा था कि राहुल गांधी अपनी पार्टी की नैया पार लगा ले जाएंगे लेकिन गुजरात की जनता के मत ने उन्हें निराश किया है. गुजरात में बीजेपी पिछले 22 साल से काबिज है. ऐसे में एक और कार्यकाल बीजेपी के पास आ रहा है. कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से उबरने की कोशिश कर रही है लेकिन गुजरात के नतीजों ने निराश किया है.