नई दिल्ली, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंह राव और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकारों में केंद्रीय मंत्री रह चुके कांग्रेस के कद्दावर नेता गुलाम नबी आखिरकार कांग्रेस से आज़ाद हो ही गए. हाल ही के महीनों में कपिल सिब्बल के बाद गुलाम नबी आजाद ऐसे दूसरे बड़े नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह […]
नई दिल्ली, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंह राव और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकारों में केंद्रीय मंत्री रह चुके कांग्रेस के कद्दावर नेता गुलाम नबी आखिरकार कांग्रेस से आज़ाद हो ही गए. हाल ही के महीनों में कपिल सिब्बल के बाद गुलाम नबी आजाद ऐसे दूसरे बड़े नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके गुलाम नबी कांग्रेस में रहेंगे या नहीं, रहेंगे भी तो कब तक रहेंगे, इन सभी बातों को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन अब गुलाम नबी ने पार्टी को अलविदा कह दिया है.
गुलाम नबी ने इस्तीफ़ा देते हुए सोनिया गाँधी को जो पांच पन्नों को चिट्ठी भेजी है, उसमें उन्होंने सबसे ज्यादा राहुल गाँधी पर निशाना साधा है. उन्होंने राहुल को पार्टी डूबोने का श्रेय दिया है, गुलाम नबी का कहना है कि पार्टी संघर्ष और सही दिशा में लड़ाई लड़ने की इच्छाशक्ति खो चुकी है. ऐसे में कांग्रेस को भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा करनी चाहिए.
सोनिया को भेजी गई पांच पन्नें की चिट्ठी में गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस में बिताए पांच दशक के राजनीतिक जीवन का जिक्र करते हुए इंदिरा गांधी, संजय गांधी और राजीव गांधी की जहाँ तारीफें की तो वहीं राहुल गांधी पर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से जब से पार्टी में राहुल गांधी की एंट्री हुई और खासतौर से 2013 में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने, तब से पार्टी में बातचीत का खाका ही खत्म हो गया. उन्होंने कहा कि राहुल के नेतृत्व में पार्टी के सभी अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया और अनुभवहीन नेता पार्टी के मामले देखने लगे. इसके बाद से लगातार कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, उन्होंने राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस को मिली करारी हार का भी जिक्र किया, बताया कि 2014 से लेकर अभी तक कांग्रेस दो लोकसभा चुनाव हार चुकी है.
गुलाम नबी आज़ाद ने अपने इस्तीफे में कहा कि साल 2014 से 2022 के बीच 49 विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें से 39 में कांग्रेस को करारी हाट मिली है, वहीं कांग्रेस को सिर्फ चार राज्यों में जीत मिली तो 6 राज्यों में पार्टी की सहयोगी दल की सरकार बनी. मौजूदा समय में कांग्रेस सिर्फ दो राज्यों में ही सत्ता में बरकरार है और दो राज्यों में सहयोगी दल के तौर पर शामिल है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की स्थिति को लेकर पार्टी के 23 वरिष्ठ साथियों ने शीर्ष नेतृत्व को अपने सुझाव भी सौंपे थे लेकिन उनमें से एक भी सुखाव को माना नहीं गया, उल्टा इन सुझावों को राहुल गाँधी ने अपने ऊपर लेकर वरिष्ठ नेताओं को ही दरकिनार कर दिया.
गुलाम नबी आज़ाद ने आगे कहा कि जिस रिमोट कंट्रोल मॉडल ने यूपीए सरकार की सत्यनिष्ठा को तबाह किया, वही मॉडल अब कांग्रेस में भी लागू हो गया, सोनिया पर कटाक्ष करते हुए गुलाम ने कहा कि आपके पास सिर्फ नाम का नेतृत्व है, सभी महत्वपूर्ण फैसले या तो राहुल गांधी लेते हैं, या फिर इससे भी बदतर स्थिति में उनके सुरक्षाकर्मी और पीए लेते हैं, बाक़ी किसी के बोलने की तो व्यवस्था ही नहीं है.
आजाद ने कहा कि कांग्रेस में कमजोरियों के बारे में बताने वाले 23 नेताओं को गाली दे दी गई और उन्हें अपमानित और बदनाम किया गया. पार्टी अब उस स्थिति में रही ही नहीं है जब दूसरों की बातें भी सुनी जाती थी, कांग्रेस उस स्थिति पर पहुंच गई है, जहां से वापसी अब नहीं की जा सकती है. पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए ‘प्रॉक्सी’ का सहारा लिया जा रहा है, ऐसे पार्टी नहीं चल सकती है.
उन्होंने लिखा है कि संगठन के किसी भी स्तर पर किसी भी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं, कांग्रेस के चुने हुए लेफ्टिनेंट्स को पार्टी चलाने वाली मंडली द्वारा तैयार की गई सूचियों पर हस्ताक्षर करने के लिए ही मजबूर किया गया, फैसले लेना तो दूर की बात उनपर सलाह मश्वरा की प्रथा भी खत्म कर दी गई. पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी करने के लिए नेतृत्व पूरी तरह से जिम्मेदार है. पार्टी अब ऐसी स्थिति में पहुँच गई है जहाँ से कोई भी बदलाव करना संभव नहीं है. गुलाम नबी आज़ाद की इस चिट्ठी का पूरा दारोमदार यही था कि राहुल ने कांग्रेस की लुटिया डुबोई है. अंत में आज़ाद ने लिखा कि उन्होंने बहुत भारी मन से अब पार्टी छोड़ने का फैसला ले लिया है. उन्होंने कहा कि ‘बहुत खेद के साथ मैंने कांग्रेस से अपना दशकों पुराना रिश्ता संबंध तोड़ने का फैसला किया है.