नई दिल्ली, गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया. उन्होंने पार्टी के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, अब उनका कहना है कि वो अपनी खुद की पार्टी बनाएंगे. आज़ाद ने सोनिया को पांच पन्ने की चिट्ठी भेजकर इस्तीफ़ा दिया है. इस्तीफे के इन पन्नों में 7 […]
नई दिल्ली, गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया. उन्होंने पार्टी के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, अब उनका कहना है कि वो अपनी खुद की पार्टी बनाएंगे. आज़ाद ने सोनिया को पांच पन्ने की चिट्ठी भेजकर इस्तीफ़ा दिया है. इस्तीफे के इन पन्नों में 7 किरदार और 3 हालात हैं, इसमें सबसे सख्त बयान तो राहुल गाँधी को लेकर है. आजाद ने उन्हें कांग्रेस की बर्बादी की वजह बताया है, आइए आपको बारी-बारी से चिट्ठी के किरदारों को हालातों के बारे में बताते हैं:
गुलाम नबी आज़ाद की इस चिट्ठी में सबसे पहला किरदार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं, सोनिया गाँधी पर आज़ाद ने लिखा- बेशक कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर आपने यूपीए-1 और यूपीए-2 के गठन में शानदार काम किया और आपकी इस सफलता का सबसे बड़ा कारण यह था कि आपने अध्यक्ष के तौर पर बुद्धिमान सलाहकारों और वरिष्ठ नेताओं के फैसलों पर भरोसा किया, उन्हें फैसले लेने की ताकत दी और उनपर भरोसा किया.
इस पांच पन्ने की चिट्ठी में गुलाम नबी आज़ाद ने सबसे ज्यादा राहुल गाँधी पर कटाक्ष किया है. उन्होंने लिखा, जब से राजनीति में राहुल गांधी की एंट्री हुई और खासतौर पर जब जनवरी 2013 में राहुल को उपाध्यक्ष बनाया गया, तब राहुल ने पार्टी में चली आ रही सलाह-मश्वरा की व्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया. सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया और चापलूसों का नया ग्रुप बन गया, जो पार्टी चलाने लगा. अनुभवी लोगों की जगह राहुल के पीए और सुरक्षागार्ड पार्टी के फैसले लेने लगे.
इस चिट्ठी में आज़ाद ने अपना अनुभव भी साझा किया है, उन्होंने लिखा- मैं लगातार 4 दशक तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य रहा, 35 साल तक मैं देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी का जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज भी रहा, इस चिट्ठी में मैं यह बताते हुए खुश हूं कि जिन राज्यों में मैं इंचार्ज रहा, उनमें से 90% में कांग्रेस को जीत मिली.
यूपीए सरकार की अखंडता को तबाह करने वाला रिमोट कंट्रोल सिस्टम अब कांग्रेस पर लागू हो रहा है, पार्टी अपने मूलभूत सिद्धांत भूल चुकी है, सोनिया पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा आप बस नाम के लिए इस पद पर बैठी हैं, सभी जरूरी फैसले तो राहुल गांधी ले रहे हैं, उससे भी बदतर यह है कि उनके सुरक्षाकर्मी और पीए भी फैसले ले रहे हैं.
इस चिट्ठी में गुलाम नबी आज़ाद ने इंदिरा गाँधी के कार्यकाल को भी याद किया, उन्होंने लिखा- साल 1977 के बाद संजय गांधी के नेतृत्व में यूथ कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के पद पर रहते हुए मैं हजारों कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ एक जेल से दूसरी जेल गया. तिहाड़ जेल में मेरा सबसे लंबा समय 20 दिसंबर 1978 से जनवरी 1979 तक का था. तब मैंने इंदिरा गांधी जी की गिरफ्तारी के खिलाफ जामा मस्जिद से संसद भवन तक विरोध रैली निकाली थी, उस समय हमने जनता पार्टी की व्यवस्था का विरोध किया था और उस पार्टी के कायाकल्प का रास्ता बनाया था, जिसकी नींव 1978 में इंदिरा गांधी जी ने रखी थी. 3 साल के महान संघर्ष के बाद 1980 मेें कांग्रेस पार्टी दोबारा सत्ता में लौटी थी, इंदिरा गाँधी के समय में मैंने बहुत कुछ सीखा था.
इस चिट्ठी में गुलाम नबी आज़ाद ने संजय गाँधी को याद करते हुए लिखा- छात्र जीवन से ही मैं आजादी की अलख जगाने वाले गांधी, नेहरू, पटेल, अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस के विचारों से बहुत प्रभावित था. संजय गांधी के कहने पर मैंने 1975-76 में जम्मू-कश्मीर यूथ कांग्रेस की अध्यक्षता संभाली थी, कश्मीर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद 1973-75 तक मैं कांग्रेस के ब्लॉक जनरल सेक्रेटरी की जिम्मेदारी भी संभाल रहा था, फिर संजय गांधी की दुखद मृत्यु के बाद 1980 में मैं यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बना.
आज़ाद ने अपनी चिट्ठी में आगे लिखा- यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट रहते हुए मुझे आपके पति राजीव गांधी को यूथ कांग्रेस में नेशनल काउंसिल मेंबर के तौर पर शामिल करने का सौभाग्य मिला था. साल 1981 में कांग्रेस के स्पेशल सेशन के दौरान राजीव गांधी यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे, यह भी मेरी ही अध्यक्षता में हुआ था. मैं राजीव गांधी के कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनने से लेकर उनकी दुखद हत्या तक इस बोर्ड का सदस्य रहा था, मैंने उनका कार्यकाल देखा ही नहीं जीया है.
किरदारों के बाद अब हालातों की बात करें तो गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी चिट्ठी में पार्टी के बदलते हालत की भी चर्चा की है. उन्होंने लिखा, कांग्रेस की बर्बादी का सबसे ज्वलंत उदाहरण वह है, जब राहुल गांधी ने सरकार के अध्यादेश को पूरे मीडिया के सामने टुकड़े-टुकड़े कर डाला था. कांग्रेस कोर ग्रुप ने ही यह अध्यादेश तैयार किया था और कैबिनेट और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दी थी, राहुल की इस बचकाना हरकत ने भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के औचित्य को खत्म कर दिया था. किसी भी चीज से ज्यादा यह इकलौती हरकत 2014 में यूपीए सरकार की हार की एक बड़ी वजह बनी थी.
2014 में सोनिया और राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस शर्मनाक तरीके से 2 लोकसभा चुनाव हारी है, इसपर आज़ाद ने लिखा- 2014 से 2022 के बीच 49 विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें से 39 में कांग्रेस को करारी हार मिली है, वहीं कांग्रेस को सिर्फ चार राज्यों में जीत मिली तो 6 राज्यों में पार्टी की सहयोगी दल की सरकार बनी. मौजूदा समय में कांग्रेस सिर्फ दो राज्यों में ही सत्ता में बरकरार है और दो राज्यों में सहयोगी दल के तौर पर शामिल है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की स्थिति को लेकर पार्टी के 23 वरिष्ठ साथियों ने शीर्ष नेतृत्व को अपने सुझाव भी सौंपे थे लेकिन उनमें से एक भी सुखाव को माना नहीं गया, उल्टा इन सुझावों को राहुल गाँधी ने अपने ऊपर लेकर वरिष्ठ नेताओं को ही दरकिनार कर दिया.
हार के बाद राहुल गांधी ने झुंझलाहट में अध्यक्ष पद छोड़ दिया, उससे पहले राहुल ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में हर सीनियर नेता का अपमान किया था, जिसने पार्टी के लिए अपनी जिंदगी दी, इसके बाद सोनिया गाँधी अंतरिम अध्यक्ष बनी, पिछले 3 साल से वो ये ज़िम्मेदारी संभाल रही है, इसका जिक्र करते हुए आज़ाद ने लिखा “आप सिर्फ नाम की अध्यक्ष हैं, पार्टी के सभी फैसले तो राहुल गाँधी ही लेते हैं या उनके सुरक्षागार्ड और पीए लेते हैं.”
आजाद का राज्यसभा का कार्यकाल 15 फरवरी 2021 को पूरा हो गया था, इसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि किसी दूसरे राज्य से उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजना उचित नहीं समझा. आजाद का कार्यकाल खत्म होने वाले दिन उन्हें विदाई देते हुए PM नरेंद्र मोदी भावुक हो गए थे, 2022 में मोदी सरकार ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित किया था, कांग्रेस के कई नेताओं को यह पंसद नहीं आया था. इसपर नेताओं ने सुझाव दिया था कि आजाद को यह सम्मान नहीं लेना चाहिए था.