नई दिल्ली: आजकल लालू यादव (Lalu Yadav) भूमिहारों को एकजुट करने में लगे हुए हैं. वे बिहार के भूमिहारों को अपने पूर्वजों का सम्मान करना सिखा रहे हैं. ब्रह्मर्षि समाज के लोगों से एकजुट होने को कह रहे हैं. गुरुवार को वे कांग्रेस की ओर से पटना के सदाकत आश्रम में बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह (श्री बाबू) की जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए.
लालू ने कहा- ‘भूमिहार समाज के लोग कहते हैं कि श्रीबाबू उनकी जाति के हैं लेकिन वे अपने नेता को याद नहीं करते. उनकी जयंती और पुण्य तिथि नहीं मनाई जाती. इसलिए वह भूमिहार समाज के लोगों से अपने पूर्वजों को जानने की अपील करते हुए कहते हैं की वह श्रीबाबू को याद करें. लालू यादव ने आगे कहा कि 90 के दशक में भी वह और उनकी पत्नी राबड़ी देवी श्रीबाबू की मूर्ति पर माल्यार्पण करने के लिए जाते थे.
दरअसल, जमानत और किडनी ट्रांसप्लांट पर जेल से बाहर आने के बाद लालू यादव पिछले कुछ महीनों से सक्रिय हैं. सजायाफ्ता होने के कारण वह सीधे तौर पर चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार की राजनीति में मजबूती से स्थापित करने के लिए राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गये हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर वह मंदिरों और धार्मिक स्थलों के साथ जातिगत बंटवारा भी कर रहे हैं. मनोज झा (ठाकुर कुआं) के जरिए ब्राह्मण कार्ड खेलने के बाद वह बिहार के भूमिहारों को लुभाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भूमिहारों की आबादी 2.86 फीसदी है. पहले यह आंकड़ा साढ़े चार फीसदी के आसपास था. लालू यादव बीजेपी से सवर्ण जाति के वोट, खासकर भूमिहारों को अपने पाले में करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. यह कोशिश पिछले साल हुए एमएलसी चुनाव से ही दिखने लगी था .तब 24 सीटों पर हुए चुनाव में राजद ने 10 सवर्ण जाति के लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया था. इनमें सबसे ज्यादा 5 भूमिहार जाति के थे. भूमिहार जाति से आने वाले राजद प्रत्याशी कार्तिकेय कुमार, इंजीनियर सौरभ कुमार और अजय सिंह ने भी जीत हासिल की.
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दरअसल, बिहार की राजनीति में भूमिहार मतदाता हमेशा से ही लालू के खिलाफ रहे हैं. रणवीर सेना के समर्थक कहे जाने वाले इस जाति के लोगों को लालू यादव का कम्युनिस्टों के जरिए एमसीसी का समर्थन कभी पसंद नहीं आया. बिहार में पहले कांग्रेस के लालू के साथ आने के बाद अब नीतीश कुमार को बीजेपी का समर्थक बताया जा रहा है.
इधर 2005 से ही राजद बिहार की सत्ता से बाहर है. मतलब सीएम की कुर्सी तक लालू यादव के परिवार की पहुंच नहीं है. 2019 में लालू की पार्टी लोकसभा से भी बाहर हो गई. ऐसे में लालू यादव (Lalu Yadav) मुसलमानों के साथ-साथ सवर्ण जातियों को भी लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. श्रीकृष्ण जयंती समारोह में भागीदारी को भी इसी तरह के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.
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