राजनीति

यूं कांग्रेस के लिए बैकफायर कर गया ‘विकास पागल हो गया है’ का मुद्दा

नई दिल्ली: गुजरातियों के बारे में एक कहावत है कि वो सामान लेने से पहले 10-12 दुकानों पर जाकर रेट और क्वालिटी पता करते हैं और फिर वो अपनी सालों पुरानी दुकान से ही खरीद लाते हैं। कहने का मतलब है कि गुजरातियों का भरोसा किसी पर एक बार जम जाता है तो आसानी से डिगता नहीं। जब सोशल मीडिया पर चलने लगा कि विकास पागल हो गया है यानी ‘गाडो थई छो’ तो लोगों को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस इसे लपक लेगी। लेकिन शायद मस्ती मस्ती में चले इस जुमले को कांग्रेस मुद्दा समझने की भूल कर बैठी और वही उसके लिए बैकफायर कर गया। कम से गुजरात को विकास के नाम पर नहीं घेरना था।

इसकी वजह भी है, मोदी को आंकड़ों से खेलने में महारथ हासिल है। यहां आप मोदी को आसानी से मात नहीं दे सकते। 1994 से 2002 तक जो गुजरात की विकास दर थी, आंकड़ों के फील्ड में मशहूर वेबसाइट इंडिया स्पेंड डॉट कॉम के मुताबिक 2004 से 2012 तक यानी मोदी युग में वो दर 3.6 फीसदी ज्यादा थी। इस पीरियड में नेशनल एवरेज ग्रोथ 8.3 था तो गुजरात ने 10.1 फीसदी की दर से विकास किया। वो भी तब जब पहले से ही गुजरात एक विकसित राज्य है। सो सम्भावनाएं ऐसी वृद्धि की बिहार, उडी़सा, यूपी जैसे राज्यों में होती हैं। खेती में विकास दर का नेशनल औसत सालों से एक से तीन फीसदी होता है, गुजरात में 2000 से 2013 के बीच ये 11 फीसदी से ज्यादा था। वो भी तब इस दौरान कच्छ का भूकम्प और सूरत का प्लेग भी झेलना पड़ा। 

हालांकि महाराष्ट्र और तमिलनाडु फिर भी गुजरात जैसे आगे रहे, लेकिन मुंबई में फाइनेंशियल कैपिटल और साउथ के राज्यों में आईटी इंडस्ट्री का हब है, गुजरात में सर्विस इंडस्ट्री भी ना के बराबर है। केवल मैन्युफैक्चरिंग और खेती के बल पर गुजरात में इतना विकास हुआ। ये गुजरात का व्यापारी है जो बिना इनकम टैक्स के छापों के डर से अपने कर्मचारियों दो दीवाली पर फ्लैट और कार बांट सकता है। दूर गांवों तक फैला शानदार सड़कों का जाल हो या फिर कभी ना जाने वाली बिजली यूपी, बिहार, एमपी, उड़ीसा समेत आधे से ज्यादा राज्यों के लिए गुजरात का विकास हमेशा चौंकाने वाला होता है। नई सदी के शुरूआती दस सालों में गुजरातियों की प्रति व्यक्ति आय नेशनल औसत से तीन गुना हो गई।

भारत की जमीन का महज छह फीसदी हिस्सा है गुजरात और जनसंख्या के मामले में तो बस पांच फीसदी है, ऐसे में भारत की जीडीपी में 7.6 फीसदी की हिस्सेदारी देना और एक्सपोर्ट में 22 फीसदी के हिस्से पर कब्जा पाना बताते हैं कि गुजरात और गुजराती कितनी तरक्की कर रहे हैं। एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि गुजरात अगर एक देश होता तो चीन और साउथ कोरिया के बाद इसकी विकास दर होती यानी दुनियां में तीसरे नंबर पर। ऐसे में गुजरात के विकास पर उंगली उठाना, एक बेवकूफी ही हो सकती थी, जो साबित भी हुई।

हालांकि लोग कहते हैं कि गुजरातियों के स्वाभाव में मेहनत और व्यापार है, इसमें गुजरात की 1600 किलोमीटर की सामुद्रिक सीमा भी मदद करती है, जिसकी वजह से बीमारू राज्य (बिहार, एमपी, उड़ीसा, राजस्थान और यूपी आदि) मात खाते हैं। ऐसे में गुजरात को जरूरत थी एक ऐसे नेता की जो करप्ट ना हो, मोदी के वक्त में ऐसे बड़े आरोप सामने भी नहीं आए। पिछते साढ़े तीन सालों में भी मोदी की सरकार पर ऐसे आरोप नहीं लगे।

हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं था कि कांग्रेस या राहुल गांधी विकास पागल हो गया है के मुद्दे को उठाना चाहती थी, लेकिन जब पाटीदार आंदोलन से जुड़े एक युवक सागर सांवलिया ने फेसबुक पर एक सरकारी बस और टूटे हुए टायर की तस्वीर डालते हुए लिखा था, ‘’सरकारी बसें हमारी हैं, लेकिन इनमें चढ़ने के बाद आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी है. जहां हैं, वही रहिए क्योंकि विकास पागल हो गया है.’’। तो लोगों को ये मजाक क्रिएटिव लगा और वो शेयर होने लगा। तो मुद्दों की तलाश में भटकती कांग्रेस की गुजराती आईटी सेल वालों ने उठा लिया और कहा कि ये उनका आइडिया था।

राहुल या उसकी टीम ने ढंग से इसका विश्लेषण नहीं किया कि ये मस्ती मजाक में चल रहा है या गुजराती वाकई में विकास ना हो पाने से परेशान हैं। किसी भी शहर में मेट्रो ना शुरू होना एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन विकास पागल हो गया है, ये सीरियस लिए जाने वाला मुद्दा नहीं था। लेकिन बीजेपी ने खासतौर पर मोदी ने इसे सीरियस बना लिया और जवाब में नारा दिया, मैं गुजरात हूं, मैं विकास हूं… कहीं ना कहीं मोदी की सीरियस अपील चल भी जाती है। आखिरी दिन उन्होंने ट्विटर पर गुजराती जनता से आशीर्वाद भी मांगा और ये मैसेज लोगों तक भेजने की कोशिश की गुजरात का एक बेटा बढ़ रहा है और लोग उसे नीच बताने पर तुले हैं। इसके चलते गली मोहल्लों और व्हाट्सग्रुप्स, सोशल मीडिया में विकास को लेकर चर्चाऐं शुरू हुईं। इन सबमें गुजरात में काम कर रहे बाहरी राज्यों के लोगों का अपना रोल था, वो गुजरातियों को लगातार बताते रहे हैं कि हमारे राज्यों में बिजली, सड़क और कानून व्यवस्था के क्या हालात हैं और गुजरात कैसे उनसे बेहतर है। सो अगली बार राहुल एंड टीम को भले ही मोदी का मजाक बनाने का आइडिया सूझे तो ठीक है, लेकिन विकास पर उंगली फिर से उठाएंगे तो फिर दिक्कत हो सकती है।

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Aanchal Pandey

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