नई दिल्ली. राज्यसभा सीट को लेकर कुमार विश्वास और उनके समर्थक क्या कोई बड़ा धमाका करने वाले हैं? ये सवाल आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल खेमे में खलबली मचाए हुए है. सामने से सब कुछ शांत दिख रहा है लेकिन ये खामोशी आने वाले तूफान की आहट जैसी महसूस हो रही है. मनीष सिसोदिया के बचपन के दोस्त कुमार विश्वास के दिलो-दिमाग की उथल-पुथल कितनी बड़ी है, इसका अंदाज़ा 31 दिसंबर के उनके ट्वीट से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने नववर्ष का शुभकामना संदेश देते हुए लिखा है- ‘विदा 17, स्वागत 18! विस्तृत शुभकामनाएं नहीं दे पा रहा हूं, इसके लिए क्षमा करिए ! ईश्वर आपका मंगल करे.’
दिल्ली में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 5 जनवरी है और अब तक आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम से पर्दा नहीं उठाया है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, संजय सिंह के नाम को आलाकमान (पढ़िए अरविंद केजरीवाल) की हरी झंडी मिल चुकी है. बाकी दो नामों में कुमार विश्वास नहीं होंगे, इसके स्पष्ट संकेत दिए जा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के सभी विधायकों की बैठक बुधवार को अपने घर पर बुलाई है, जिसमें राज्यसभा चुनाव पर चर्चा होनी है. उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगाने के लिए पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की मीटिंग होनी है. चर्चा तेज़ है कि केजरीवाल गंगा ग्रुप ऑफ एजूकेशन के डॉ सुशील गुप्ता और चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन गुप्ता को राज्यसभा में भेजने का मन बना चुके हैं.
इस बात की भनक कुमार विश्वास कैंप को भी मिल चुकी है. सूत्रों का कहना है कि कुमार विश्वास या उनके समर्थक अपनी ओर से पहल नहीं करना चाहते, इसलिए वो पार्टी की ओर से उम्मीदवारों के नाम का एलान होने का इंतज़ार कर रहे हैं. कुमार विश्वास भी तब तक मीडिया या सोशल मीडिया पर इस बारे में कोई बात नहीं करने वाले. कुमार विश्वास कैंप से जुड़े लोगों का कहना है कि वो टिकट और कैंडिडेट की घोषणा के बाद मीडिया के सामने आएंगे. मुमकिन है कि कुमार जब 3 जनवरी या 4 जनवरी को मुंह खोलें तो आम आदमी पार्टी की राजनीति में कोई ज्वालामुखी विस्फोट हो जाए.
राज्यसभा सीट के लिए नज़रअंदाज़ किए जाने के बाद कुमार विश्वास क्या करेंगे, इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है. वो इसलिए क्योंकि कुमार विश्वास ने पिछले एक महीने के दौरान जो भी संकेत दिए हैं, वो सभी उनके लिए विकल्प में बदल सकते हैं. दिसंबर के पहले हफ्ते में आम आदमी पार्टी के वॉलंटियर्स की बैठक में कुमार विश्वास ने पार्टी से नाराज़ होकर अलग हुए सभी नेताओं को एकजुट करने की बात कही थी.
उन्होंने सुभाष वारे, अंजलि दमानिया, मयंक गांधी, धरमवीर गांधी, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव का नाम लेकर अपनी ख्वाहिश जताई थी. कुमार विश्वास पर बीजेपी का एजेंट होने का आरोप खुद आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान लगा चुके हैं. दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी से उनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं. उनके राष्ट्रवादी तेवर और राष्ट्रीय मुद्दों पर राष्ट्रवादी रुख को लेकर आम आदमी पार्टी में हमेशा एक बेचैनी रही है.
कुमार विश्वास ने अपनी राष्ट्रवादी सोच से भरा अपना एक वीडियो अपने ट्विटर हैंडल पर पिन कर रखा है जो विचारधारा के स्तर पर बीजेपी को उनके लिए मुफीद बनाता है. कुमार विश्वास को कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी का नया राजनीतिक अवतार भी पसंद आ रहा है. अभी 29 दिसंबर को शिमला में जब कांग्रेस विधायक आशा कुमारी ने एक महिला कांस्टेबल को थप्पड़ मारा और राहुल गांधी ने अपनी विधायक को आदेश दिया कि वो महिला कांस्टेबल से माफी मांगें, तो कुमार विश्वास ने बिना देरी किए ट्वीट किया- ‘गुड जॉब’. उन्होंने अपने ट्वीट में राहुल गांधी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल को टैग भी किया था.
राज्यसभा की तीन सीटों के लिए पार्टी के अंदर जो तीन दावेदार थे, उनमें आशुतोष का नाम भी सबसे आगे माना जा रहा था. अब लग रहा है कि आशुतोष का पत्ता भी कट गया है. चूंकि आशुतोष के साथ कुमार विश्वास की तरह जन समर्थन नहीं है, इसलिए उनके खुश या नाराज़ होने पर ना तो किसी की नज़र है, ना ही परवाह. आशुतोष भी अपनी बेपरवाही दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. 31 दिसंबर के बाद तीन दिनों में आशुतोष ने 7 ट्वीट किए हैं.
आशुतोष ने पहला ट्वीट मित्रों को नए साल की शुभकामना देने के लिए किया. फिर उन्होंने अपने पालतू कुत्तों मोगू और छोटू के साथ मॉर्निंग वॉक और कुहासे की तस्वीरें ट्वीट कीं. नए साल पर बार-बे-क्यू पर हाथ आज़माने की तस्वीरें ट्वीट कीं तो ये भी बताया कि मोगू, छोटू और बिल्लो भी आनंद उठा रहे हैं. उन्होंने अपनी पालतू बिल्लो की रजाई में लिपटी फोटो शेयर की. रणजी ट्रॉफी में विदर्भ की जीत की खबर भी आशुतोष को पोस्ट करने लायक लगी और आज की उनकी दूसरी पोस्ट थी अपनी पालतू बिल्लो के साथ ही है. राजनीतिक पत्रकार से नेता बने आशुतोष को तीन दिन में ज़िक्र करने लायक कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं दिखा, ये सामान्य सी बात भी असामान्य लगने लगी है.
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