जनवरी 2016 में कच्चे तेल की कीमत 30 डॉलर तक आ गई थी. जबकि मनमोहन सिंह के राज में 2008 में कच्चे तेल की कीमत 161.23 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी. ऐसे में मोदी सरकार चारों तरफ से घेरे में है कि महंगा कच्चा तेल खरीदने के बाद भी मनमोहन सिंह के राज में तेल की कीमत आज की तरह क्यों नहीं बढ़ पाईं. आखिर केंद्र सरकार तेल की कीमत थामने में कहां नाकाम रह रही है.
नई दिल्ली. पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दाम और डॉलर के मुकाबले रुपये की कम होती कीमत पर देशभर में हंगामा मचा हुआ है. क्रूड ऑयल की कीमत को मनमोहन सिंह की सरकार से कंपेयर कर मोदी सरकार को घेरा जा रहा है. ऐसे में पुराने आंकड़ों पर भी गौर करें तो यूपीए के दूसरे कार्यकाल में क्रूड आयल की कीमत सबसे उच्चतम स्तर पर रहीं. उस वक्त क्रूड ऑयल की कीमत 128 डॉलर तक पहुंच गई थी. उस वक्त तेल की कीमत संभालना मुश्किल था लेकिन मनमोहन सिंह थामे रहे और सत्ता छोड़ते वक्त पेट्रोल की कीमत 71.41 रुपये प्रति लीटर थी.
ऐसे में क्रूड ऑयल के हिसाब से बात की जाए तो जून में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि मनमोहन सरकार ने तेल की कीमत संभालने के लिए दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का ऑयल बॉन्ड लिया था जिसे हम चुका रहे हैं. इसके बाद उन्होंने एक बार फिर से अपना बयान दोहराया कि इस बॉन्ड की भरपाई करने की वजह से ही तेल की कीमत बढ़ रही हैं. धर्मेंद्र प्रधान के इस बयान पर कांग्रेस प्रवक्ता आरपीएन सिंह ने सफाई दी है. आरपीएन सिंह ने कहा कि अमेरिका ने उस वक्त ईरान पर प्रतिबंध लगा रखा था. इसलिए वहां से तेल तो आ रहा था लेकिन उसे पैसे नहीं चुकाए जा रहे थे. यह प्रतिबंध 2016 तक रहा जिससे मोदी सरकार भी दो साल ईरान को पैसे नहीं चुका पाई.
इसके अलावा आरपीएन सिंह ने कहा कि मोदी सरकार पेट्रोल पर 200 प्रतिशत से ज्यादा और डीजल पर 400 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स लगा रही है. खुद को हितैषी बताने वाली मोदी सरकार आखिर किसानों पर इतना टैक्स क्यों लगा रही है क्योंकि किसानों के लगभग सारे काम डीजल पर ही निर्भर करते हैं. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ाकर मोटा मुनाफा कमा रही है और जनता परेशान है.
बता दें कि सरकार की तरफ से एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि तेल की कीमत बाजार के डीलरों के हवाले हैं सरकार का इनपर कोई नियंत्रण नहीं है. हालांकि, एक आरटीआई ने मोदी सरकार की फिर से पोल खोल दी. आरटीआई में कहा गया है कि केंद्र सरकार कई देशों को 34 रुपये में पेट्रोल और 37 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से डीजल बेच रही है.
मनमोहन सिंह ने 2004 में पहली बार सत्ता संभाली उस वक्त पेट्रोल की कीमत 33. 71 रुपये प्रति लीटर थी. जनवरी 2004 में क्रूड ऑयल की कीमत 45 डॉलर के करीब थी जो कि 2008 में 161.23 डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई. उस वक्त पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ रही थी. 2013 में भी कच्चे तेल की कीमत 106 के करीब थी. मनमोहन सिंह ने पूरे कार्यकाल में महंगा कच्चा तेल खरीदा और अपना पद जाने तक 71.41 रुपये लीटर तक बेचा. आंकड़ों के मुताबिक, यूपीए के 10 वर्षों में पेट्रोल की कीमत में करीब 38 रुपये की वृद्धि हुई. यह वृद्धि प्रति वर्ष 3.80 रुपये की औसत से बैठती है.
Today the Modi govt is selling petrol to UK, Israel, Malaysia at ₹34/litre, yet to people of India it is sold at ₹80/litre: @SinghRPN in an AICC Press conferencehttps://t.co/glGZ9Jamee
— Congress (@INCIndia) September 7, 2018
2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने उस वक्त राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 71.41 रुपये प्रति लीटर थी. हालांकि, इस दौरान क्रूड ऑयल का दाम मनमोहन सिंह के कार्यकाल से कम रहा है. सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अभी क्रूड ऑयल के दाम उस स्तर तक नहीं पहुंचे हैं जहां मनमोहन सिंह के कार्यकाल में थे. आज अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमत 76.70 डॉलर प्रति बैरल है और पेट्रोल मिल रहा है 79.99 रुपये लीटर. मुंबई में पेट्रोल सबसे महंगा है. यहां पेट्रोल 86 रुपये प्रति लीटर के पार बिक रहा है.
भाजपा ने महंगाई को सिर्फ चुनावी मुद्दा बना कर लोगों को गुमराह करने का काम किया। भाजपा का दोगला चेहरा अब सामने आ गया है। लोग झेल रहे हैं महंगाई की मार हर मुद्दे पर नाकाम सरकार pic.twitter.com/EgaZfFGVSW
— Congress (@INCIndia) September 7, 2018
आजादी के 72वें साल में 72 रुपये का हुआ डॉलर, 1947 से 2018 तक ऐसा रहा Rupee vs Dollar का सफर