Congress Massive Victory Assembly Election Results 2018: साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के नाम का इतना बड़ा तूफान आया कि देश में सत्ताधारी कांग्रेस महज 44 सीटों पर ही निपट गई. उस समय लोगों को लगा कि अब कांग्रेस कहीं नहीं बची है. फिर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने और गिरती हुई कांग्रेस पार्टी संभलने लगी. गुजरात में चुनाव नहीं जीता लेकिन पहले से मजबूत जरूर हुए. अब 11 दिसंबर 2018 के नतीजों ने तो जैसे कांग्रेस पार्टी में फिर से जान फूंक दी है.
नई दिल्ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में अबकी बार, मोदी सरकार का नारा इतना जोर से चला और नरेंद्र मोदी की आंधी इतनी तेज उड़ी कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता जमीन पर नजर आए और पार्टी की वो दुर्गति हुई कि लोकसभा में 44 सीटों के साथ उसे कायदे से नेता विपक्ष का दर्जा तक मिलना मुश्किल हो गया. तब से कांग्रेस इतना हारी, इतना हारी कि लोगों ने ये मान लिया कि कांग्रेस या राहुल गांधी के बूते की बाहर की बात है कि वो बीजेपी के विजय अभियान को रोक पाए. एक मई महीने में 2014 की चिलचिलाती गर्मी का वो मौसम था और एक ठंड भरी दिसंबर का ये मौसम.
अरुणाचल प्रदेश और पंजाब की चुनावी जीत को छोड़ दें तो इस पूरे चार साल से ज्यादा वक्त में कभी ऐसा मौका नहीं आया जब लगा हो कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी या कांग्रेस किसी भी तरह से नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता लहर और अमित शाह की रणनीति के सामने टिक सकती है. एक के बाद एक राज्य हार रही कांग्रेस ने बीजेपी को कांग्रेस मुक्त भारत नारा गढ़ने का मौका दिया. और अब चार साल बाद एक साथ बीजेपी की सरकार वाले तीन राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान छीनकर कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों और वोटरों में ये आस जगाई है कि वो बीजेपी से लड़ सकती है और जीत भी सकती है. कांग्रेस के अंदर ये उम्मीद और उत्साह 2019 के आम चुनाव से पहले वो संजीवनी है जो उसके कार्यकर्ताओं में जोश भरेगी और बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की कोशिशों को परवान चढ़ाएगी.
मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप से घिरी कांग्रेस ने 2014 में लोकसभा चुनाव से हारने का जो सिलसिला शुरू किया तो एक के बाद एक कई राज्य हारे. 2014 में वो अरुणाचल प्रदेश का चुनाव जीती पर अमित शाह की चाणक्य नीति ने उनके विधायकों को तोड़कर पहले तो पेमा खांडू की अगुवाई में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल बनवाया और बाद में उस पार्टी का बीजेपी में विलय कराकर राज्य में दूसरी बार पेमा खांडू के तौर पर बीजेपी का सीएम बनाया. 2014 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हारकर सरकार गंवाई. 2015 में कांग्रेस के हाथ से निकल चुकी दिल्ली पर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली और उसे एक विधायक तक नहीं मिला.
2016 में भी कांग्रेस की हार का कारवां बढ़ता रहा. पार्टी केरल में लेफ्ट के हाथों हारी तो असम में बीजेपी के हाथों. असम में तो बीजेपी की जीत में कांग्रेस के ही पुराने नेता हिमंत विश्वशर्मा बड़े रणनीतिकार रहे. कांग्रेस को सांत्वना मिला पुड्डुचेरी में जहां उसकी सरकार बन गई. 2017 में कांग्रेस के हाथ से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और मणिपुर की सत्ता निकल गई. पंजाब में पार्टी जीती लेकिन ये सबको मालूम है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को रोकने के लिए आखिरी समय में रणनीतिक तौर पर अकाली-बीजेपी कार्यकर्ताओं ने अपने वोट कांग्रेस की तरफ बढ़ा दिए. 2018 में बीजेपी के हाथ से तीन राज्य छीनने की हैट्रिक लगाने से पहले भी कांग्रेस इस साल मेघालय और कर्नाटक में सरकार गंवा चुकी है. कर्नाटक में अब वो दूसरे नंबर की पार्टी बनकर एचडी कुमारस्वामी सरकार में शामिल है.