उदयपुर, राजस्थान में तीन दिन तक कांग्रेस के चिंतन शिविर का आयोजन किया गया था, इस चिंतन शिविर से कुछ उम्मीदें जगी थी कि पार्टी अब बदलाव की ओर बढ़ेगी. वहीं, उदयपुर में 3 दिन के चिंतन शिविर को लेकर कांग्रेस के नेता भी उम्मीद से भरे थे. सोनिया गांधी ने उद्घाटन भाषण में जब […]
उदयपुर, राजस्थान में तीन दिन तक कांग्रेस के चिंतन शिविर का आयोजन किया गया था, इस चिंतन शिविर से कुछ उम्मीदें जगी थी कि पार्टी अब बदलाव की ओर बढ़ेगी. वहीं, उदयपुर में 3 दिन के चिंतन शिविर को लेकर कांग्रेस के नेता भी उम्मीद से भरे थे.
सोनिया गांधी ने उद्घाटन भाषण में जब कहा कि आप इस शिविर में कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं तो ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस शिविर में पार्टी नेतृत्व पर भी मंथन होगा, लेकिन तीन दिनों के शिविर के समापन में जो निचोड़ सामने आया, वह था अल्पसंख्यकों, दलितों एवं ओबीसी वर्गों के लिए कोटा और 2 अक्टूबर से यात्रा का ऐलान, साथ ही नेताओं को जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने की भी सलाह दी है, लेकिन इस पूरे शिविर में जो सबसे अहम बात थी नेतृत्व को लेकर, जिसपर अकसर जी-23 के नेता भी सवाल उठाते रहे हैं, उस पर कोई चर्चा नहीं की गई.
उदयपुर के इस तीन दिवसीय चिंतन शिविर में जिन बातों पर बात हुई वह थी, कमजोर वर्गों के नेताओं को कोटा देना, सत्ता में आने पर किसानों के लिए एमएसपी गारंटी देना और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से जमीन पर उतरने को कहा गया. लेकिन, जिन तीन अहम सवालों की चिंता इस चिंतन शिविर में नहीं की गई, वो थे- कांग्रेस पार्टी चुनाव कैसे जीतेगी, अगले कुछ साल पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा और कैसे पार्टी भाजपा के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुकाबला करेगी?
दरअसल मौजूदा समय में कांग्रेस के सामने जो चुनौतियाँ हैं वे इन तीनों का ही मिला-जुला रूप है. ऐसे में, उम्मीद थी कि उदयपुर में हुए इस चिंतन शिविर से पार्टी का भी उदय होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
कांग्रेस के पूरे चिंतन शिविर में भारी-भरकम शब्दों में बातचीत हुई. विचारधारा की लड़ाई पर बात हुई और पार्टी ने गत वर्षों में जनता से कट जाने की बात को भी स्वीकारा. वहीं, खुद राहुल गांधी ने कहा कि हमें पद से ज्यादा चर्चा अपने काम की करनी होगी, लेकिन यह काम कौन करेगा और किसे क्या जिम्मेदारी दी जाएगी, इसपर कोई बात नहीं हुई. एक तरफ कांग्रेस लीडरशिप यह दावा करती दिखी कि उसने असंतुष्टों की भी बात सुनी है, लेकिन उनके सुझावों पर कोई अमल होता नहीं दिखा. जी-23 की मांग थी कि कांग्रेस संसदीय बोर्ड का गठन किया जाए, इस पर भी कोई चर्चा नहीं की गई.
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