उदयपुर, उदयपुर में तीन दिन तक चले कांग्रेस के चिंतन शिविर रूपी समुद्र मंथन से क्या निकला, ये सवाल कांग्रेसी भी एक दूसरे से पूछ रहे हैं. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने आरएसएस व भाजपा को निशाने पर लिया और खूब लानत मलानत की. समाज को बांटने व नफरत फैलाने पर घेरा, 2 अक्टूबर से भारत भ्रमण का फैसला किया गया लेकिन यदि कुछ गुम रहा तो वो ये कि कोई रास्ता नहीं सुझाया गया कि बीजेपी को हराएंगे कैसे. उग्र हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुकाबला कांग्रेस कैसे करेगी. राहुल गांधी ने ये तो कहा कि उनका दृष्टिकोण एकदम साफ है कि बीजेपी और आरएसएस की नफरत वाली राजनीति से संघर्ष करना है लेकिन संघर्ष कैसे करेंगे और कैसे नफरत वाली राजनीति का जवाब देंगे ये नहीं बताया.
दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये अनुत्तरित रह गया कि कांग्रेस का नेता कौन होगा. राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सिर्फ इतना कहा कि एक को छोड़कर बाकी सभी राहुल गांधी के पक्ष में थे. यानी कि राहुल गांधी को ही फिर से अध्यक्ष बनाने का तानाबाना बुना जा रहा है. ऐसे में सवाल उभरता है कि राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाया जाना है तो फिर इतनी देर क्यों. राहुल गांधी 2018 में अध्यक्ष बने थे और 2019 का चुनाव हारने के बाद इस्तीफा दे दिया था. तब से लेकर अभी तक नेतृत्व को लेकर कांग्रेस जूझ रही है. गांधी परिवार से बाहर नेता खोजने की पैरोकारी की गई, असंतुष्ट नेताओं ने चिट्ठी लिखकर अपनी आवाज बुलंद की लेकिन कांग्रेस पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. वह परिवारवाद की खोल से बाहर निकलने को तैयार नहीं है. उसे राहुल गांधी से इतर कोई नेता दिखाई नहीं दे रहा है, यहां तक कि प्रियंका गांधी भी नहीं.
आसमान छूती महंगाई और सुरसा की तरह मुंह बाये बेरोजगारी के बावजूद इस साल के अंत में हिमाचल व गुजरात में होने वाले चुनाव को लेकर बीजेपी अभी से जुट गई है. विपक्ष शोर मचा रहा है कि आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है लेकिन भगवा पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. महंगाई और बेरोजगारी को हनुमान चालीसा, ज्ञानवापी, ताजमहल व कुतुबमीनार जैसे मुद्दों से ढक दिया है. बीजेपी आम जनता को मथने वाले मुद्दों से बिल्कुल बेपरवाह है.
डीजल-पेट्रोल, सीएनजी पीएनजी तथा खाने पीने की चीजों की महंगाई को लेकर बात किजिए सरकार समर्थक ऐसे ऐसे उदाहरण पेश करेंगे मानों कुछ हुआ ही नहीं है. सोशल मीडिया पर देख लिजिए इस महंगाई के समर्थन में तर्क मिल जाएंगे लेकिन कांग्रेस इस बात को समझ ही नहीं पा रही है कि जिन लोगों के पास वो जाने की बात कर रही है उसका मोदी सरकार से मोहभंग नहीं हो रहा है. जब तक लोगों को उधर से उब नहीं होगी कांग्रेस की दाल नहीं गलेगी लेकिन कांग्रेस इसे समझने को तैयार नहीं दिखती.
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