नई दिल्ली. तमिलनाडु के कन्याकुमारी से कांग्रेस के महत्वाकांक्षी सफर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत हो गई है. 3570 किमी लंबी यह यात्रा पांच महीनों में 12 राज्यों से होकर गुजरेगी, राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता इस यात्रा में भाग ले रहे हैं, ये यात्रा बुधवार को कन्याकुमारी से शुरू हो गई है. यात्रा शुरू करने से पहले राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शहीद स्मारक पर पहुंचे थे और वहां उन्हें श्रद्धांजलि दी थी. यात्रा के दौरान राहुल गांधी के साथ राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल भी मौजूद थे.
योजना के मुताबिक यह पदयात्रा दो सत्र में चलने वाली है, यानी पहली शिफ्ट में सुबह साढ़े 10 बजे यात्रा शुरू होगी और दोपहर में साढ़े तीन बजे तक ये यात्रा चलेगी. एक दिन में 22 से 23 किमी की दूरी कवर करने की योजना बनाई गई है, इस यात्रा में अलग-अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले 117 कांग्रेस नेता शामिल होंगे, साथ ही कांग्रेस के कार्यकर्ता भी मार्च करेंगे.
इस यात्रा के लिए 60 कंटेनर तैयार किए गए हैं, 150 दिनों की इस यात्रा में राहुल गांधी भी कंटेनर में ही आराम करेंगे. सोते समय एक गांव के आकार में इन कंटेनरों को लगाया जाएगा, इनमें कुछ कंटेनर में एयर कंडीशनर भी लगाए गए हैं. जानकारी के मुताबिक यात्रा में शामिल लोग स्थानीय भोजन करेंगे और गांव के लोग भोजन तैयार करेंगे. वहीं सभी यात्री साथ में खाना खाएंगे, यात्रा के दौरान कोई भी नेता होटल में नहीं रुकेगा.
कहा जा रहा है कि इस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी की री-लॉन्चिंग करने की तैयारी में है, अब अगर ऐसा है तो कांग्रेस का राहुल गांधी पर ये सबसे बड़ा और आखिरी सियासी दांव भी हो सकता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले 10 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था और इसका ठीकरा राहुल गाँधी के सर पर ही फूटा था. 2019 के लोकसभा चुनाव की हार पर भी राहुल का ही नाम लिखा गया. सियासत के मैदान में राहुल भले दो दशक से सक्रिय हों, लेकिन चुनावी राजनीति में अभी तक अपना कोई जादू नहीं दिखा पाए हैं. ऐसे में उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं और कांग्रेस नेता एक-एक कर पार्टी से किनारा कर कर रहे हैं.
अब कांग्रेस के बिखरते जनाधार को एकजुट करने के मकसद से ही शायद राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकले हैं. पांच महीने तक चलने वाली इस यात्रा से वो कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भरने और पार्टी के संगठन को और मजबूत करने की कवायद में नज़र आने वाले हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इस पदयात्रा के जरिए अपने खोए हुए सियासी जनाधार के साथ-साथ राहुल गांधी को एक मजबूत नेता के तौर पर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले स्थापित कर पाएगी? या कांग्रेस की ये आखिरी कोशिश भी नाकाम होगी?
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