आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन को लेकर काफी सजग रहता है. रमन सरकार पुराने कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाई थी जिसे विरोध के चलते वापस लेना पड़ा. इसी साल के अंत में छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं. भू-राजस्व संशोधन विधेयक के विरोध में कांग्रेस भी आदिवासियों के साथ आ गई थी ऐसे में आगामी नफा नुकसान को देखते हुए रमन सरकार ने इस विधेयक को वापल लेने का फैसला किया.
रायपुर. आदिवासियों की नाराजगी और चौतरफा दवाब के बाद रमन सिंह की छत्तीसगढ़ सरकार ने भू-राजस्व संशोधन विधेयक वापस लेने का फैसला लिया है. नई साल की पहली कैबिनेट मीटिंग में इस संशोधन विधेयक की वापसी अहम मुद्दा थी जोकि आदिवासियों की मुहिम के कारण रंग लाई. भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक में राज्य सरकार ने आदिवासियों की जमीन विकास कार्यों के लिए अधिग्रहित और खरीद फरोख्त करने का फैसला लिया था. वहीं आदिवासी समाज इसे भारतीय संविधान का उल्लंघन करार दे रहा था.
बता दें कि भू-राजस्व संशोधन विधेयक को लेकर राज्य के आदिवासी मंत्रियों समेत प्रदेश के कई कद्दावर नेताओं ने भी आदिवासी समाज को इस विधेयक के बारे में जनता को प्रभावित करने का प्रयत्न किया था. उन्होंने इसके बारे में भी बताया था कि आखिर सरकार संशोधन क्यों करना चाहती है. इसके बावजूद सरकार के प्रयास विफल हुए. सर्व आदिवासी समुदाय ने राज्य सरकार के तमाम दावों को खारिज कर आंदोलन का रुख अख्तियार करने का फैसला कर लिया. विरोध के बाद आखिर रमन सरकार ने विधेयक वापस लेने का फैसला किया.
भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक में आदिवासियों की जमीन लिये जाने का कानून पिछले शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था. इसके बाद से ही आदिवासी समुदाय लगातार इस कानून का विरोध कर रहे थे. आदिवासी समाज के साथ कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सरकार के विरोध में लामबंद थी. कांग्रेस ने बुधवार को राज्यपाल बीडी टंडन से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा था जिसमें इसे आदिवासियों के लिए काला कानून करार दिया था. वहीं बीजेपी सरकार के कुछ नेता भी दबी जुबान से विधेयक का विरोध कर रहे थे. छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं ऐसे में सरकार कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है. इन सब कारणों को देखते हुए कैबिनेट बैठक में इस संशोधन को लेकर बन रहे हालात और विरोध प्रदर्शन पर कफी देर तक चर्चा हुई, जिसके बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भू-राजस्व संहिता संशोधन कानून वापस लेने का फैसला कर लिया.
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