आयुष्मान भारत: जानिए क्या है पांच लाख के बीमा का सरकारी गणित, कहां से आएगा पैसा?

मोदी केयर के नाम से जानी जा रही हेल्थ स्कीम आयुष्मान भारत के लिए पैसा कहां से और कैसे आएगा यह जानना काफी दिलचस्प होगा. GST और नोटबंदी के बाद यह मोदी सरकार का बड़ा कदम है. वित्त सचिव हंसमुख अधिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 6 महीने तो इस योजना को लागू करने में लग सकते हैं. जाहिर है पहला साल है और नई तरह की योजना है, इस योजना से जुड़ने वाले तमाम कर्मचारियों को ट्रेनिंग देनी होगी, फिर 10 करोड़ परिवारों से जुड़ना और उनका डाटा और पेपर्स को सत्यापित करना आसान काम तो नहीं. सो ये भी हो सकता है कि 10 करोड़ परिवारों का टारगेट इस साल पूरा ही ना हो पाए.

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आयुष्मान भारत: जानिए क्या है पांच लाख के बीमा का सरकारी गणित, कहां से आएगा पैसा?

Aanchal Pandey

  • February 2, 2018 8:26 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. देश ना नोटबंदी के लिए तैयार था और तमाम कवायद के वाबजूद भी ना ही जीएसटी के लिए. ऐसे में मोदी सरकार ने जब 10 करोड़ परिवारों का पांच पांच लाख का हेल्थ बीमा करने का ऐलान किया तो भी लोग ऐसी किसी खबर के लिए तैयार नहीं थे. इन खबर डॉट कॉम के अलावा शायद ही किसी ने इस हेल्थ स्कीम के बारे में अनुमान लगाया हो. जाहिर है जब बड़ा फैसला होता है, तो फैसला लेने वाले और उस पर रिएक्शन या आलोचना करने वाले भी पूरी तरह तैयार नहीं होते. वही इस योजना के बारे में हो रहा है, सरकार जहां नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े बदलावों की तरह ही खुद को फुल कॉन्फिडेंस में दिखा रही है, वहीं आलोचक इतनी बड़ी योजना की कामयाबी और उसके लिए जारी किए गए महज 2000 करोड़ के फंड पर सवाल उठा रहे हैं. तो ऐसे में आम आदमी को ये समझ नहीं आ रहा कि भरोसा सरकार पर करें या फिर उसकी क्षमता पर सवाल उठाने वालों पर. हमने तमाम बयानों, रिपोर्ट्स और आंकड़ों के आधार पर इस आयुष्मान भारत के तहत आने वाली हेल्थ बीमा योजना का गणित समझने की कोशिश की है, आप भी समझिए.

अब तक तमिलनाडु, राजस्थान और केरल जैसे राज्य ऐसी फ्री हेल्थ बीमा स्कीमें शुरू कर चुके हैं. राजस्थान और केरल की सरकारों ने पांच लोगों के परिवार के लिए 350 रुपए तक के प्रीमियम में दो लाख तक के कवर वाली हेल्थ बीमा स्कीम कामयाबी से चलाई हैं. यानी अगर पांच लाख तक का कवर होगा तो प्रीमियम 850 रुपए के आसपास पड़ना चाहिए. मोदी सरकार की हेल्थ बीमा स्कीम में परिवार में सदस्यों की संख्या की कोई सीमा नहीं है, इन स्कीमों में पांच लोगों की सीमा है. तमिलनाडु ने 5 करोड़ लोगों के हेल्थ बीमा के लिए 800 करोड़ की राशि अपने बजट में रखी, इस हिसाब से 50 करोड़ लोगों के लिए भी 8000 करोड़ रुपए तो चाहिए हो सकते हैं. इस स्कीम की शुरुआत 2 अक्टूबर से देशभर में होगी.

अब जो रकम अरुण जेटली ने इस बीमा योजना के लिए बजट में इस साल रखी है वो 2000 करोड़ रुपए की है. जैसे ही ये लोगों को पता चला उन्होंने सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल्स की डिबेट में हंगामा काट दिया. जो अभी तक इस बीमा योजना पर ही सवाल उठा रहे थे, अब वो योजना की तो तारीफ करने लगे लेकिन 2000 करोड़ से क्या होगा, इसको लेकर माहौल बनाने में जुट गए. इस हिसाब से तो हर व्यक्ति के हिस्से में महज 40 रुपए का प्रीमियम आएगा, इतने कम प्रीमियम पर कौन कंपनी लोगों का बीमा करेगी? तो सरकार को भी समझ आया और नीति आयोग के चेयरमेन अमिताभ कांत से लेकर वित्त सचिव हंसमुख अधिया ही नहीं स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और बीजेपी के सभी प्रवक्ता इस योजना की सफाई के लिए टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर मैदान में उतर गए.

अब चूंकि ये योजना ही नीति आयोग के सुझाव पर लागू की गई है, तो सबसे ज्यादा जानकारी नीति आयोग के चैयरमेन अमिताभ कांत के पास ही है. अमिताभ कांत का कहना है कि हम कोई जल्दबाजी में इस योजना को लेकर नहीं आए हैं, पूरा गणित लगा लिया गया है. एक परिवार का प्रीमियम 1100 रुपए आएगा, जिससे करीब 5500 करोड़ का एक साल का खर्च 10 करोड़ परिवारों पर आएगा, अगर अनुमानित सदस्य संख्या एक परिवार में पांच की मानी जाए तो. जबकि नीति आयोग के वाइस चेयरमेन राजीव कुमार ने इस गणित को बेहद सही ढंग से समझाया, कि सरकार ने इस साल 6000 करोड़ का बजट इस बार हेल्थ मिनिस्ट्री का बढ़ाया है. करीब 47000 करोड़ से करीब 53 हजार करोड़ कर दिया है. सबसे बड़ी बात कि इस साल हेल्थ मिनिस्ट्री को जो एक फीसदी का सैस लगाया गया है, उससे भी करीब 11,000 करोड़ रुपए मिलने हैं, सो कोई परेशानी आनी वाली नहीं है. वैसे भी अब तक जो 30,000 रुपए तक के कवर वाला बीमा गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को दिया जाता था, उसको आवंटित धन राशि भी इसी में शामिल होगी.

अगर इस योजना के आइडिया से लेकर लागू करने तक की पूरी योजना बनाने वाले दोनों अधिकारियों की बातें सुनें तो वाकई में ये कोई बड़ी राशि नहीं है. 2 हजार करोड़ बजट में मिल चुके हैं, 11 हजार करोड़ रुपए सेस के जरिए आने हैं, जबकि इसके आधे से भी कम में काम चल जाने की उम्मीद है. ये सही है कि जैसा सरकार सोचती है, वैसा एकदम से होता नहीं है, ऐसे में सरकार ने चाहे नोटबंदी हो या जीएसटी, दोनों ही को लागू करते वक्त बीच बीच में सरकार ने कई बार नए नियम बनाए या बदले, जीएसटी काउंसिल भी कई बार टैक्स की दरें कम कर चुकी है. लेकिन ऐसा हर किसी नई तरह की योजना और ढांचागत बदलाव किए जाते वक्त होता है, इस हेल्थ बीमा में भी होगा क्योंकि सरकार ने पांच लोगों का आदर्श परिवार रखा है, जो बड़ा भी हो सकता है. दूसरे फिर फॉर्म भरते वक्त कई तरह की आधार कार्ड जैसी शर्तें होंगी, बैंकों या हॉस्पिटलों के बाहर लाइन लग सकती है.

खुद वित्त सचिव हंसमुख अधिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 6 महीने तो इस योजना को लागू करने में लग सकते हैं. जाहिर है पहला साल है और नई तरह की योजना है, इस योजना से जुड़ने वाले तमाम कर्मचारियों को ट्रेनिंग देनी होगी, फिर 10 करोड़ परिवारों से जुड़ना और उनका डाटा और पेपर्स को सत्यापित करना आसान काम तो नहीं. सो ये भी हो सकता है कि 10 करोड़ परिवारों का टारगेट इस साल पूरा ही ना हो पाए. हालांकि आज वित्त मंत्री अरुण जेटली ने खुद इस योजना से जुड़े कई पहलुओं पर बात की, बताया कि निजी और सरकारी दोनों हॉस्पिटल्स में इलाज हो सकेगा. ये भी बताया कि ये योजना 1 अप्रैल से लागू होगी, ये भी बताया कि ये कैशलेश होगी. जेटली ने बताया कि ये भी प्रस्ताव था कि लोग खर्च कर लें, बाद में पेमेंट ले लें, लेकिन इसमें काफी समस्याएं आएंगी. इसलिए इलाज के लिए उन्हें पैसा देना ही ना पड़े, ऐसी व्यवस्था की जाएगी. हेल्थ मिनिस्टर नड्डा ने ये भी बयान दिया है कि लोग अभी बस हेल्थ बीमा स्कीम की ही बातें कर रहे हैं, लेकिन हमारे पास कई और मॉडल्स हैं, जिनको हम जल्द सामने लाएंगे.

जिन आम लोगों के पास हेल्थ बीमा अभी तक नहीं है, उनको भी इस बात को समझना होगा कि तीन तरह की हेल्थ केयर होती हैं. एक बिलकुल प्राइमरी लेवल की, उसके लिए 1200 करोड़ की लागत से तमाम तरह की सुविधाओं वाले वैलनेस सेंटर खोले जा रहे हैं और जो सरकारी हॉस्पिटल/प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र उनके गांव, ब्लॉक में चल रहे हैं, उनको इसी प्रकार की हेल्थ केयर के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस बीमा योजना में प्राइमरी हेल्थ केयर का कोई प्रावधान नहीं होगा. दूसरे और तीसरे यानी गंभीर स्तर की हेल्थ केयर की जरूरत के लिए ही ये बीमा स्कीम काम करेगी. यानी आपको या आपके परिजनों को जब तक हॉस्पिटल में एडमिट करवाने की नौबत ना आ जाए, इस हेल्थ बीमा का आप लाभ नहीं ले सकेंगे. उसमें भी अभी नियम जारी होंगे कि किन किन बीमारियों या ऑपरेशंस को इस योजना में कवर किया गया है. यानी कोई ऐसी बीमारी है, जिस पर आपके परिवार के लिए तय रकम पांच लाख से ज्यादा खर्च आना है तो बाकी आपको देना पड़ सकता है. लेकिन पांच लाख तक का खर्च सरकार देगी जो अब तक नहीं मिलता था. सरकारी हॉस्पिटल्स में ऑपरेशन जरूर मुफ्त होते थे, लेकिन निजी में वो सुविधा नहीं थी. इस योजना के जरिए आपको निजी और सरकारी हॉस्पिटल्स की वो लिस्ट दे दी जाएगी, जो उनके पैनल में होंगे. आपके जिले, मंडल या प्रदेश के भी हॉस्पिटल्स की सूची आपको मिल जाएगी.

अब चूंकि इस योजना में ऑपरेशन या हॉस्पिटल्स में एडमिट करने के लिए रैफर करने वाले डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स की बड़ी भूमिका होगी और सरकारी पैसा है तो ये भी डर है कि कहीं एनएचआरएम जैसा हाल ना हो. कहीं सरकारी पैसों की बंदरबांट करने के चक्कर में उन्होंने बीमा कंपनियों से हाथ मिला लिया तो दिक्कत हो सकती है. फिर भी आधार कार्ड से लिंक होने के चलते सरकार को इस घपले को रोकने में आसानी होगी. ऐसे में इससे जुड़ी अनियमितताओं की, कम पढ़ी लिखी जनता और निजी हॉस्पिटल्स की तनातनी की, स्कीम के दुरुपयोग की जो भी खबरें आएंगी, वो सरकार को साल भर वैसी ही परेशानियां दे सकती हैं, जैसे नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के महीनों तक हुई थीं. ये अलग बात है कि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो ये योजना गेमचेंजर साबित होगी, सोशल मीडिया पर पकोड़े और बांस में ही उलझ कर रह गया मिडिल क्लास ना नोटबंदी के बाद यूपी की बड़ी जीत को भांप पाया था और ना ही 2019 में मोदी की वापसी की संभावनाओं को, जिसमें ये फ्री हेल्थ बीमा स्कीम बड़ा खेल कर सकती है.

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