लखनऊ. 2014 में मोदी की केन्द्र में अप्रत्याशित जीत के साथ सरकार बनाना और फिर योगी का प्रचंड बहुमत से यूपी की सत्ता में काबिज होना, एक तरह से सपा बसपा जैसी यूपी की विपक्षी पार्टियों के लिए झटके जैसा था. उन्हें उबरने के लिए संजीवनी चाहिए थी, उन्हें संजीवनी दी उन तीन लोकसभा सीटों ने जहां कि उपचुनाव होना था. बीएसपी उपचुनाव नहीं लड़ती और इसके चलते उसने अखिलेश यादव की अपील पर सपा के कैंडिडेट को सपोर्ट करने का मूड बना लिया. कांग्रेस ने भी मोदी विरोध में अपने कैंडिडेट खड़े नहीं किए और नतीजा ये हुआ कि बीजेपी वो तीनों ही सीट हार गई. जिनमें से एक सीट थी योगी के सीएम बनने के बाद खाली हुआ गोरखपुर सीट, जहां से वो 5 बार जीते थे, दूसरी थी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या की खाली हुई सीट फूलपुर और तीसरी सीट थी दिग्गज बीजेपी नेता हुकुम सिंह की मौत के बाद खाली हुआ सीट कैराना.
आरएलडी ने कैराना पर अपना उम्मीदवार दिया तबस्सुम बेगम जो सपा के टिकट पर लड़ी, निषाद पार्टी के प्रवीन निषाद को सपा की टिकट पर गोरखपुर से लड़ाया गया और फूलपुर पर नागेन्द्र सिंह पटेल को टिकट दिया गया. तीनों ही उम्मीदवारों ने बीजेपी के उम्मीदवारों को धूल चटा दी. फूलपुर से कौशलेन्द्र पटेल 59,613 वोट से हारे, कैराना से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह 44,618 वोटों से हारीं तो गोरखपुर से योगी के पसंदीदा उम्मीदवार उपेन्द्र शुक्ला को 21,881 वोटों से हारे. इस हार से सीएम और डिप्टी सीएम की काफी किरकिरी हुई, यहां तक कि संगठन महामंत्री सुनील बंसल की भी, क्योंकि केन्द्र ने ये उपचुनाव इन तीनों के भरोसे ही छोड़ दिए थे.
इस बार बीजेपी ने रणनीति बदली, सीएम योगी और डिप्टी सीएम मौर्या ने जहां सरकारी विकास कार्यक्रमों के जरिए इन तीनों सीटों पर ही ज्यादा ध्यान दिया, वहीं सुनील बंसल ने इन इलाकों में कई बार खुद दौरे करके संगठन की मुश्कें कस दीं, तीनों ने ही इन सीटों को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया. तीनों ही सीटों पर कैंडिडेट भी बदल दिए गए. गोरखपुर के जीते सांसद प्रवीन निषाद को बीजेपी में शामिल करके संत कबीर नगर से बीजेपी का टिकट दे दिया गया और गोरखपुर से भोजपुरी सुपरस्टार रविकिशन को टिकट दिया. ये तय था कि वहां से ब्राह्मण को ही टिकट देना है और निषाद बोट दिलाने की जिम्मेदारी प्रवीन निषाद और निषाद पार्टी चलाने वाले उनके पिता पर डाल दी गई. मेहनत रंग लाई खबर लिखे जाने तक रवि किशन 2 लाख 98 हजार वोटों से आगे चल रहे थे.
फूलपुर से जहां इस बार सपा ने पंधारी यादव को मैदान में उतारा तो बीजेपी ने केशरी देवी पटेल को उतारा और रणनीति रंग लाई, खबर लिखे जाने तक 1 लाख 11 हजार वोटों से वो सपा कैंडिडेट से आगे चल रही थीं. तो कैराना से बीजेपी ने मृगांका की टिकट काटकर गंगोह के विधायक प्रदीप कुमार को टिकट दिया और वो खबर लिखे जाने तक 85 हजार वोट से तबस्सुम बेगम से आगे चल रहे थे.
इन तीनों की हार की एक बड़ी वजह ये भी है कि पिछली बार की तरह कांग्रेस ने यहां समर्थन नहीं किया बल्कि अपने उम्मीदवार भी उतारे जिसने गठबंधन के वोट काटे. इसके अलावा इस बार खुद मोदी ने सभाएं कीं. ये भी कहा जा रहा है कि तीनों उम्मीदवार क्योंकि सपा के थे, इसलिए बसपा का पूरा वोट भी ट्रांसफर नहीं हुआ है. दोनों ही चुनावों में बसपा कैंडिडेट ना होने से वहां का कैडर भी बिखर गया था. जो भी ये तीनों सीटें जीतकर योगी, मौर्या और सुनील बंसल ने अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस पा ली है.
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