कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा बीजेपी पर संविधान विरोधी आरोप लगाए जाने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पलटवार किया है. शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष के बीजेपी के दलितविरोधी और संविधानविरोधी होने के आरोपों पर कहा कि राहुल गांधी के परिवार ने आंबेडकर का अपमान किया और कांग्रेस का उद्देश्य संविधान बचाना नहीं बल्कि एक परिवार को बचाना है.
नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सोमवार को संविधान बचाओ अभियान की शुरुआत की गई. इसमें राहुल गांधी ने बीजेपी आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा. इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ट्विटर पर राहुल गांधी को खरी-खरी सुनाई है. ट्विटर के अलावा उन्होंने फेसबुक पोस्ट लिखी है.
फेसबुक पोस्ट में बीजेपी अध्यक्ष ने लिखा है, ”कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से देश में घृणा और विद्वेष की राजनीति शुरू की है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के लिए राहुल गाँधी जिस तरह की शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं, वह न सिर्फ प्रधानमंत्री पद की गरिमा का अनादर है बल्कि उनकी स्वयं की बौखलाहट का परिचारक भी है. राहुल गांधी द्वारा लगातार किया जा रहा मोदी विरोध आज देश विरोध का रूप ले रहा है.
कांग्रेस पार्टी द्वारा तथाकथित संविधान बचाने की मुहिम न सिर्फ जनता को बहकाने का प्रयास है बल्कि हास्यास्पद भी है. स्वतंत्र भारत का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जिनमें कांग्रेस पार्टी ने एक परिवार के हित के लिये भारत की संवैधानिक संस्थाओं को बार-बार तोड़ा-मरोड़ा है.
आज कांग्रेस पार्टी और उनका समर्थन करने वाली तथाकथित बौद्धिक लॉबी के बीच में भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाना अत्यधिक चर्चा का विषय है. कांग्रेस पार्टी का यह गैर-जिम्मेदाराना रवैय्या मुझे 1973 की याद दिलाता है जब जस्टिस जे.एम. शेलाट, जस्टिस के.एस. हेगड़े और जस्टिस ए.एन. ग्रोवर को नजरअंदाज करके वरिष्ठता में चौथे नंबर के अपने प्रिय जस्टिस ए.एन. राय को इंदिरा गांधी ने देश का मुख्य न्यायाधीश बना दिया था. अपने इस असंवैधानिक निर्णय को सही साबित करने के लिए इंदिरा गांधी के एक मंत्री ने कहा था कि, “सरकार को मुख्य न्यायाधीश बनाने से पहले व्यक्ति की फिलॉसफी और आउटलुक को ध्यान में रखना पड़ता है”. यहाँ पर इन मंत्री महोदय का ‘फिलॉसफी और आउटलुक’ का मतलब निश्चित रूप से गाँधी परिवार के प्रति निष्ठा से था. यही कहानी 1975 में दोहराई गई जब इंदिरा गाँधी की लोकसभा सदस्यता को इलाहबाद हाई कोर्ट द्वारा निरस्त करने के बाद जस्टिस एच.आर. खन्ना को दरकिनार कर गाँधी परिवार के प्रति निष्ठा रखने वाले जस्टिस बेग को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. अतः इतिहास गवाह कि कांग्रेस पार्टी ने अनेकों बार न्यायपालिका को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़ा-मरोड़ा है और वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्रा के विरुद्ध लाया गया महाभियोग प्रस्ताव निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी द्वारा देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का एक और घिनौना प्रयास है.
न्यायपालिका के बाद देश की दूसरी सबसे पवित्र संस्था सेना के राजनीतिकरण से भी कांग्रेस पार्टी को गुरेज नहीं रहा. यूपीए सरकार के समय चीफ आफ आर्मी स्टाफ को किस तरह से आड़े हाथों लेकर सेना को राजनीति में घसीटा गया, वह सभी को पता है. यहाँ तक कि जब हमारे वीर जवानों ने पकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करके हमारे निहत्थे जवानों की हत्या का बदला लेने का साहसी काम किया था तो कांग्रेस पार्टी ने स्ट्राइक का प्रमाण मांग कर हमारे जवानों की वीरता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया.
If there is one party that has destroyed the spirit of our Constitution, it is the Congress. They do not want rule of democracy but they want rule of dynasty. Hence this is a farce of a movement by their President. https://t.co/n6mWPBHIRC
— Amit Shah (@AmitShah) April 23, 2018
यूपीए कार्यकाल में जब एक-के-बाद-एक लाखों करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के मामले जनता के सामने आ रहे थे तो कांग्रेस ने CAG जैसी तटस्थ संस्था और उसके मुखिया की ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाये. कांग्रेस के मंत्रियों ने “जीरो लॉस” का सिद्धांत ला कर देश को बरगलाने का प्रयास किया परन्तु जब मोदी सरकार नीलामी प्रक्रिया में सुधार करके देश के खजाने में लाखो रुपये लाई तो कांग्रेस की कलई खुल गई और यह भी सिद्ध हो गया कि CAG पर कांग्रेस का प्रहार उनकी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के इतिहास का एक और प्रमाण था.
पिछले चार वर्षो में कांग्रेस पार्टी को लगातार प्रादेशिक चुनावों में एक-के-बाद-एक हार मिली है जिससे 2014 में 12 राज्यों में शासन करने वाली कांग्रेस सिर्फ 4 राज्यों में सिमट गई. राहुल गाँधी को देश की जनता द्वारा पूरी तरह से नकारे जाने के बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने आका की साख को बचाने के लिए EVM की तटस्थता पर प्रश्न चिन्ह लगा कर चुनाव आयोग जैसी संस्था को ही शक घेरे में लाने की नाकाम कोशिश की. मजे की बात यह है कि जब भाजपा और राजग को कुछ राज्यों में पराजय मिली तो EVM पर कोई सवाल नहीं उठा. अतः EVM पर चयनात्मक प्रश्न उठाना सिर्फ चुनाव आयोग को व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कमजोर करना ही था.
By repeatedly saying the Congress made the Constitution, @RahulGandhi is carrying forward his family tradition of insulting Dr. Ambedkar. The Nehru-Gandhi family insulted him when he was alive and his humiliating him even more now. Shameful and petty.
— Amit Shah (@AmitShah) April 23, 2018
समय और प्रसंग बदलता है परन्तु कांग्रेस पार्टी का जनतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर गाँधी परिवार के स्वार्थ को बचाने का प्रयास जारी रहता है. भारतीय प्रजातंत्र के इतिहास का काला दिन 25 जून 1975 किसे नहीं याद होगा जब देश की सभी संस्थाओं को बंधक बना कर देश में आपातकाल लागू किया गया था. आपातकाल का एक मात्र उद्देश्य इंदिरा गांधी के पैरों से खिसकती राजनैतिक जमीन को बचाने का प्रयास था जिसे कांग्रेस पार्टी ने देश हित का नाम दे दिया. आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी ने किस तरह अपने राजनैतिक विरोधियों के साथ प्रेस और दूसरी संस्थाओं का दमन किया, वह इतिहास के पन्नों में कैद है.
कांग्रेस पार्टी द्वारा असंवैधानिक तरीके से विरोधी दलों की प्रादेशिक सरकारों को संविधान के अनुच्छेद 356 के द्वारा अस्थिर करना आम बात रही है. प्रधानमंत्री नेहरू और कांग्रेस अध्यक्षा इंदिरा गांधी के काल में 1957 में असंवैधानिक तरीके से केरल में कमुनिस्टों की वैध सरकार को बर्खास्त किया गया. इसी तर्ज पर समय-समय पर तेलुगु देशम, सोसलिस्ट और अकाली सरकारों को कांग्रेस पार्टी द्वारा अनुच्छेद 356 की मार सहनी पडी. सरकारों का निरस्तीकरण और विपक्षी नेताओं का दमन बार-बार सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि इन पार्टियों और उनके नेताओं का कांग्रेस से राजनैतिक विरोध था.
By repeatedly saying the Congress made the Constitution, @RahulGandhi is carrying forward his family tradition of insulting Dr. Ambedkar. The Nehru-Gandhi family insulted him when he was alive and his humiliating him even more now. Shameful and petty.
— Amit Shah (@AmitShah) April 23, 2018
संविधान ही नहीं, गांधी परिवार की दासता न स्वीकार करने वाले संविधान निर्माताओं को भी कांग्रेस पार्टी ने नहीं बख्शा. सर्वविदित है कि पंडित नेहरू ने स्वयं एक नहीं बल्कि दो चुनावों में बाबा साहब अंबेडकर को हरवाने का काम किया. बाबा साहेब के प्रति कांग्रेस का द्वेषपूर्ण रवैया इस बात से भी साबित होता है कि उसके राज में बाबा साहब को ‘भारत रत्न’ का सम्मान नहीं मिल पाया. यहाँ पर इस बात का उल्लेख भी तर्क संगत है कि जिस वर्ष 1997 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली, उसी वर्ष कांग्रेस समर्थित तीसरे मोर्चे की सरकार ने दलितों और आदिवासियों को पदोन्नति में मिलने वाली प्राथमिकता को ख़त्म किया. बाद में वाजपेयी सरकार ने अनुच्छेद 16(4A) में संशोधन करके दलितों और आदिवासियों को उनका अधिकार वापस दिया.
यह हास्यास्पद है कि जिस पार्टी ने अनेकों बार न्यायपालिका, सेना, चुनाव आयोग, CAG, संसद इत्यादि जैसी संस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास किया हो, वह आज “प्रजातंत्र खतरे में है” की दुहाई दे रही है. बाबा साहब द्वारा दिया गया भारत का संविधान अत्यधिक मजबूत और परिपक्व है और जनता की अदालत में फेल होने के बाद कांग्रेस पार्टी द्वारा इसके खिलाफ किया जा रहा प्रचार सिर्फ एक परिवार की राजनीतिक साख को बचाने का एक झूठा प्रचार है.”
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