पटना, दिगंवत नेता अरुण जेटली नीतीश कुमार के बहुत अच्छे दोस्त थे और भाजपा और जेडीयू के बीच समन्वय स्थापित बनाए रखने में वो अहम कड़ी भी थे. नीतीश साल 2013 में एनडीए से अलग हो गए थे लेकिन 2015 में वो एनडीए में वापसी करना चाहते थे. दरअसल, साल 2014 में भाजपा को मिली […]
पटना, दिगंवत नेता अरुण जेटली नीतीश कुमार के बहुत अच्छे दोस्त थे और भाजपा और जेडीयू के बीच समन्वय स्थापित बनाए रखने में वो अहम कड़ी भी थे. नीतीश साल 2013 में एनडीए से अलग हो गए थे लेकिन 2015 में वो एनडीए में वापसी करना चाहते थे. दरअसल, साल 2014 में भाजपा को मिली भारी जीत के बाद बिहार भाजपा के स्थानीय नेता अकेले चुनाव लड़ना चाह रहे थे. लेकिन भाजपा ने मुंह की खाई और नीतीश और लालू की जोड़ी बिहार की सत्ता पर काबिज हो गई, वहीं साल 2015 में बनी ये जोड़ी साल 2017 में बिखर गई और इसकी वजह थी अरुण जेटली द्वारा बोला गया वह सच जिसे सुनकर नीतीश कुमार लालू को छोड़ने पर विवश हो गए थे.
साल 2017 में ही लालू प्रसाद की बेटी की शादी थी, और तब लालू प्रसाद प्रेम गुप्ता के साथ मिलकर भाजपा के तत्कालीन बड़े नेता अरूण जेटली को आमंत्रित करने अरूण जेटली के आवास पर पहुंचे थे. लालू प्रसाद उस समय नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रहे थे और नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक लालू प्रसाद और प्रेम गुप्ता न्यौता देने के क्रम में बोल बैठे कि उनके (लालू प्रसाद) खिलाफ चल रहे सीबीआई के मुकदमें में मदद मिलने पर तो वो नीतीश को खत्म कर देंगे. रिपोर्ट्स की मानें तो लालू का इशारा साफ था कि अगर लालू के खिलाफ चल रहे मुकदमें में पैरवी लालू के पक्ष में हुई तो लालू प्रसाद बिहार की राजनीति से नीतीश कुमार का सूपड़ा साफ कर देंगे.
ज़ाहिर है अरुण जेटली लालू और प्रेम गुप्ता द्वारा दिए जा रहे आमंत्रण कार्ड के दरमियान सारी बातें ध्यान से सुन रहे थे और उनके जाने के बाद जेटली ने नीतीश कुमार के पास संदेशा भिजवाया कि लालू प्रसाद असल में नीतीश कुमार को लेकर क्या सोचते हैं. नीतीश एनडीए से बाहर थे और लालू प्रसाद के साथ महागठबंधन बनाकर सरकार चला रहे थे, लेकिन भाजपा में नीतीश के इक्के दुक्के करीबी मित्रों में अरुण जेटली भी शामिल थे. इसलिए सन्देश की गहराई से पड़ताल करने के बहाने नीतीश जेटली के घर खाने पहुंचे. अरुण जेटली खाने के बेहद शौक़ीन थे और अपने मित्रों के बीच बेहतरीन मेहमान नवाज़ी के लिए भी उन्हें जाना जाता था, जब नीतीश आए तो उन्हें उनका मनपसंद खाना परोसा गया और इसी बीच उन्हें वो सारी बातें बताई गई जो लालू प्रसाद और प्रेम गुप्ता ने जेटली से की थी. नीतीश लालू प्रसाद के कथन को सुनकर हैरान हो गए थे.
नीतीश को सारी बातें समझ में आ गई थी इसलिए जेटली से मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि एनडीए में रहकर वो बड़े स्तर के नेताओं से डील किया करते थे लेकिन अब उन्हें किस तरह (छोटी सोच,छोटे स्तर) के नेताओं के साथ काम करना पड़ रहा है. ज़ाहिर तो यहीं से हो गया था नीतीश कुमार राजनीति में एक बार फिर पुराने सहयोगी के साथ चलने का मन बना चुके थे और आगे चलकर नीतीश कुमार ने एनडीए में साल 2017 में ही वापसी कर ली थी.
आडवाणी जी के निष्क्रिय होने के बाद भी केंद्र में अरुण जेटली और राज्य में सुशील मोदी वो नेता थे जो भाजपा और जेडीयू के बीच सेतू का काम किया करते थे. सुशील मोदी और अरुण जेटली दोनों ही भाजपा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आए थे, इसलिए दोनों का एक दूसरे के साथ लगाव भी बेहतरीन था और दोनों नेता नीतीश कुमार की सोच और समझ को बहुत अच्छे से जानते थे. अरूण जेटली अब दिवंगत हो गए वहीं सुशील मोदी बिहार भाजपा से किनारा कर चुके हैं, इसलिए समन्वय के अभाव में नीतीश आरजेडी के उन्हीं नेताओं के साथ जाने को विवश हो गए हैं जिन्हें कभी छोटी सोच और छोटे स्तर वाला कहकर उन्होंने छोड़ दिया था.
अरुण जेटली के घर खाने के बाद बाहर निकलकर नीतीश कुमार लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के लगे आरोपों से और नाराज हुए और उन्हें समझ में आ चुका था कि ऐसे समय में तेजस्वी और तेजप्रताप समेत परिवार के अन्य सदस्यों पर मॉल सहित कई घोटालों में नाम आने के बाद सरकार चलाना सही नहीं होगा. इसलिए साल 2017 में जिस दिन लालू प्रसाद रांची जेल जाने के लिए पटना से निकलने वाले थे उसी दिन नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होने की घोषणा की थी.
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