पटना, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन में दरार की खबरों के बीच मंगलवार को अपनी पार्टी जनता दल-यूनाइटेड के सभी विधायकों और सांसदों की एक बैठक बुलाई है. जेडीयू का कहना है कि भाजपा पार्टी को तोड़ने की वैसे ही कोशिश कर रही है, जैसा कि उसने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ किया था. वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाल के दिए गए बयान के बिल्कुल विपरीत ही जेडीयू ने कह दिया है कि आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उसका भाजपा के साथ गठबंधन पक्का नहीं है. ऐसे में, गठबंधन में आई दरार को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. वहीं, दूसरी ओर, सियासी गलियारों में ये भी खबरें हैं कि नीतीश कुमार ने सोनिया गाँधी से बात कर ली है और बहुत जल्द जेडीयू भाजपा का साथ छोड़कर विपक्ष के साथ सरकार बना सकती है.
अब देखा जाए तो बिहार में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए विपक्ष जेडीयू के साथ आ सकता है. अब इस बिहार में आए इस सियासी भूचाल को महाराष्ट्र की ही तर्ज पर देखा जा रहा है. फिलहाल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी का कहना है कि ये राज्य तय करेगा कि उसके लिए सबसे अच्छा क्या है. हालांकि मंगलवार को इसपर स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी, क्योंकि मंगलवार को विपक्ष की भी बैठक है और मंगलवार को ही जेडीयू भी अपने विधायकों और सांसदों के साथ बैठक करने वाली है.
नीतीश कुमार के हालिया रुख को देखते हुए यही अंदेशा लगाया जा रहा है कि नीतीश भाजपा से नाराज़ हैं. इन्हें, हम इन घटनाक्रमों के जरिए समझ सकते हैं:
बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन में जेडीयू के जूनियर पार्टनर होने के बावजूद भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना रही है. इसके पीछे कारण ये है कि जेडीयू और कुमार की अपनी लोकप्रियता के सहारे भाजपा के आधार का विस्तार करना है, जिससे आगे चलकर भाजपा बिहार में बहुमत हासिल कर अपना मुख्यमंत्री बना सके. वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा की ये रणनीति कारगर भी साबित हुई है और इसी ने कुमार को चिंता में डाल दिया है. हालांकि कई स्तर पर राजनीतिक जमीन को खिसकाने का काम किया जा रहा है, जिसके चलते ये धारणा बनी है कि भाजपा 2025 के विधानसभा चुनाव से बहुत पहले अपना मुख्यमंत्री चाहती है. आइए इस बारे में विस्तार से समझते हैं:
नीतीश कुमार की हताशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह बिहार विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा को उनके पद से हटाने की हर कोशिश कर रहे हैं. कई मौकों पर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने सिन्हा के साथ बहस करते हुए अपना आपा तक खो दिया. दरअसल, सिन्हा लगातार कुमार की सरकार के खिलाफ सवाल उठ रहे हैं, जिसे कई लोग भाजपा द्वारा सीएम नीतीश कुमार की आलोचना के रूप में देख रहे हैं.
साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद नीतीश कुमार को मोदी कैबिनेट में सिर्फ एक पद की पेशकश की गई थी, जिससे नाराज नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. 2021 में आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में शामिल होने वाले जेडीयू के पहले सांसद बने. तब यह कहा गया था कि उन्होंने कुमार को दरकिनार कर पद के लिए सीधे भाजपा नेतृत्व के साथ बातचीत की है. हालांकि आरसीपी सिंह ने इससे इनकार किया था और कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुमार से कैबिनेट में पद के बारे में बात की थी, वहीं, पिछले महीने, जेडीयू ने आरसीपी सिंह पर केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ने का दबाव बनाते हुए उन्हें एक बार फिर राज्यसभा भेजने से इनकार कर दिया.
भ्रष्टाचार के आरोपों पर पार्टी के स्पष्टीकरण मांगेने के बाद शनिवार को आरसीपी सिंह ने जेडीयू छोड़ दी थी, और फिर उन्होंने जेडीयू को डूबता जहाज बताते हुए कहा था कि नीतीश कुमार सात जन्मों में कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं. वहीं जेडीयू ने कहा है कि वह फिर कभी केंद्रीय मंत्रिपरिषद का हिस्सा नहीं बनेगी. कई लोगों ने इसे भाजपा-जेडीयू के बीच आई दरार के रूप में देखा.
लोक जनशक्ति पार्टी के नेता दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान खुलकर नीतीश कुमार की आलोचना करते रहे हैं, लेकिन भाजपा ने उन्हें पटना में अपनी बैठकों में शामिल किया.
बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नीतीश कुमार 15 साल से सत्ता में हैं, और अब वह चाहते हैं कि भाजपा उन्हें परेशान करना बंद कर दे. वह चाहते हैं कि बिहार विधानसभा अध्यक्ष को हटाने जैसे कदम उठाया जाए, जिससे ये संकेत मिले कि मुख्यमंत्री को बीच में ही इस्तीफा देने को मजबूर नहीं किया जा रहा है. रिपोर्ट्स की मानें तो अभी तक वह यह तय नहीं कर पाए हैं कि उनकी सरकार में कौन से भाजपा विधायक मंत्री बनेंगे.
एक थ्योरी यह भी है कि अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है और अन्य राज्यों के नेता गठबंधन के उम्मीदवार पर एकमत बनाते हैं तो एनडीए से बाहर होने के बाद नीतीश कुमार 2024 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उभर सकते हैं, लेकिन कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि उनके पास इस तरह की राजनीतिक लड़ाई के लिए अब ऊर्जा नहीं बची है.
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