पटना, महाराष्ट्र के बाद अब बिहार में भी राजनीतिक घटनाक्रम बहुत ज्यादा तेज़ी से बदल रहे हैं. कहा जा रहा है कि राज्य में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के बीच का रिश्ता अब टूटने जा रहा है. हालांकि इस बार कहानी थोड़ी बदल सकती है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने […]
पटना, महाराष्ट्र के बाद अब बिहार में भी राजनीतिक घटनाक्रम बहुत ज्यादा तेज़ी से बदल रहे हैं. कहा जा रहा है कि राज्य में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के बीच का रिश्ता अब टूटने जा रहा है. हालांकि इस बार कहानी थोड़ी बदल सकती है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे हैं, नई सरकार में भी नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे. कहा जा रहा है राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाले महागठबंधन के साथ जनता दल यूनाइटेड फिर से सरकार बनाने जा रही है, बता दें, महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार 2015 में भी सरकार बना चुके हैं. पहली बार शपथ लेने के बाद से नीतीश 22 साल, 5 महीने और 6 दिन में 7 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं और मौजूदा स्थिति को देखते हुए तो यही लगता है कि नीतीश अब आठवें बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं.
नीतीश कुमार पिछले 22 साल में आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. 3 मार्च 2000 में नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लेकिन तब उनके साथ बहुमत नहीं था और काफी कोशिशें करने के बाद भी वो बहुमत नहीं जुटा सके और नतीजतन महज 7 दिन (10 मार्च, 2000) में पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इस समय वह भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए के साथ थे. फिर राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं और पूरे साल इस पद पर बनीं रहीं.
नीतीश को मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा क्योंकि 5 साल बाद नवंबर 2005 में दूसरी बार वो मुख्यमंत्री बन गए थे और इस बार उन्होंने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था. इसके बाद नवंबर 2010 के चुनाव में भी उन्हें जीत मिली और फिर मुख्यमंत्री बने.
साल 2010 में भी नीतीश एनडीए के साथ गठबंधन में ही थे. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने 2013 में चुनाव प्रचार अभियान समिति की कमान नरेंद्र मोदी को सौंप दी थी जिससे नीतीश नाराज हो गए थे उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया था.
फिर मई 2014 में नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक जीत के बाद और पार्टी के खाते में सिर्फ 2 लोकसभा सीट आने के बाद हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने 17 मई को पद से इस्तीफा दे दिया था और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था, लेकिन मांझी के सीएम बनने के बाद उनके रिश्ते खराब होते चले गए और साल पूरा होने से पहले उन्हें पद छोड़ना पड़ा. वह महज 278 दिन ही सीएम पद पर रह सके थे.
मांझी के इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार ने फिर से राज्य की सत्ता संभाली और चौथी बार 22 फरवरी 2015 में राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 9 महीने तक नीतीश इस पद पर बने रहे. नवंबर 2015 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में उतरे, हालांकि उस समय भी अगुवाई नीतीश ही कर रहे थे. महागठबंधन को बड़ी जीत मिली और 5वीं बार नीतीश ने सीएम पद की शपथ ली.
हालांकि अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव की पार्टी और उनके दोनों बेटों (तेज प्रताप और तेजस्वी यादव) के साथ सरकार चलाने के दौरान नीतीश और यादव परिवार में दरार पड़ने लगी. भ्रष्टाचार के आरोप में तब डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी से इस्तीफे की मांग बढ़ने लगी थी, जिसका नतीजा ये हुआ था कि साल 2017 में 26 जुलाई को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम में नीतीश कुमार फिर भाजपा और सहयोगी पार्टियों के साथ खड़े हो गए और उनकी मदद से इस्तीफा दिए जाने के एक दिन बाद 27 जुलाई 2017 को फिर से अपनी नई सरकार बना ली और वह छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद कोरोना काल में नवंबर 2020 में हुए चुनाव में बिहार में जेडीयू की अगुवाई में एनडीए को भारी बहुमत के साथ जीत मिली. हालांकि इस बार नीतीश का जलवा चुनाव में कम दिखा और वह राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई, 43 सीटों पर जीत के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया और सातवीं बार नीतीश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
अब बिहार में फिर से राजनीतिक हलचल तेज है, कहा जा रहा है कि नीतीश इस्तीफा दे सकते हैं और महागठबंधन के साथ फिर से नई सरकार बना सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो वह पिछले 22 साल में बतौर मुख्यमंत्री नीतीश आठवीं बार शपथ लेंगे.
बिहार में अपना CM चाहती है भाजपा, नीतीश कैसे करेंगे सियासी भूचाल का सामना