प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया. जेटली के बजट भाषण के बाद ही राजनीतिक पार्टियों ने प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर दिया था. इस बार सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े मजदूर संघ ने भी बजट पर नाराजगी जताई है. हालांकि आमतौर पर संघ कोई न कोई संगठन नाराजगी तो जताता है लेकिन बजट के विरोध में संघ के घटक दल ने देशव्यापी आंदोलन की घोषणा पहली बार की है.
नई दिल्ली. जैसे ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के कार्यकाल के अंतिम पूर्ण बजट पर भाषण खत्म किया, विपक्षी दलों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं. सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े मजदूर संघ ने भी बजट पर नाराजगी जताई है. आमतौर पर जब बीजेपी की सरकार होती है तो आरएसएस से जुड़े संगठन कई मुद्दों पर विरोध तो करते हैं, लेकिन इस कदर बड़ा प्रदर्शन और वो भी बिना किसी बड़ी चेतावनी के आम बात नहीं है. वित्त मंत्री के बजट भाषण खत्म करने के थोड़ी देर बाद ही भारतीय मजदूर संघ ने बजट पर घोर निराशा जताई और मीडिया को भेजे एक लाइन के बयान में कहा कि, शुक्रवार को इस बजट के प्रावधानों के खिलाफ पूरे देश भर में मजदूर संघ के कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे.
अभी सरकार ने इस प्रदर्शन को शायद नोटिस में नहीं लिया है, मीडिया भी आंकलन करने में जुटी है कि ये सामान्य मुद्दों या मांगों के चलते महज एक प्रदर्शन भर है या फिर हालिया तोगड़िया विवाद के संघ परिवार के किसी अंदरूनी विवाद की परिणति. दरअसल जब तोगड़िया अचानक गायब हुए और रहस्मयी ढंग से वापस आए, प्रेस कॉन्फ्रेंस में तोगड़िया ने आंसू बहाकर बिना किसी का नाम लिए तमाम आरोप लगाए, उसकी मीडिया ने तह में जाने की कोशिश की. खबर आई कि संघ का नेतृत्व ना सिर्फ तोगड़िया को बल्कि भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री विरिजेश उपाध्याय को भी हटाना चाहता है.
जब ये विवाद अखबारों में छपा तो फौरन भारतीय मजदूर संघ की तरफ से एक प्रेस रिलीज आई और ऐसी अटकलों को खारिज किया गया. दिलचस्प बात थी कि ये प्रेस रिलीज खुद विरिजेश उपाध्याय के लैटर पैड पर ही जारी की गई थी. इस प्रेस रिलीज में साफ कहा गया गया कि मई 2017 में जो कार्यकारिणी चुनी गई है, वो तीन साल के लिए है, और उससे पहले भंग नहीं होगी. दूसरे ये भी कहा गया कि आरएसएस मजदूर संघ से जुड़े अपने स्वंयसेवकों के काम में दखल नहीं देता, वो अपने फैसले मजदूरों और राष्ट्र के हित में बिना किसी दवाब के लेते हैं. फिर भी संघ की तरफ से इस पूरे विवाद पर चुप्पी ही साधे रखी गई.
अब फिर जिस तरह से अचानक जबकि किसी भी विपक्षी पार्टी ने हमलावर रुख नहीं अपनाया है, बीएमएस ने वो रुख बजट के फौरन बाद अपना लिया है. माना जा रहा है कि बीएमएस की तरफ से आशा कार्यकर्ताओं और ग्रामीण डाक सेवकों के मानदेय में भर्ती जैसी कुछ मांगें सरकार के पास रखी थीं. लेकिन वो सरकार ने इस बजट में पूरी नहीं की हैं. इसी तरह पिछली साल भी मजदूर संघ से जुड़े डिफेंस मजदूर संघ ने निजी कंपनियों में बन रहे हथियारों के फील्ड टेस्ट्स को लेकर सवाल उठाए थे, लेकिन सरकार ने कान नहीं धरे.
पिछले साल नवम्बर में भी भारतीय मजदूर संघ के हजारों कार्यकर्ता 10 अलग अलग यूनियंस के साथ दिल्ली में रैली के बाद धरने पर बैठ गए थे. तब सरकार से उन्होंने 22 मांगे भी रखी थीं, जिनमें 18,000 न्यूनतम वेतन और 3000 रुपए की पेंशन का ऐलान करने, 200 दिन तक रुरल जॉब गारंटी स्कीम के तहत रोजगार देने और सावर्जनिक सेक्टर की कंपनियों का डिसइन्वेस्टमेंट रोकने जैसी मांगें की गई थीं. और बजट देखकर वाकई में लगता है कि कोई मांग नहीं मांगी गईं.
ये अलग बात है कि सरकार ने पांच लाख तक की हैल्थ बीमा पॉलिसी, तीन साल तक पीएफ में 12 फीसदी का अंशदान, उज्जवला और सौभाग्य योजना का बजट बढाने जैसे कई मजदूर हितैषी काम किए हैं, लेकिन मजदूर संघ की किसी भी मांग पर कान नहीं धरे. ऐसे में संगठन का बिफरना स्वाभाविक है, जबकि दोनों के ही मुखिया स्वंयसेवक हैं. तो ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि कहीं ये टकराव भी किसी अंदरूनी खींचतान की वजह तो नहीं. अब शुक्रवार को भारतीय मजदूर संघ सड़क पर अपनी कितनी ताकत दिखा पाता है, उसी से पता चलेगा कि सरकार क्या बाद में भी उनकी मांगों पर कान धरने को मजबूर होगी?
आम बजट पर बरसे लालू प्रसाद यादव, बोले- जनता को छल रही मोदी सरकार, सारी घोषणाएं महज हवाबाजी
Budget 2018: बजट को लेकर पी. चिदंबरम का मोदी सरकार पर निशाना, परीक्षा में फेल हुए अरुण जेटली