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कैसे बदल देते थे अपने जुमलों से अटल बिहारी वाजपेयी चुनावी हवा, इन वाकयों से जानिए

नई दिल्ली. अटल बिहारी बाजपेयी के पास अपनी ईमानदारी के अलावा अगर लोगों को प्रभावित करने के लिए कुछ और था तो वो थी उनकी वाकपटुता। चुनावी मौसम में पार्टी को उसकी खास जरुरत प़ड़ती थी। हर कोई बीजेपी कैंडिडेट चाहता था कि उनके इलाके में अटल जी की कोई सभा हो जाए। ऐसे में आज जानिए दो ऐसे वाकये, जब अटल जी के जुमलों की वजह से पूरे चुनाव की हवा ही बदल गई।

पहली कहानी 1991 के लोकसभा चुनावों से जुड़ी है, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी साथ ही होने थे। अटल बिहारी बाजपेयी लखनऊ से उम्मीदवार थे. अटलजी की ऐसी हवा थी कि हर कोई ये मानकर चल रहा था कि जीत उन्हीं की होनी है, अटल जी के विरोधी भी मान रहे थे कि अटल जी की जीत निश्चित थी I

लेकिन वो ये कतई नहीं चाहते थे कि अटलजी के चक्कर में बीजेपी यूपी विधानसभा में भी काबिज हो जाए, सो एक नायाब तरीका विपक्षी पार्टियों नेै ढूंढ निकाला। वो ये कि उनकी पार्टियों के विधानसभा वाले उम्मीदवार मतदाताओं से आग्रह करने में जुट गए कि ‘आप ऊपरवाला (लोकसभा का) वोट अटल जी को भले ही दे देना लेकिन नीचे वाला (विधानसभा) का वोट हमें देना’I

लोग उनकी बातों को सीरियस भी लेने लगे, धीरे धीरे ये बातें बीजेपी नेताओं के कानों में भी पहुच गईं कि अटलजी तो जीतेंगे लेकिन यूपी में ऐसे ही जारी रहा तो सरकार बनाना बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगा। बात अटलजी तक पहुंची तो अटलजी ने एक रास्ता ढूंढ निकाला।
अटल जी एक आम सभा में बोले – ”अगर आप ऊपर का कुर्ता भाजपा को देंगे और नीचे की धोती किसी और को तो मेरी क्या दशा होगी?” फिर क्या था, बाजी ही पलट गई। यूपी में बीजेपी की पहली बहुमत की सरकार का रास्ता साफ हो गया।

दूसरी कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध के बाद इंदिरा जी की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी, इसी का लाभ उठाकर इंदिरा जी ने चुनाव कराया। जनसंघ नेताओं को भी लगा रहा था कि इंदिरा को आने से कोई नहीं रोक सकता। इधर दिल्ली में भी जनसंघ सभी सीटें हार गयी. उसके तुरंत बाद दिल्ली नगर निगम के चुनाव थे। अटलजी को प्रचार की जिम्मेदारी दी गई। चुनाव प्रचार आरम्भ करते हुए वाजपयी जी ने कहा ”आप चाहते थे कि कांग्रेस देश पर राज करे, आपने उसे वोट दिया…अब कम से कम झाडू मारने का मौका तो दे दीजिये”.।
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उनका ये जुमला उन चुनावों में काफी लोकप्रिय हो गया और अटलजी के इस कैम्पेन का फायदा जनसंघ को भी मिला, जनता ने उसे हाथों हाथ लिया और दिल्ली में नगर निगम में जनसंघ की जीत हो गई। अटलजी हर चुनाव में कुछ ना कुछ ऐसा खेल जरुर करते थे।

पूरे पांच बार चुनाव हारे थे अटल बिहारी वाजपेयी, जानिए हर हार की पूरी कहानी

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Aanchal Pandey

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