लखनऊ : राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा 9 दिनों के विराम के बाद उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर चुकी है. कन्याकुमारी से शुरू हुई इस यात्रा का आखिरी पड़ाव जम्मू कश्मीर होगा. जहां देशव्यापी इस यात्रा में कई बड़े नेता कांग्रेस पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाने सामने आए. हालांकि इस दौरान दक्षिण भारत में तो राहुल गाँधी को कई विपक्षी दलों का साथ मिला लेकिन हिंदी पट्टी के राज्यों में विपक्ष तो दूर उनकी सहयोगी पार्टियों ने भी भारत जोड़ो यात्रा में जुड़ने से मना कर दिया है. इसके पीछे क्या कारण है और क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ आइए जानते हैं.
इस समय भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश में है. यह यात्रा बिहार की ओर बढ़ेगी. यूपी की ही तरह बिहार में भी अब तक राहुल गांधी की यात्रा में किसी विपक्षी दल की शिरकत करने की कोई पुष्टि नहीं हुई है. यूपी में कांग्रेस ने अपनी यात्रा में शामिल होने के लिए सपा के अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, बसपा अध्यक्ष मायावती, सतीष चंद्र मिश्रा और आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी समेत कई नेताओं को न्योता भेजा था. हालांकि किसी ने भी उनकी यात्रा में शिरकत नहीं की. इसी कड़ी में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी राहुल गाँधी की अगुवाई वाली इस यात्रा को कांग्रेस का आंतरिक्त मामले बताते हुए कन्नी काट ली है. जेडीयू से भी कोई नेता पदयात्रा में शामिल नहीं होगा। हालांकि सत्तारूढ़ महागठबंधन के सबसे बड़े घटक लालू प्रसाद की पार्टी JDU से कोई जवाब नहीं आया है.
ऐसे में कयास तो लगाए जा रहे हैं कि शायद लालू प्रसाद की पार्टी से भी राहुल गांधी का साथ देने के लिए कोई नेता आगे ना आए. महाराष्ट्र में भी कांग्रेस को
शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले समेत कई नेताओं का साथ मिला था. लेकिन उत्तर और पूर्व भारत में राहुल गांधी अकेले ही पद यात्रा करते नज़र आ रहे हैं.
स्थिति को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि राहुल गांधी के साथ इस यात्रा में विपक्षी और कांग्रेस के सहयोगी दल क्यों शामिल नहीं हो रहे हैं. इसके पीछे राहुल गांधी की छवि का लगातार मजबूत होना माना जा रहा है. ऐसे में भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों में बेचैनी पैदा हो गई है. प्रदेश में इन दलों का एक बड़ा वोट बैंक उन लोगों से आता है जो कांग्रेस को समर्थन देते हैं. ये पार्टियां कांग्रेस के कोर वोटबैंक पर काबिज हैं. इस तरह राज्य में कांग्रेस को दोबारा उभरता देख वह अपना वोट बैंक नहीं खोना चाहते हैं.
सपा, बसपा, आरएलडी उसी वोटबैंक के सहारे सियासत पर कायम है जो उन्हें कांग्रेस के कमज़ोर पड़ने पर मिला है. बिहार में आरजेडी, जेडीयू और वामपंथी दल इसी स्थिति में हैं.दूसरी ओर भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को सियासी संजीवनी दी है और उसके कार्यकर्ता व नेताओं में इस समय उत्साह भर गया है. जिसे देखते हुए विपक्षी दल सतर्क हो गए हैं.
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