Amit Shah Narendra Modi Relationship Connection: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस वक्त देश की सबसे मजबूत राजनीतिक जोड़ी है. राजनीति में सब परेशान रहते हैं कि मोदी को शाह पर इतना भरोसा क्यों है या शाह इतने सम्मान के साथ मोदी के साथ अध्यक्ष बनने के बाद भी क्यों संबंध निर्वाह कर रहे हैं. ये समझने के लिए ये समझना होगा कि मोदी और शाह मिले कैसे, दोनों का रिश्ता आगे कैसे बढ़ा, दोनों के रिश्ते में कितनी बार टेस्ट के मौके आए और दोनों ने कैसे एक-दूसरे के भरोसे को कायम रखा. ये लेख मोदी और शाह के संबंधों की प्रगाढ़ता पर बात करेगी.
नई दिल्ली. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोई रिश्तेदार नहीं थे और ना मोदी उनकी तरह अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन मोदी संगठन में ताकतवर थे तो दुनियावी चीजों में अमित शाह की अच्छी पैठ थी. राजनीति में मौका मिलने पर अमित शाह ने इसे साबित भी किया. नरेंद्र मोदी के कहने पर तत्कालीन बीजेपी गुजरात अध्यक्ष शंकर सिंह बाघेला ने जब अमित शाह को पार्टी मे एंट्री दी तो उन्हें उस वक्त युवा मोर्चा यानी भाजयुमो का तालुका स्तर का पद दिया गया था. अमित शाह ने इतनी तेजी से युवाओं के बीच अपनी पैठ बनाई कि बहुत जल्द वो भाजयुमो के राष्ट्रीय महासचिव पद तक पहुंच गए.
अमित शाह 1986 में बीजेपी में शामिल हुए तो अगले साल नरेंद्र मोदी भी संगठन मंत्री बनकर भाजपा में आ गए. ऐसे में मोदी को अमित शाह जैसे विश्वस्त की जरुरत थी और अमित शाह को संगठन में एक मजबूत हाथ अपने सिर पर चाहिए था. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने धीरे-धीरे कांग्रेस के मजबूत इलाकों पर फोकस करना शुरू किया. जहां कांग्रेस का कोई प्रभावशाली नेता होता था तो उस इलाके में दूसरे नंबर के प्रभावशाली व्यक्ति को साथ करके उसे जोड़ा जाता था. पिछड़े इलाकों पर खास फोकस किया गया. इस तरह अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने करीब 8000 मजबूत कार्यकर्ताओं और लीडर्स का ऐसा बेस तैयार कर लिया जो एक तरह से पार्टी से ज्यादा उनके लिए समर्पित था.
उसके बाद फोकस किया गया कॉपरेटिव फील्ड पर. पूरे गुजरात में बैंकों से लेकर दूध डेयरी तक सहकारी संस्थाओं में कांग्रेस के लोगों का कब्जा था. अमित शाह शेयर मार्केट में पहले से सक्रिय थे, बिजनेसमैन थे, उनको दाव-पेंच आते थे. मोदी ने खुली छूट दी और शुरुआत अहमदाबाद की सहकारी बैंक पर कब्जे से हुई. फिर गुजरात क्रिकेट संघ निशाने पर लिया गया जिस पर सालों से कांग्रेस नेता नरहरि अमीन का कब्जा था. उन्होंने गद्दी पर मोदी को बैठाया और खुद उपाध्यक्ष बने. इस तरह से मोदी को बड़े सपने दिखाना और उन सपनों को पूरा करने की राह में व्यवहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रबंधन करना अमित शाह का काम था.
इधर नरेंद्र मोदी संगठन में पकड़ बनाने में लगे थे. मोदी को पता था कि जब तक बीजेपी की सरकार प्रदेश में नहीं बनेगी, सारे प्रयास व्यर्थ हैं. अमित शाह व्यवहारिक मैनेजमेंट के माहिर थे तो मोदी उन्हें वैचारिक मैनेजमेंट सिखा रहे थे. उन दिनों अमित शाह गांधीजी के मुरीद थे, उनकी मां भी गांधीजी के विचार पर चलती थीं जिनका असर अमित शाह पर था. मोदी ने कहा कि गांधीजी पढ़ो लेकिन स्वामी विवेकानंद को भी पढ़ो तभी भारत को अच्छे से समझ पाओगे. अमित शाह ने उस सलाह को गांठ बांधकर रख लिया.
अमित शाह को पहला मौका मिला 1991 में जब लालकृष्ण आडवाणी ने गांधीनगर से चुनाव लड़ना तय किया. अमित शाह ने मोदी से गुजारिश की कि आडवाणी के क्षेत्र का चुनाव प्रबंधन उनको देखने दिया जाए. मोदी ने मौका भी दिया. शाह के काम से आडवाणी काफी प्रभावित हुए. 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी गांधीनगर से लड़े तब भी अमित शाह ने ही ये काम संभाला. दोनों के ही पास अपने चुनाव क्षेत्रों में आने का समय नहीं था. इससे पहले आडवाणी की रथ यात्रा और मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा दोनों के चेहरे मोदी थे लेकिन परदे के पीछे से काफी काम अमित शाह के हवाले ही था. यही वजह थी कि दोनों एक दूसरे का पर्याय बनते जा रहे थे.
1992 में एक बार फिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच भौगोलिक दूरियां आ गईं. शंकर सिंह वाघेला से रिश्ते खराब हुए तो नरेंद्र मोदी दिल्ली चले आए, फिर 1994 में वापस गुजरात लौटे. 1995 में पहली बार बीजेपी सरकार गुजरात में बनी तो पूरा श्रेय मोदी को ही मिला लेकिन परदे के पीछे मोदी के राइट हैंड के तौर पर अमित शाह साथ थे. नवंबर, 1995 में गुजरात के नेताओं से मतभेद के चलते मोदी फिर दिल्ली आए. उनको हिमाचल प्रदेश और हरियाणा का प्रभार दे दिया गया. ऐसे में अमित शाह गुजरात में ही रहे. 1998 के चुनावों में फिर मोदी की भूमिका रही और उन्होंने वाघेला को किनारे कर केशूभाई पटेल की सरकार बनवा दी. अमित शाह को भी समझ में आ गया था कि मोदी के बिना उनकी पार्टी में पूछ नहीं है और मोदी भविष्य के नेता हैं.
2001 में मोदी को गुजरात के सीएम की गद्दी मिली और अमित शाह उनके सबसे करीबियों में शामिल थे. नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को मंत्री बनाया. उसके बाद गुजरात दंगों से लेकर सोहराबुद्दीन एनकाउंटर तक और फिर अमित शाह के जेल जाने और गुजरात में एंट्री पर रोक लगने तक और बाद में फिर से पार्टी में आने तक मोदी ने अमित शाह पर अपना हाथ रखे रहा. ऐसे में 2014 के चुनावो में यूपी जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य में चुनाव की कमान के लिए मोदी अमित शाह पर ही भरोसा कर सकते थे. 10 सीट से 73 तक एनडीए के झोले में डालकर अमित शाह ने भरोसे को साबित भी कर दिया.
अब बारी थी पार्टी से लेकर सरकार पर पूरा कब्जा करने की. मोदी पीएम बन ही चुके थे. अमित शाह को सरकार में ना लेकर पार्टी अध्यक्ष बनाना उसी रणनीति का हिस्सा था और आज 2019 के चुनावों में फिर इसी जोड़ी की अग्निपरीक्षा होगी ताकि साबित कर सकें कि 21 राज्यों में बीजेपी की सरकार बनाना, बीजेपी को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनाना और 2014 में चुनाव जीतना बिल्ली के भाग्य से झींका टूटने जैसा नहीं था. सच बात तो ये है कि नरेंद्र मोदी अमित शाह जैसा भरोसा किसी और पर कर भी नहीं सकते हैं.