जयपुरः राहुल गांधी के राजस्थान में तीन लेफ्टिनेंट प्रमुख हैं सचिन पायलट, सचिन जोशी और भंवर जितेन्द्र सिंह और जिन दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव के नतीजे आज आए हैं, वो इन तीनों से जुड़ी थीं। इन तीनों की साख दाव पर थी, जो हारता, उसका रसूख राहुल की नजरों में कम हो जाता, ठीक वैसे ही जैसे बसुंधरा राजे के साथ हो गया है। इस उपचुनाव को राजस्थान की सत्ता के लिए सेमीफायनल माना जा रहा था, इसी साल राजस्थान में चुनाव होने हैं, बीजेपी और आरएसएस में एक बड़ा गुट बसुंधरा को पसंद नहीं करता। लेकिन पिछले चुनावों में बड़ी जीत, और राजस्थान के लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप का काफी कुछ क्रेडिट मिलने के चलते जो मौका तब नहीं मिल पाया था, अब उनको मिल गया है.
हर कोई सवाल उठा रहा था कि राहुल गांधी या कांग्रेस नेता पदमावत फिल्म के सपोर्ट या विरोध में कुछ क्यों नहीं बोल रहे हैं. राहुल ने ट्वीट किया भी तो बिना करनी सेना का नाम लिए और केवल बच्चों की बस पर हुए हमले की निंदा के लिए. चुनावी पंडितों को लगता है कि राहुल और उनकी राजस्थान में लगी टीम ने बेहतर तरीके से खेला और नतीजा ये कि अजमेर और अलवर की लोकसभा सीटों के अलावा मांडलगढ़ की विधानसभा सीटें भी कांग्रेस की झोली में फिर से आ गिरीं, वो भी अच्छे खासे अंतर से. अजमेर सीट पिछली बार मोदी लहर में कांग्रेस हार गई, वैसे भी 2009 में अपनी पारम्परिक सीट के रिजर्व हो जाने की वजह से सचिन पायलट अजमेर आ गए थे. सचिन पायलट को भंवर लाल जाट ने हराया लेकिन उनकी मौत के बाद कांग्रेस ने अजमेर से रघु शर्मा पर दांव लगाया और बीजेपी के राम स्वरूप लाम्बा को बड़े अंतर से हरा दिया. दरअसल सचिन पायलट की वजह से कांग्रेस को जाट वोट काफी मिला, ब्राहम्ण वोट रघु शर्मा ने काफी खींचा और मुस्लिम वोट एकतरफा कांग्रेस के खाते में जाने की बात आ रही है. बीजेपी का जाट वोट तो इस बार बंटा ही, ब्राह्मण वोटर्स के पास रघु शर्मा का अच्छा विकल्प कांग्रेस के पास था.
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अजमेर सीट पर आनंद पाल गुर्जर के एनकाउंटर ने भी बीजेपी की हार में खासा रोल निभाया, इस सीट पर करीब डेढ पौने दो लाख गुर्जर हैं, माना जा रहा है कि वो बीजेपी के खिलाफ हो गए थे, खासकर बसुधंरा सरकार के. पदमावत विवाद में भी कांग्रेस खामोश रही, इसलिए राजपूत जो संख्या में 2 से ढाई लाख के बीच हैं, वो बंट गए और इसी तरह दलित वोटर्स भी, क्योंकि गुजरात में दलित वोटर्स बंटा है, उसका असर बाकी हिस्सों भी पड़ रहा है, खासकर सोशल मीडिया पर जो तबका मौजूद है वो. ऐसा ही अलवर लोकसभा सीट पर हुआ, बीजेपी के महंत चांदनाथ की मौत के बाद बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने यादव उम्मीदवारों को यहां से खड़ा किया. एक चीज जो पहले ही तय हो चुकी थी खासकर पहलू खान की बीफ विवाद में हत्या के बाद कि मुस्लिम वोट एकतरफा कांग्रेस को जाना है. हालांकि जब दो निर्दलीय मुस्लिम उम्मीवारों इब्राहिम और जलालुद्दीन भी खड़े हुए को बीजेपी को लगा भी कि मुस्लिम वोट बंट सकता है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, एक तो महज 769 और दूसरे को 1454 वोट ही मिले. वैसे भी गाय विवाद में यहां तीन मुसलमानों की मौत हो चुकी है, एक गाय तस्कर मुस्लिम को तो पुलिस ने एनकाउंटर में मार डाला था, बाकी राजस्थान सरकार से लोगों की नाराजगी और स्थानीय फैक्टर्स जिम्मेदार रहे होंगे. रही सही कसर बीजेपी कैंडिंडेट जसवंत सिंह यादव के उस वायरल वीडियो बयान ने कर दी, जिसमें वो कहते दिख रहे हैं कि हिंदू हो तो मुझे वोट देना, मुस्लिम हो तो कांग्रेस प्रत्याशी कर्ण सिंह को देना. यही कॉन्फीडेंस ले डूबा.
इसी तरह मांडलगञ की विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस के विवेक धाकड़ ने बीजेपी के शक्ति सिंह धाकड़ को 12 हजार से भी अधिक वोटों से पटखनी दे दी. बीजेपी विधायक कीर्तिकुमारी की मौत के बाद हुए इस उपचुनाव में कांग्रेस की जीत के मायने इसलिए भी बढ़ जाते हैं क्योंकि यहां से एक कांग्रेस बागी गोपाल मालवीय ने भी अच्छे खासे वोट बटोरे हैं और तीसरे स्थान पर रहा है. इस सीट को जिताने के लिए बसुंधरा राजे समेत पूरी सरकार ने यहां डेरा डाले रखा था, इसलिए राजे की और ज्यादा किरकिरी हुई है.
सबसे ज्यादा दिलचस्प बात थी कि सचिन पायलट की अगुवाई में खामोशी से कास्ट से लेकर बूथ तक का मैनेजमेंट किया गया और अब जीत के बाद वही बोल रहे हैं और बसुंधरा को सांप सूंघ गया है. साफ है कि उनको अब अपनी सीएम पोस्ट तो खतरे में नजर आ ही रही है, जो जलवा जलाल पिछले विधानसभा और लोकसभा की क्लीन स्वीप से आया था, इस उपचुनाव मे हार के बाद वो राज्य ही नहीं केन्द्र स्तर पर भी उनके कद को कम कर देगा. ये अलग बात है कि अब बीजेपी विरोधी की बजाय बीजेपी समर्थक ईवीएम के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट लिखेंगे.
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