लखनऊ. पूर्वी उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं. यूपी में सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) महागठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आई. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा से अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़े थे और जीते भी थे. उस समय मुलायम सिंह ने यूपी की दो सीटों मैनपुरी और आजमगढ़ से चुनाव लड़ा था, उन्होंने दोनों पर जीत दर्ज की थी. बाद में मुलायम ने मैनपुरी सीट अपने भतीजा और लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप सिंह यादव के लिए छोड़ दी थी. अब अपने पिता की विरासत संभालते हुए खुद अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. वहीं मुलायम सिंह यादव अब केवल मैनपुरी से ही चुनाव लड़ेंगे.
क्या है आजमगढ़ का चुनावी गणित-
आजमगढ़ लोकसभा सीट पूर्वी उत्तर प्रदेश इलाके में है. यह एक मुस्लिम बाहुल्य इलाका है. इसके अलावा यादव वोटर्स भी यहां निर्णायक भूमिका में रहते हैं. सपा की मुस्लिम और यादव वोटर्स में अच्छी पकड़ है. यही कारण है कि आजमगढ़ लोकसभा सीट सपा का गढ़ मानी जाती है और लोकसभा चुनाव 2019 में यूपी में सपा-बसपा और आरएलडी महागठबंधन में से यह सीट सपा के खाते में ही आई है.
2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से सपा ने केवल 3 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी, उसमें आजमगढ़ भी एक है. वहीं पूर्वी यूपी में तो सपा केवल आजमगढ़ पर ही जीत पाई थी. पूरे प्रदेश में मोदी लहर के बावजूद मुलायम सिंह अपने गढ़ यानी आजमगढ़ को बचाने में कामयाब रहे थे. हालांकि फिर भी आजमगढ़ में चुनाव जीतने के लिए मुलायम सिंह यादव के पसीने छूट गए थे. पिछले चुनाव में बीजेपी के रमाकांत यादव और बसपा के शाह आलम ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. उन्होंने 66,000 वोटों के अंतर से बीजेपी के रमाकांत को हराया था.
आजमगढ़ लोकसभा सीट का इतिहास –
1996 में हुए लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव ने पहली बार आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी को जीत दिलाई थी. इसके बाद 1998 में हुए चुनाव में वे हार गए और बसपा के अकबर अहमद यहां से सांसद बने. 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में दोबारा रमाकांत यादव ने आजमगढ़ से सपा को जीत दिलाई. सांसद रहते हुए ही रमाकांत ने सपा छोड़ दी और बसपा में शामिल हो गए.
2004 लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव बसपा से चुनाव लड़े और फिर आजमगढ़ से सांसद बने. 2008 में हुए उपचुनाव में बसपा के अकबर अहमद ने जीत दर्ज की. इसके बाद रमाकांत बसपा छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उसके बाद के चुनावों में वे बीजेपी के टिकट पर आजमगढ़ से लड़ते रहे. 2009 के आम चुनाव में उन्होंने जीत भी दर्ज की, लेकिन 2014 में मुलायम सिंह यादव जब खुद आजमगढ़ से मैदान में उतरे तो रमाकांत को हार का मुंह देखना पड़ा.
2019 में अखिलेश यादव के लिए क्या है चुनौती-
पहले अटकलें चली थीं कि अखिलेश यादव खुद इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे. मीडिया में खबरें भी आई थीं कि वे यूपी में बसपा की मायावती के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-बसपा और आरएलडी महागठबंधन के लिए प्रचार करेंगे. हालांकि अब इन अटकलों को खारिज करते हुए अखिलेश यादव को आजमगढ़ से सपा प्रत्याशी बनाया गया है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आजमगढ़ से चुनाव लड़कर अखिलेश यादव खुद पूर्वी यूपी में महागठबंधन की कमान संभालने वाले हैं. वे सपा को पूर्वी यूपी में मजबूत कर बीजेपी के वोटों में सेंध मारने की रणनीति बना रहे हैं. हालांकि आजमगढ़ से अभी तक बीजेपी ने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. वहीं बसपा इस बार सपा के साथ गठबंधन में ही है तो इसका सीधा फायदा अखिलेश को ही मिलने वाला है.
इसी तरह कांग्रेस भी इस सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं घोषित करने के मूड में है. क्योंकि कांग्रेस ने पहले ही साफ किया था कि वह यूपी में सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन के प्रमुख नेताओं की 7 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी.
मतलब साफ है कि आजमगढ़ में अखिलेश यादव का सीधा मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी से ही होगा. बीजेपी पिछली बार की तरह किसी यादव को यहां से टिकट देने पर विचार कर रही है, ताकि सपा के यादव वोटबैंक में सेंध लगा सके. हालांकि वास्तविक स्थिति बीजेपी कैंडिडट की घोषणा होने के बाद ही साफ हो पाएगी.
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