Lucknow: लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे बड़ा कोई उलटफेर करने वाला राज्य रहा है तो वो है उत्तर प्रदेश. बीजेपी इस राज्य में 60-70 लोकसभा सीटों की आस लगाए हुए थी, लेकिन चुनाव नतीजों ने पूरी तरह बीजेपी को हैरान और परेशान कर दिया. बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटों का घाटा भी इसी राज्य में हुआ. घाटे का मुख्य कारण थे अखिलेश यादव. जिन्होंने साबित कर दिया कि क्यों वे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े नेता में से एक हैं. बीजेपी को लोकसभा चुनाव 2019 में राज्य की 62 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार आई अखिलेश यादव की आंधी में उनकी संख्या घटकर मात्र 33 पर सिमट गई. तो वहीं अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी ने अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 5 लोकसभा सीटों से सीधा 37 सीटों पर पहुंच गए हैं. इसके साथ ही समाजवादी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को पटखनी देकर सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. और देश की बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी भी. अखिलेश यादव की सफलता में इस बार दलित समाज ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. लोकसभा चुनाव में मिली अखिलेश यादव को अपार सफलता के बाद अब वो उत्तर प्रदेश को छोड़कर दिल्ली प्रस्थान करने की तैयारी में है. अब बड़ा सवाल ये है कि साल 2027 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भी है, यदि अखिलेश दिल्ली जाएंगे तो वे यूपी की जिम्मेदारी किसे सौपेंगे. अपने चाचा शिवपाल यादव को या फिर किसी दलित चेहरे पर दांव आजमाएंगे ?
क्या अखिलेश यादव देंगे शिवपाल को यूपी की जिम्मेदारी ?
विधानसभा से अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद अभी सबसे बड़ा सवाल ये है कि अखिलेश के बाद उत्तर प्रदेश का नेता प्रतिपक्ष कौन होगा जो सामने से बीजेपी का सामना कर सके. समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव के बाद सबसे बड़ा कोई समाजवादी नेता है तो वो शिवपाल यादव ही हैं लेकिन उनके और अखिलेश के बीच तनातनी की खबरें किसी से छिपी नही हैं. इसीलिए शिवपाल यादव ने अखिलेश से अलग होकर अपनी खुद की पार्टी ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी’ बना ली थी. लेकिन बाद में मुलायम सिंह यादव ने रिश्ते सामान्य करवाए और वो फिर समाजवादी पार्टी से ही चुनाव लड़ने लगे थे. इसके अलावा जब अखिलेश मुख्यमंत्री थे तब भी दोनों के बीच तल्खी देखनें को मिली, और परिवारों की लड़ाई सबके सामने आ गई थी. और उस समय के समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को पार्टी से 6 सालों के निष्कासित कर दिया था. बाद अखिलेश यादव के समर्थकों के प्रदर्शन के बाद उन्हें पार्टी में वापिस लिया गया. हालांकि पिछले कुछ सालों से दोनों के रिश्ते सामान्य हैं और लोकसभा चुनाव में भी दोनों चाचा-भतीजे ने मिलकर प्रचार किया था. लेकिन बीजेपी जैसी आक्रामक विरोधी दल के सामनें शिवपाल यादव बहस कर पाएंगे या पलटकर जवाब दे पाएंगे.
अखिलेश खेलेंगे दलित चेहरे पर दांव ?
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को दलितों ने भी खूब वोट दिया है, क्या अब समाजवादी पार्टी अपने यादव+मुस्लिम समीकरण से आगे बढ़कर अन्य जातियों को साधनें का प्रयास कर करेगी क्योंकि इस चुनाव में अखिलेश यादव ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा खूब बुलंद किया था. जिसका उन्हें चुनाव में लाभ भी मिला. क्या अब वे यदि दलितों को साधने के लिए किसी दलित नेता को विधानसभा में विपक्षी नेता बनाते हैं तो वो कौन होगा ?
ऐसा लगभग माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया इस बार परिवार से ज्यादा बाहरी चेहरे को अहमियत देंगे. कई अन्य चेहरों के साथ कौशांबी जिले के मंझनपुर विधानसभा सीट के विधायक इंद्रजीत सरोज का नाम चर्चाओं में है. क्योंकि इंद्रजीत लंबे समय से समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं. और उनकी पूर्वांचल में अच्छी खासी पकड़ भी है. यदि अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में दलितों को खुश करना है तो इंद्रजीत सरोज उनकी पसंद में से एक हो सकते हैं. शिवपाल यादव और इंद्रजीत के अलावा ओम प्रकाश सिंह का भी नाम नेता प्रतिपक्ष पद के लिए सुर्खियों में है.
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