नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े संकट में फंस गए हैं. चुनाव आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश कर दी है. उस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर लगने का सीधा मतलब होगा कि अगले 6 महीने में दिल्ली की 20 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे. 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में एक साथ 20 सीटों पर उपचुनाव मिनी मिड टर्म चुनाव जैसा ही होगा. ऐसा चुनाव जिसके नतीजे केजरीवाल सरकार के तीन साल के कामकाज पर एक तरह का जनमत संग्रह भी होगा.
फरवरी 2015 के चुनाव में विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने वाले केजरीवाल ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया था. संसदीय सचिव का दर्ज़ा राज्यमंत्री या उप मंत्री के बराबर माना जाता है. संसदीय सचिवों की हैसियत मंत्रिपरिषद के सदस्य की होती है. संवैधानिक तौर पर किसी भी राज्य में विधानसभा की कुल क्षमता के अधिकतम 15 फीसदी सदस्य ही मंत्रिपरिषद में शामिल हो सकते हैं. छोटे राज्यों के लिए अधिकतम संख्या 7 तय की गई है. इस हिसाब से दिल्ली में एक साथ 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति सवालों में घिरी थी.
दिल्ली में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ प्रशांत पटेल उमरांव नाम के एक वकील ने राष्ट्रपति को याचिका भेजी थी. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चुनाव आयोग को जांच करने का निर्देश दिया था. चुनाव आयोग ने सभी 21 संसदीय सचिवों को नोटिस जारी किया, जिसके जवाब में सबने एक जैसी दलील दी कि चूंकि वो संसदीय सचिव के तौर पर सरकार से वेतन, गाड़ी, बंगला या कोई सुविधा नहीं ले रहे हैं, इसलिए संसदीय सचिव का पद लाभ का पद नहीं है. दिल्ली सरकार ने विधानसभा में दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन एक्ट 1997 में संशोधन करके अपने संसदीय सचिवों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का रास्ता निकालना चाहा लेकिन राष्ट्रपति ने इस संशोधन विधेयक को भी नामंजूर कर दिया.
इस बीच दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों की जंग हाईकोर्ट पहुंची तो दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासक माना और केजरीवाल सरकार के उन फैसलों को रद्द कर दिया, जो लेफ्टिनेंट गवर्नर की मंजूरी के बिना लिए गए थे. संसदीय सचिवों की नियुक्ति भी उन्हीं फैसलों में थी.
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आम आदमी पार्टी ने सोचा कि चलो, चुनाव आयोग की बला टली, लेकिन चुनाव आयोग ने मामले की सुनवाई जारी रखी और आज 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी. आम आदमी पार्टी ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन हाईकोर्ट ने भी फौरी तौर पर राहत देने से इनकार कर दिया.
अब सबको राष्ट्रपति के फैसले का इंतज़ार है. अगर राष्ट्रपति ने 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया तो दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव तय है. जिन विधायकों की सदस्यता छिनने का खतरा साफ दिख रहा है, उनमें चांदनी चौक की विधायक अलका लांबा, जंगपुरा के विधायक प्रवीन कुमार, नरेला के विधायक शरद कुमार, द्वारका के विधायक आदर्श शास्त्री, कस्तूरबा नगर के विधायक मदन लाल, मोतीनगर के विधायक शिव चरण गोयल, बुराड़ी के विधायक संजीव झा, रोहतासनगर की विधायक सरिता सिंह, मेहरौली के विधायक नरेश यादव, वजीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता, जनकपुरी के विधायक राजेश ऋषि, राजेंदरनगर के विधायक विजेंदर गर्ग, तिलकनगर के विधायक जरनैल सिंह, कोंडली के विधायक मनोज कुमार, लक्ष्मीनगर के विधायक नितिन त्यागी, मुंडका के विधायक सुखवीर सिंह, नजफगढ़ के विधायक कैलाश गहलोत, कालका जी के विधायक अवतार सिंह कालका, सदर बाजार के विधायक सोमदत्त और गांधीनगर के विधायक अनिल कुमार बाजपेयी शामिल हैं. चुनाव आयोग की तलवार वैसे तो राजौरी गार्डेन से विधायक रहे जरनैल सिंह पर भी चली है लेकिन जरनैल पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और राजौरी गार्डेन सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा जीत दर्ज़ कर चुके हैं.
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दिल्ली के भूगोल के हिसाब से बात करें तो जिन 20 सीटों पर उपचुनाव की नौबत दिख रही है, वो सीटें दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से हैं. इन सीटों पर उपचुनाव हुए तो नतीजों को मिनी मध्यावधि चुनाव के रूप में ही देखा जाएगा. इन 20 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, तीनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे और 2019 के लोकसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे. केजरीवाल अगर इनमें से आधी से कम सीटें जीतते हैं तो आम आदमी पार्टी के विस्तार की उम्मीदें धराशाई हो जाएंगी.
अगर केजरीवाल अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहते हैं तो बीजेपी के लिए 2019 में केजरीवाल बड़ी मुसीबत बन जाएंगे. वहीं केजरीवाल की जीत-हार से ही दिल्ली में कांग्रेस का भविष्य भी तय होगा. केजरीवाल के हारने का फायदा अगर बीजेपी को मिलता है तो इसका मतलब यही होगा कि दिल्ली में अब कांग्रेस लंबे समय तक हाशिए पर रहेगी. अगर कांग्रेस ने केजरीवाल की सीटें छीनीं तो विधानसभा में कांग्रेस का खाता खुलेगा और आने वाले चुनावों में कांग्रेस खुद को बीजेपी को हराने में सक्षम पार्टी के तौर पर पेश कर सकेगी.
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