नई दिल्ली. नीतीश कुमार के पिता कविराज राम लखन सिंह आयुर्वेदिक वैद्य थे. आजादी की लड़ाई में वो कांग्रेसी थी, जो 1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार भी थे. कांग्रेस का टिकट ना मिलने पर उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली थी. नीतीश के पिता आधुनिक बिहार के निर्माता कहे जाने वाले अनुग्रह नारायण सिन्हा के करीबी सहयोगी थे.
नीतीश कुमार ने 1985 के बाद से ही बिहार में विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. वो बिहार में विधान परिषद के सदस्य हैं. नीतीश की शादी 22 फरवरी 1973 को मंजू सिन्हा से हुई थी. मंजू टीचर थीं, जिनका 2007 में निधन हो गया. नीतीश का एक बेटा है, जिसका नाम निशांत है. निशांत बीआईटी मेसरा ग्रेजुएट हैं और राजनीति से उनका कोई वास्ता नहीं है. नीतीश कुमार शराब-सिगरेट से कोसों दूर हैं. उनका निकनेम मुन्ना है.
नीतीश कुमार ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. इस कॉलेज को अब एनआईटी पटना के नाम से जाना जाता है. इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने बिहार बिजली बोर्ड में कुछ दिन नौकरी भी की, लेकिन नौकरी में मन नहीं लगा तो नौकरी छोड़कर पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हो गए.
बिहार के सीएम के रूप में नीतीश
1. नीतीश कुमार ने पहली बार 3 मार्च, 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन उन्हें 7 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा
2. नीतीश दूसरी बार 24 नवंबर, 2005 को बिहार के मुख्यमंत्री बने
3. नीतीश कुमार ने 17 मई, 2014 को सीएम पद से इस्तीफा दिया और फिर 22 फरवरी 2015 को दोबारा मुख्यमंत्री बने
4. नीतीश पहली बार 1977 में विधानसभा लड़े लेकिन पहली बार विधायक बने 1985 में
5. मुख्यमंत्री बनते वक्त नीतीश कुमार एक बार भी विधानसभा के सदस्य नहीं रहे. वो इस वक्त भी विधान परिषद के सदस्य हैं और चुनाव नहीं लड़ रहे.
6. जीतनराम मांझी ने कहा भी था कि मुख्यमंत्री वही बने जो जनता से चुन कर आए. नीतीश के साथ-साथ सुशील मोदी भी विधान परिषद में ही हैं.
कैसे शुरू हुआ राजनीतिक सफ़र
1974 से 1977 तक नीतीश कुमार जेपी आंदोलन में पूरी तरह सक्रिय रहे. वो जेपी आंदोलन के दौर में बिहार के दिग्गज नेता सत्य नारायण सिन्हा के संपर्क में आए और उनके खास सहयोगी बन गए. 1977 में नीतीश कुमार ने नालंदा जिले की हरनौत विधानसभा सीट से जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें निर्दलीय भोला प्रसाद सिंह के हाथों 5895 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. 1980 में भी नीतीश कुमार ने जनता पार्टी (सोशलिस्ट) के टिकट पर हरनौत विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ा और इस बार भी उन्हें एक निर्दलीय के हाथों हारना पड़ा. इस बार नीतीश को अरुण कुमार सिंह ने 5060 वोटों के अंतर से हराया
1985 में नीतीश कुमार ने हरनौत विधानसभा सीट जीत ली. वो लोकदल के उम्मीदवार थे और उन्होंने कांग्रेस के वृजनंदन प्रसाद सिंह को 21412 वोटों के अंतर से हराया. विधानसभा में पहली पारी के बाद नीतीश कुमार 1989 में लोकसभा का चुनाव लड़े. उन्होंने जनता दल के टिकट पर नालंदा की बाढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस के राम लखन सिंह यादव को 78 हज़ार 347 वोटों से हराया. नीतीश कुमार 1990 में अप्रैल से नवंबर तक केंद्र में कृषि राज्य मंत्री रहे..। उन्होंने 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव भी जीता.
1998 में वो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री बनाए गए. फिर 1999 में उन्हें भूतल परिवहन और बाद में कृषि मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया..। 2001 में नीतीश कुमार को कृषि के साथ रेल मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. बाद में वो जुलाई 2001 से मई 2004 तक रेल मंत्री रहे. बिहार में 2000 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. नीतीश समता पार्टी में थे, जिसे 34 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी 67 सीटों पर जीती थी..। बीजेपी से समता पार्टी का गठबंधन था और केंद्र में एनडीए की सरकार.., लिहाजा नीतीश कुमार ने 3 मार्च 2000 को बिहार के 29वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. वो सदन में बहुमत नहीं साबित कर पाए, इसलिए सिर्फ सात दिन बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
फरवरी 2005 में एनडीए ने बिहार विधानसभा का चुनाव नीतीश की अगुवाई में लड़ा. इस बार भी किसी दल या गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं हुआ. केंद्र में यूपीए की सरकार थी और बूटा सिंह थे बिहार के गवर्नर, जिन्होंने 6 मार्च 2005 को राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर दी थी. दरअसल, 2005 में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. 92 सीटों के साथ जेडीयू-बीजेपी गठबंधन सबसे आगे था. कांग्रेस के 10 और एनसीपी के तीन विधायक 75 विधायकों वाले आरजेडी के साथ थे, लेकिन राम विलास पासवान 29 विधायकों के साथ किंगमेकर बन गए थे. वो ना तो एनडीए को समर्थन देने के लिए तैयार थे और ना ही आरजेडी को.
बिहार में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ एनडीए ने प्रदर्शन किया. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में राष्ट्रपति शासन को असंवैधानिक बताया. सवाल ये उठाया कि सदन में बहुमत का परीक्षण करने की बजाय राज्यपाल ने अपने मन से फैसला कैसे कर लिया. आखिरकार अक्टूबर 2005 में नए सिरे से विधानसभा चुनाव कराना पड़ा, जिसमें नीतीश की अगुवाई में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला और नीतीश कुमार ने बिहार के 31वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
2000 और फरवरी 2005 में हुए बिहार के राजनीतिक ड्रामे के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव एक दूसरे के कट्टर राजनीतिक दुश्मन बन गए. ये दुश्मनी 2014 के लोकसभा चुनाव तक जारी रही. लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को लेकर नीतीश कुमार ने बिहार में बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया था. बिहार में उनकी सरकार अल्पमत में थी, जिसे कांग्रेस ने समर्थन दिया था और आरजेडी ने वोटिंग के समय सदन का बायकाट करके जेडीयू की सरकार को गिरने नहीं दिया. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने.
लोकसभा चुनाव की हार देखकर नीतीश और लालू दोनों को समझ में आ गया कि अब भी दुश्मनी नहीं भूले, तो राजनीतिक वजूद खत्म हो जाएगा. लिहाजा दोनों ने हाथ मिला लिया. कांग्रेस भी इनके साथ थी, जिसका असर बिहार में विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिला. विधानसभा उपचुनाव के नतीजों से ही बिहार में महागठबंधन की बुनियाद पड़ी, क्योंकि नीतीश-लालू और सोनिया तीनों को समझ में आ गया था कि अगर तीनों की पार्टियों का वोट एकजुट कर दिया जाए, तो बिहार में नरेंद्र मोदी के जादू को भी मात दी जा सकती है.
बिहार में गठबंधन करने के लिए नीतीश और लालू..दोनों ने एक-दूसरे के सामने सरेंडर किया..। लालू ने नीतीश को नेता माना, तो नीतीश ने जेडीयू के सीटों में कटौती की. बीजेपी से गठबंधन वाले दौर में बिहार की 141 सीटों पर लड़ने वाला जेडीयू महागठबंधन में सिर्फ 101 सीटों पर संतुष्ट हो गया. जिस जीतनराम मांझी को नीतीश ने अपनी खड़ाऊं सौंपी थी, उन्होंने बीजेपी की शह पर नीतीश को ही आंखें दिखानी शुरू कर दीं. वो नीतीश के कहने पर भी इस्तीफा देने को तैयार नहीं हुए. हालांकि वो जेडीयू के विधायकों को बड़े पैमाने पर तोड़ने में नाकाम रहे, लिहाज़ा शक्ति परीक्षण में मांझी को मात खानी पड़ी और 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार फिर से सीएम बन गए.