कोलकाता: देश का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर काफी समय से हिंसा की चपेट में है जहां आदिवासी संघर्ष को लेकर माहौल गर्माया हुआ है. इन झड़पों में अब तक सैंकड़ों जानें जा चुकी हैं और हजारों लोग प्रभावित भी हो चुके हैं. कई लोग मणिपुर छोड़कर दूसरे राज्यों में शरण ले चुके हैं. इसी बीच केंद्रीय […]
कोलकाता: देश का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर काफी समय से हिंसा की चपेट में है जहां आदिवासी संघर्ष को लेकर माहौल गर्माया हुआ है. इन झड़पों में अब तक सैंकड़ों जानें जा चुकी हैं और हजारों लोग प्रभावित भी हो चुके हैं. कई लोग मणिपुर छोड़कर दूसरे राज्यों में शरण ले चुके हैं. इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और सेना प्रमुख मनोज पांडे विरोधी दलों के साथ स्थिति पर चर्चा करने के लिए मणिपुर गए हुए हैं. अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी मणिपुर जाने की इच्छा जताई है.
#WATCH | "I have been saying for so many days that they should visit Manipur. So many people died, the country must be told how many people died in the state and what's the situation in Manipur": West Bengal CM pic.twitter.com/QdIU4ltkA0
— ANI (@ANI) May 30, 2023
सीएम ममता बनर्जी ने कहा है कि वह शांति के संदेश के साथ अशांत मणिपुर में जाना चाहती हैं. इसके लिए उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर अनुमति मांगी है. गृह मंत्रालय को भेजे गए इस पत्र में सीएम ममता बनर्जी ने लिखा है कि वह केवल एक दिन के लिए मणिपुर जाना चाहती हैं इसलिए वह अनुमति मांग रही हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बताया है कि वह केंद्र सरकार से पहले ही मणिपुर जाने के लिए कह रही थीं लेकिन नहीं गए. इसलिए वह देश के लोगों को बताएं की इस समय मणिपुर की स्थिति कैसी है और वहां कितने लोगों की जान गई है. गौरतलब है कि इस समय मणिपुर में आतंकवाद रोधी अभियान जारी है जिसमें अब तक 40 उग्रवादियों के मारे जाने की खबर है. मंगलवार को राज्य सरकार ने हिंसा के पीड़ित लोगों को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की बात कही है. कहा गया है कि हिंसा से पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार मिलकर काम करेगी.
दरअसल मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक आदेश जारी किया था. इसमें राज्य सरकार को हाईकोर्ट द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के आदेश दिए गए थे. हालांकि बाद में इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई और क्योंकि मामला आरक्षण से जुड़ा था तो पहले से ही अनुसूचित जनजाति में शामिल नगा-कुकी समुदाय में नाराज़गी फ़ैल गई जिसमें अधिकांश लोग ईसाई धर्म को मानते हैं.
दूसरी ओर मैतेई हिंदू धर्मावलंबी हैं. तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला गया जिसमें शामिल लोग मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति की मांग का विरोध कर रहे थे. ये इस दौरान दोनों समुदाय के बीच झड़प की शुरुआत हुई जिसमें अब तक पूरा राज्य जल रहा है. बता दें, नगा और कुकी वन और पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं जिन्हें इंफाल घाटी क्षेत्र में बसने का भी अधिकार है. वन एवं पर्वतीय क्षेत्र में मैतेई समाज को ऐसा अधिकार नहीं मिला है. नगा और कुकी राज्य के 90 फीसदी क्षेत्र में फैले हैं जिनकी आबादी 34 फीसदी है. दूसरी ओर मैतेई की कुल आबादी में हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी है लेकिन उन्हें दस फीसदी क्षेत्र मिला है. इतना ही नहीं 40 विधायक मैतेई समुदाय से है. इसलिए ये पूरी लड़ाई जमीन और जंगल को लेकर है.
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