भोपाल. देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले चिंतक, विचारक और कवि अशोक वाजपेयी ने कहा है कि वर्ष 1975 में तो देश में घोषित तौर पर आपातकाल लगा था, मगर इन दिनों देश में अभिव्यक्ति पर अघोषित आपातकाल लगा है, जो क्या बोलें और क्या न बोलें, क्या कहें, क्या न कहें और क्या खाएं, क्या न खाएं तय करना चाहता है.
उन्होंने कहा कि इन दिनों अभिव्यक्ति पर हो रहे हमलों ने आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. वर्ष 1975 के आपातकाल का भी लेखकों ने विरोध किया था, उनमें निर्मल वर्मा, धर्मवीर भारती जैसे कई प्रसिद्ध साहित्यकार थे, कमलेश्वर व फणीश्वरनाथ रेणु तो जेल तक गए थे. वह आपातकाल तो घोषित तौर पर आपातकाल था, वह अपने आप में लोकतंत्र विरोधी था, मगर उसके पास कानून का संबल था, लेकिन वह अनैतिक था. यह तो अघोषित आपातकाल है.
लेखकों पर हुए हमलों और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्यकारों द्वारा सम्मान लौटाए जाने के सवाल पर वाजपेयी का कहना है कि ‘एक तो इसे नाटकीय कार्रवाई भी कहा जा सकता है, जिसके जरिए देश का ध्यान आकृष्ट करना है, इस समय देश में जिस तरह से असहिष्णुता, धार्मिक उन्माद, हिंसा, घृणा का माहौल विकसित हो रहा है, वह खतरनाक है. दूसरी बात कि जिन सत्ताओं द्वारा इसे मौन समर्थन दिया जा रहा है या बढ़ावा दिया जा रहा है और अनदेखी की जा रही है, उनसे हमारा विरोध है, और हम यही विरोध दर्ज करा रहे हैं.
IANS