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हिमाचल में BJP का CM कौन: नरेंद्र मोदी के मन की बात जानने में जुटे धूमल और नड्डा

नई दिल्ली. हिमाचल विधानसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद आज बीजेपी ने 68 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी. इस लिस्ट में हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती के साथ-साथ प्रेम सिंह धूमल के नाम का भी ऐलान कर दिया गया है. इस बार वो अपनी सीट हमीरपुर के बजाय सुजानपुर से लडेंगे. इस सीट के ऐलान के बाद धूमल के एक करीबी नेता ने मंडी में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मांग की कि बीजेपी को फौरन अपना सीएम कैंडिडेट घोषित करना चाहिए और पेच यहीं फंसा है. मोदी और शाह के मन में क्या चल रहा है, ये किसी को नहीं पता है. हरियाणा में खट्टर की तरह कोई गुमनाम नाम या यूपी की तरह चुनाव प्रचार में प्रचारक के तौर पर सक्रिय योगी जैसा कोई चेहरा, या फिर दोबारा से सेहरा धूमल के सर पर? मोदी के मन की बात जानने के लिए हर कोई बेकरार है.
प्रेम कुमार धूमल दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. गुजरात के प्रभारी भी रहे हैं, इसलिए मोदी से पुरानी करीबी है. पिछली बार मोदी यूपी विधानसभा में प्रचार करने नहीं गए थे, लेकिन हिमाचल में जरूर गए. हालांकि फिर भी हार गए धूमल. इस बार जबकि बीजेपी और संघ के कुछ इंटरनल सर्वे के नतीजों में हिमाचल से कुछ अच्छे संकेत मिलते लग रहे हैं. धूमल के नाम का अगर ऐलान नहीं हुआ और नड्डा का नाम उछलने लगा तो हर किसी के मन में सवाल उठने लगेगा कि क्या बीजेपी इस बार अपने दो बार के चीफ मिनिस्टर को फिर से मौका नहीं देगी?
आखिर धूमल के खिलाफ क्या-क्या जाता है? पहला और सबसे बड़ा मुद्दा है धूमल की उम्र का, धूमल 73 साल के हो चुके हैं. अगर मोदी अपनी करीबी आनंदी बेन के 75वें बर्थेडे से पहले हटा सकते हैं और नजमा हेपतुल्ला को भी, तो ये फॉरमूला धूमल पर भी लागू होने का दवाब होना तय ही है. ये हो सकता है कि धूमल को आनंदी की तरह 75 का होने तक चीफ मिनिस्टर रहने दिया जाए और फिर गुजरात की तरह ही कोई दूसरा सीएम बना दिया जाए. एक और वजह है धूमल के नाम का ऐलान ना होने की, संघ का दवाब भी होता है कि पार्टी में वंशवाद ना बढ़े. अनुराग ठाकुर, दुष्यंत सिंह, वरुण गांधी और पंकज सिंह को अगर सरकारों में मौका नहीं मिला तो उसके पीछे यही वजहें बताई जाती हैं. संघ का साफ कहना है कि एक परिवार से एक ही को सत्ता में मौका मिले. आज धूमल को कुर्सी नहीं देते हैं, तो उसके बाद अनुराग को पद देना आसान होगा. लेकिन दिक्कत ये भी है कि संघ के कई लोग अनुराग के साथ उतने सहज नहीं हैं. सामान्य पृष्ठभूमि के प्रचारकों और कार्यकर्ताओं के लिए अनुराग का सेलेब्रिटी किरदार ‘अनएप्रोचेबल’ सा बन गया है.
दरअसल अनुराग पार्टी में सबसे ज्यादा जेटली के करीबी हैं. बीसीसीआई से जुड़ाव के चलते वो जननेता के बजाय हाईप्रोफाइल टाइप के नेता ज्यादा नजर आते हैं और इसके चलते उन पर स्टेडियम की जमीन हथियाने जैसे आरोप भी लगे. नतीजा ये कि सादगी पसंद संघियों में उनकी पकड़ कमजोर है. खबर तो ये भी है कि अनुराग अपने पिता के कैम्पेन को संभालने के लिए पार्टी कैडर से ज्यादा एक ईवेंट मैनेजर पर भरोसा कर रहे हैं, जो आईपीएल के ईवेंट करवाता आया है. अनुराग की हाईक्लास इमेज भी धूमल के लिए परेशानी भरी है.
इधर दो दशक से ज्यादा समय से हिमाचल में बीजेपी को संभाल रहे धूमल की वजह से नए नेता उठ नहीं पा रहे है. आलम ये है कि शांता कुमार के बाद धूमल और अनुराग को ही लोग जानते हैं, जेपी नड्डा हिमाचल के पहले ऐसे नेता बने हैं, जो बमुश्किल अपनी पहचान बना पाए हैं. जबकि संघ के कई बड़े प्रचारक हिमाचल से ही हैं. नड्डा ने भी हिमाचल में कभी धूमल की सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय संभाला था. फिर वो प्रदेश की राजनीति से निकलकर राज्यसभा सदस्य बन गए और आज केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हैं. इतना ही नहीं, इतनी जल्दी बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल होना भी कम उपलब्धि की बात नहीं. बिना संघ की सहमति के उन्हें ये पोजिशन नहीं दी जा सकती थी.
ये अचानक ही नहीं था कि जेपी नड्डा के नाम की खबरें राजनीतिक हलकों में उड़ने लगीं. बीजेपी ने कई सीएम कैंडिडेट्स को दिल्ली में ट्रेंड करके वापस राज्य की राजनीति में भेजा है. वो अच्छे मुख्यमंत्री साबित भी हुए हैं. खुद मोदी से लेकर हालिया असम और यूपी तक में ये प्रयोग सफल साबित हुए हैं. जब विलासपुर रैली में पीएम मोदी ने केवल जेपी नड्डा की ही तारीफ की, उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय के हालिया इंद्रधनुष टीकाकरण अभियान के बारे में कहा कि किसी और देश में होता तो पूरी दुनिय़ा में इसकी चर्चा होती. नड्डा ने हाल ही में शांता कुमार से भी मुलाकात की. बताया जा रहा है कि नड्डा ने नाराज शांता कुमार को मना लिया है, तभी वो मोदी की रैली में नजर भी आए. विलासपुर में एम्स का उदघाटन हो या फिर चंडीगढ़ कुल्लू फ्लाइट की शुरुआत नड्डा क्रेडिट लेने का मौका छोड़ नहीं रहे. हफ्ते में वो तीन या चार दिन इन दिनों हिमाचल में ही दिख रहे हैं.
इधर ऐसा लग रहा है कि बीजेपी इस बार किसी को भी सीएम कैंडिडेट लांच नहीं करेगी, क्योंकि विद्रोह होने का भी डर है. साथ ही एक भी कमजोर सीट को छोडना नहीं चाहती, तभी धूमल को पुरानी हमीरपुर के बजाय थोड़ी कमजोर सुजानपुर सीट से लडाया गया है ताकि एक सीट का फायदा हो जाए. हालांकि, वीरभद्र सिंह ने भी अपने बेटे विक्रमादित्य को लांच करने के लिए अपनी पुरानी सीट छोड़ दी है. तमाम सीबीआई केसेज में फंसने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया है. इसके पीछे एक तो दूसरे नेता का ना होना बताया जा रहा है, दूसरे मोदी से उनकी अदावत पुरानी है, जिसका सिरा गुजरात हाईकोर्ट में उनकी जज बेटी से जुड़ता है.
इधर ये भी माना जा रहा है कि मोदी, शाह और संघ अपने सारे विकल्प खुले रखना चाहते हैं ताकि वो तो वीरभद्र को करप्शन पर आसानी से घेर सकें और उनके कैंडिडेट को कोई ना घेर सके क्योंकि कैंडिडेट होगा ही नहीं. उसके बाद उनके पास तीन विकल्प होंगे, या तो फिर से धूमल और दो साल बाद नड्डा को मौका दिया जा सकता है या चुनाव नतीजों के बाद ही नड्डा को सीएम बनाया जा सकता है. संघ ने पहले ही किसी भी तरह के वंशवाद को बढ़ाने के बजाय किसी कर्मठ कार्यकर्ता को मौका देने की नीति बना ली है. दिक्कत अगर ये आई कि नड्डा को स्वास्थ्य मंत्रालय में ही केन्द्र में रखना है औऱ संसदीय बोर्ड में ही रखना है तो फिर खट्टर जैसा कोई तीसरा चेहरा तय मानिए. बाहर से भले ही उस चेहरे को आम जनता या मीडिया ना जानती हो लेकिन वो कोई पुराना सीनियर संघ प्रचारक भी हो सकता.
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