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Movie Review: वीआईपी 2 देखकर काजोल के फैंस हो सकते है निराश

नई दिल्ली: काजोल ने अचानक साउथ की फिल्म साइन की और वो भी धनुष के साथ तो लगा कि फिल्म कुछ दमदार होगी. वैसे भी पिछले कुछ सालों में काजोल की च्वॉइस बुरी नहीं गई. वो भी तब जब दावा ये किया जा रहा था कि काजोल इस फिल्म में एक आम प्रेमिका की बजाय एक बिजनेस टायकून के तौर पर दिखेंगी. लेकिन लगता है ये दाव बेकार चला गया है.
हिंदी बैल्ट में रांझड़ा देखकर और कोलाबेरी गुनगुनाकर जितने भी धनुष के फैन बने होंगे, उनकी उम्मीद उनसे टूट जाएगी. फिल्मी खानदानों के चिरागों से साथ ये मुश्किल कोई नई नहीं है कि कुछ हिट फिल्में देने के बाद वो फिल्म प्रोडक्शन के हर डिपार्टमेंट में घुसने लगते हैं, खासतौर पर कहानी तो फिल्म की जान होती है, वहां ये परहेज ही बरतें तो बेहतर. स्क्रिप्ट और डायलॉग्स धनुष ने खुद लिखे, स्क्रीनप्ले सौंदर्या रजनीकांत ने लिखा और डायरेक्शन भी उन्होंने ही किया.
फिल्म का म्यूजिक भी साउथ की फिल्मों के म्यूजिक के दीवानों को पसंद नहीं आएगा. हालांकि बाहुबली आने के बाद साउथ की डब फिल्मों से हिंदी बैल्ट को कुछ ज्यादा ही उम्मीद बन गई थी, उसका धराशाई वीआईपी टू के जरिए होना तय है.
वीआईपी यानी हिंगी वालों के लिए वेल्ला इम्पोर्टेंट परसन और साउथ वालों के लिए वेल्लई इल्ला पट्टाधारी. इसका पहला पार्ट क्या सुपरहिट चला गया धनुष ने सीक्वल की तैयारी कर ली. कहानी ये है कि एक सोशल प्रोजेक्ट के जरिए चर्चा में आए सिविल इंजीनियर रघुवरन यानी धनुष को साल का बेस्ट इंजीनियर का खिताब मिलता है, जिसके चलते सबसे बड़ी कंस्ट्रक्टशन कम्पनी की मालकिन वसुंधरा (काजोल) उसे नौकरी का ऑफर देती है, जिसे वो ठुकरा देता है.
वसुंधरा को उसका एटीट्यूड पसंद नहीं आता और वो उसकी कंपनी के कई प्रोजेक्ट्स कम कीमत देकर हथिया लेती है. रघुवरन उस कंपनी से इस्तीफा दे देता है, फिर साथियों की मदद से अपनी कंपनी खड़ा करता है, लेकिन पहला प्रोजेक्ट ही गलत जगह के चलते छोड़ देता है और जब वो प्रोजेक्ट वसुंधरा करना चाहती है तो उसे करने नहीं देता. गलतफहमियों के चलते दरार बढ़ जाती है.
तो ऐसी बिजनेस राइवलरी पर कई फिल्में बॉलीवुड में आ चुकी हैं. इसमें अलग ये है कि काजोल चूंकि एक विलेन के रोल में थीं, सो उसकी एंडिंग पॉजीटिव दिखानी थी, इसलिए क्लाइमेक्स में दोनों को एक ऑफिस में ऐसे फंसा दिया जाता है कि दोनों भारी बारिश के चलते बाहर नहीं निकल सकते थे. रात भर में दोनों अपनी गलतफहमियां दूर कर लेते हैं.
धनुष ने तो सोचा होगा कि क्या कहानी लिखी है, लेकिन यही फिल्म का सबसे वीक प्वॉइंट साबित हुई. काजोल को भी फिल्म में वेस्ट ही किया गया है. हालांकि शुरूआत में वो काफी जमी थीं, लेकिन उनके हिस्से करने के लिए कुछ नहीं था. धनुष अपना ज्यादातर समय घरवालों और ऑफिस वालों के साथ मजाक करते बिताते रहे, या फिर फाइट सींस के जरिए.
इसलिए एक बार को काजोल फैन देखने का मूड भी बना रहे हों तो ज्यादा उम्मीदें लेकर ना जाएं. हालांकि बाकी करैक्टर्स की एक्टिग अच्छी है. लेकिन अमिताभ के साथ शमिताभ और काजोल के साथ वीआईपी टू जैसी फिल्में बनाने के बाद बॉलीवुड वाले रजनीकांत के इस दामाद से कतराने लगें तो कोई बड़ी बात नहीं.
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