नई दिल्ली: अब ना पूंजीवाद चलेगा और ना मार्क्सवाद, अब चलेगा सुमंगलम. खुले बाजार की अर्थव्यवस्था, ग्लोबलाइजेशन और उपभोक्तावाद से जो लोग तंग आ गए हैं, जिनको इन विकास मॉडल्स में प्रगति के उपाय नहीं दिखते हैं, उनको ‘सुमंगलम’ नाम का नया आर्थिक मंत्र राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने हाल ही में दिया है.
इस सिद्धांत को विकसित करने में लगे हैं संघ के उत्तर क्षेत्र के संघचालक बजरंग लाल गुप्ता, जो दिल्ली यूनीवर्सिटी में इकोनोमिक्स पढ़ा चुके हैं और अर्थशास्त्री हैं.
बजरंग लाल गुप्ता बताते हैं, कि ‘’विकास के लिए दुनियां भर में तमाम तरह के सिद्धांत और शब्द अलग अलग अर्थशास्त्रियों ने सुझाए, जिनमें पहले प्रोग्रेस कहा गया, ग्रोथ कहा गया, बाद में सीधे सीधे इसे डेवलपमेंट कहा जाने लगा. फिर इसमें थोड़ा सुधार करके ह्यूमन डेवलपमेंट कर दिया गया, कुछ लोग इसे क्वालिटी ऑफ लाइफ भी कहने लगे. लेकिन खाली शब्दों को गढ़ लेने से या थोड़ी बहुत हेरफेर से उद्देश्य तो पूरा नहीं हुआ.
अमीर और अमीर हो रहे हैं, गरीब और गरीब हो रहे हैं, विकास तो दुनियां भर में दिख रहा है लेकिन उससे ज्यादा बेरोजगारी दिख रही है. तो ये कैसे डेवलपमेंट है, जिसका लाभ एक खास वर्ग को बहुत ज्यादा मिल रहा है और एक बड़े वर्ग को बहुत कम या बिलकुल नहीं. उसमें भी डेवलपमेंट पर सवाल उठ रहे हैं कि ये पर्यावरण का नुकसान कर रहा है, आगे की पीढियों का हक खा रहा है.‘’
बजरंग लाल गुप्ता ने शुद्ध भारतीय अवधारणा पर पूरी पृथ्वी के विकास के लिए एक नया सिद्धांत दिया है, जिसे उन्होंने नाम दिया है ‘सुमंगलम’. वो बताते हैं, ‘’भारत में मंगल शब्द अपने आप में काफी कुछ पॉजीटिवटी समेटे हुए है. जब भारतीय ‘सर्वे भवंति सुखना’ कहते हैं तो इसका मतलब होता है सबका सुख, सब सुखी हों. लेकिन जब लोगों ने कहा कि यहां केवल मनुष्यों के सुखों की बात हो रही है, तो एक और श्लोक आया ‘सर्वे भूत हितेय रत:’ यानी सभी जीवित-मृत प्राणी सुखी हों.
एक तरह से इसमें पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बात की गई दरअसल यही है सुमंगलम का कांसेप्ट. हालांकि सुमंगलम जैसा ही एक शब्द पहले से चल रहा है वैलफेयर इकोनोमी. लेकिन वैलफेयर इकोनोमी में केवल इतना है कि सभी मनुष्यों को समान अवसर मिलें, कमजोर वर्गों को मदद मिले. लेकिन सुमंगलम उससे आगे की बात है जिसमें ना केवल समान अवसर और कमजोरों की मदद की बात है बल्कि मनुष्य के अलावा भी बाकी जीवों और पर्यावरण की सुरक्षा की बात की गई है. साथ ही आने वाली पीढियों को भी मूलभूत जरूरत की चीजें आसानी से मिल सकें, उपयुक्त वातावरण मिले, उसकी भी बात की गई है.‘’
सुमंगलम के तहत पांच उद्देश्य रखे गए हैं, पहला है सबको रोटी यानी सबकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की गारंटी, यानी कोई भूखा ना रहे, कोई अशिक्षित ना रहे आदि. दूसरा है सबको स्वास्थ्य—शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य-चिकित्सा की सारी विधियों से, योगा भी. तीसरा है सबको समाजोपयोगी शिक्षा के समान अवसर. चौथा है सबको रोजगार यानी हर हाथ को काम और पांचवां है सबको सभी तरह की सुरक्षा यानी सभी प्रकार की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा. हालांकि उनकी तरफ से केवल उद्देश्य बताए गए हैं, अभी तक इसे लागू करने का तरीका पूरी तरह से सामने नहीं आया है.
संघ का कहना है कि ग्लोबलाइजेशन से या मुक्त बाजार व्यवस्था से परेशानी नहीं है, व्यापार होगा तो सभी देशों के बीच होना ही चाहिए, लेकिन जिस तरह से कुछ देशों ने डब्ल्यूटीओ के कुछ प्रावधानों के तहत गरीब देशों में अपना मंहगा माल खपाने और उनका माल सस्ते में खरीदने का जो सिस्टम डेवलप किया है, उससे सभी देशों को बराबर फायदा होने की बजाय कुछ ही देशों को ज्यादा फायदा हो रहा है. इसको लागू करने का तरीका बदलना होगा. ग्लोबलाइजेशन से उपभोक्तावाद बढ़ा है, प्रोडक्शन ज्यादा चाहिए तो मशीनें चाहिए, इससे बेरोजगारी बढ़ी है, अमीरी बढ़ी है तो गरीबी भी बढ़ी. सुमंगलम में सस्टेनेबल कंजम्पशन पैटर्न लाने का प्रयत्न होगा, ऐसा उनका कहना है.
संघ ने वर्तमान में जीडीपी की गढ़ना करने के सिस्टम में भी बदलाव की बात कही है. हालांकि सुमंगल का ये सिद्धांत सैद्धांतिक तौर पर ही अभी रखा गया है, प्रेक्टीकल तौर पर इसका पूरा फॉरमेट सामने आना, और इसको आजमाना अभी बाकी है.