सहारनपुर जातीय हिंसा: योगी सरकार के खिलाफ अंबेडकर समिति का हल्ला-बोल

सीएम योगी आदित्यनाथ के राज में सहारनपुर में दलितों पर लगातार हो रहे अत्याचार का आरोप लगाते हुए डॉ अंबेडकर समिति के कार्यकर्ताओं ने बुलंदशहर में प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया. प्रदर्शन कर रहे समिति के कार्यकर्ता बीजेपी के खिलाफ नारे लगा रहे थे.

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सहारनपुर जातीय हिंसा: योगी सरकार के खिलाफ अंबेडकर समिति का हल्ला-बोल

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  • May 26, 2017 2:26 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
बुलंदशहर: सीएम योगी आदित्यनाथ के राज में सहारनपुर में दलितों पर लगातार हो रहे अत्याचार का आरोप लगाते हुए डॉ अंबेडकर समिति के कार्यकर्ताओं ने बुलंदशहर में प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया. प्रदर्शन कर रहे समिति के कार्यकर्ता बीजेपी के खिलाफ नारे लगा रहे थे.
 
प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि जब से केंद्र में मोदी और प्रदेश में योगी सरकार बनी है तब से दलितों पर लगातार अत्याचार हो रहे हैं. बीजेपी सरकार में सहारनपुर हिंसा कांड में भीम आर्मी के सदस्यों पर फर्जी मुकदमे लगाए जा रहे हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीजेपी सरकार दलित समाज के खिलाफ दमनकारी नीति अपना कर दहशत फैला रही है.
 
 
सहारनपुर की घटना में जिस भीम सेना का नाम सामने आ रहा है उसे लेकर खुफिया विभाग की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भीम सेना का यूपी की एक पूर्व सत्ताधारी पार्टी ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए भीम सेना की मदद की.
 
 
खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बीएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मायावती के भाई आनंद कुमार ने भीम सेना की मदद की. आनंद कुमार भीम आर्मी को फंड मुहैया करा रहे थे. सूत्रों के मुताबिक ये बात भी सामने आई है कि पिछले दिनों भीम आर्मी के अकाउंट में 45-50 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए थे. यूपी पुलिस के सामने अब भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर रावण को पकड़ने की चुनौती है. चंद्रशेखर रावण 9 मई से ही फरार चल रहा है.
 
 
भीम सेना का गठन हुए अभी दो साल भी नहीं हुए हैं. लेकिन इसकी चर्चा दलितों के साथ ही गैर-दलितों में भी हो रही है. इस संगठन से हजारों युवा जुड़े हैं जिनके हाथों में एंड्रॉयड फोन हैं. ये फेसबुक और ट्विटर पर भी सक्रिय हैं. फेसबुक पर भीम आर्मी के कई पेज हैं. यहां तक कि जिलों के नाम से भी अलग-अलग पेज हैं. अब तक इसके पीछे एक वकील चंद्रशेखर का नाम आ रहा था. पहली बार यूपी सरकार की खुफिया रिपोर्ट से राजनीतिक संरक्षण का खुलासा हुआ है.

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