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क्यों बीजेपी ने दिए मालेगांव में मुसलमानों को 45 टिकट?

नई दिल्ली: यूपी के विधानसभा चुनावों में एक मुस्लिम को भी टिकट ना देनी वाली भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र के मालेगांव के निकाय चुनावों में पूरे 45 मुस्लिमों को अपने सिम्बल पर लड़ाने जा रही है. बीजेपी की हिंदूवादी छवि को देखते हुए सबके दिमाग में आएगा ये सवाल कि आखिर इतना बड़ा फैसला बीजेपी ने कैसे कर लिया? सबने जवाब भी दिमाग में अंदाजे से लगा लिया होगा कि वहां मुसलमान ज्यादा होंगे इसलिए लिया होगा ये फैसला.
जवाब सच है, लेकिन इतने ज्यादा मुसलमान उस मालेगांव में कैसे आ गए और कैसे बीजेपी ने 45 मुसलमान अपनी टिकट के लिए ढूंढ भी लिए? और बीजेपी कैसे तैयार हो गई इतने मुसलमानों को टिकट देने के लिए, इन सारे सवालों को विस्तार समझने के लिए आपको मालेगांव को ढंग से समझना होगा.कभी मल्लीगाम कहे जाने वाला मालेगांव को देश के लोग प्रज्ञा ठाकुर केस और मालेगांव ब्लास्ट की वजह से ज्यादा जानते हैं.
मालेगांव मुंबई से 280 किमी दूर मुंबई-आगरा हाइवे पर नासिक जिले में हैं और नासिक के बाद उस जिले का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. इसमें दो विधानसभाएं हैं एक मालेगांव, दूसरे बाहरी मालेगांव. दिलचस्प बात है कि जहां मालेगांव में हमेशा से मुसलमान विधायक रहा है, वहीं बाहरी मालगांव में अरसे से शिवसेना का हिंदू विधायक है.
दरअसल 2011 की जनगणना के मुताबिक मालेगांव में 78 से 79 फीसदी मुसलमान हैं, जबकि हिंदू बस 18 से 19 फीसदी हैं. जबकि ये शहर बसाया ही एक हिंदू जागीरदार ने था, जिसका नाम था नारो शंकर राजे बहादुर. मौसम और गिरना नदियों पर बसा ये इलाका पहले एक जंक्शन था, जिसका नाम था मालीवाड़ी. 1740 में इस जागीरदार ने उसे अपने किले के लिए इसे चुना.
25 साल तक ये किला बनता रहा और तमाम मुस्लिम कारीगर इसमें काम करते रहे, क्योंकि इतना ज्यादा वक्त लगा तो वो धीरे धीरे वो सभी वहीं बस गए, उन्होंने दूरदराज से अपने रिश्तेदारों, गांववालों को भी रहने बुला लिया, ये सभी सूरत और उसके आसपास के शहरों से आए थे.जब 1818 में अंग्रेजों ने इस किले पर कब्जा कर लिया, तो हैदराबाद से आने वाले मुसलमानों की संख्या यहा बढ़ गई.
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यूपी-बिहार में काफी हलचल हुई. हजारों मुसलमानों ने वहां से भी मालेगांव का रुख किया. दरअसल यहां मुसलमानों को रोजगार मिल रहा था, उनके पास जो हुनर था, उसका काम यहां धीरे धीरे बढ़ रहा था. सबसे ज्यादा आने वाले थे जुलाहे और बुनकर. 1935 के बाद यहां पॉवरलूम इंडस्ट्री जोर पकड़ने लगी और आज की तारीख में पूरी तीन लाख पॉवरलूम्स हैं, जो रोज करीब एक लाख मीटर कपड़ा तैयार करती हैं. दूसरी जो बड़ी इंडस्ट्री यहां विकसित हुई वो है पीवीसी पाइप की. हजारों लोग इस बिजनेस में भी हैं.
आम मुस्लिम इलाकों जैसा नहीं है मालेगांव, यहां उन्हें रोजगार मिलता है, इसलिए सदियों से मुसलमान इस शहर की तरफ खिंचा चला आ रहा है. शहर की साक्षरता दर भी आम मुस्लिम इलाकों के मुकाबले काफी बेहतर है, पूरे 73 फीसदी. उर्दू संस्कृति को भी काफी बढ़ावा दिया जा रहा है, हर साल उर्दू फेस्टिवल भी आयोजित होता है. चूंकि बिजनेस पसंद हैं, काम से काम रखते हैं, और बीजेपी को लगता है कि कट्टरता कम है, वैसे भी इतनी जनसंख्या के होते हुए उनको नजरअंदाज करना मुश्किल है.
ऐसे में बीजेपी के लिए ये भी खासा मुश्किल था कि ज्यादा से ज्यादा मुसलमान कैंडिडेट्स को कैसे ढूंढा जाए, जबकि शिवसेना का बेस स्टेशन पहले से ही यहां मजबूत है, कम से कम बाहरी इलाकों में तो, यहां कई बार से विधानसभा चुनावों में शिवसेना जीतती आ रही है. ऐसे में बीजेपी को जल्दी और मारक नतीजे देने के लिए बीजेपी को कोई तो मास्टर गेम खेलना ही था.
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की मेहनत भी काम लाई, तमाम मुसलमान ऐसे थे, जो उदार थे, कुछ शर्तों के साथ बीजेपी में आने के तैयार थे. वैसे भी बीजेपी के पास खोने को कुछ है नहीं. हालांकि बीजेपी को पूरी 84 सीटों पर उम्मीदवार नहीं मिले, फिर भी किसी तरह से बीजेपी ने 77 सीटों पर उम्मीदवार खड़े ही कर दिए. जिनमें से 45 मुसलमान हैं और चुनाव 24 मई को होने जा है, ऐसे मे ये जानना वाकई में दिलचस्प होगा कि इस मुसलमानी मास्टर स्ट्रॉक का बीजेपी कितना फायदा उठा पाई.
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