कोलकाता. बंगाल की दक्षिण कांथी सीट के लिए हुए उपचुनाव की मतगणना में तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी और चंद्रिमा भट्टाचार्य ने 42536 वोटों से जीत दर्ज की है. इस भारी जीत के साथ यह तय हो गया है कि बंगाल में ममता बनर्जी का जादू अभी भी बरकरार है.
लेकिन इसके साथ ही एक सवाल भी खड़ा हो गया है क्या बंगाल में बीजेपी ने वामपंथी पार्टियों के विकल्प तौर पर उभर रही है. इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी यहां पर दूसरे पर नंबर रहा है. सीपीआई प्रत्याशी उत्तम प्रधान तीसरे नंबर पर थे और कांग्रेस चौथे पर नंबर आई है.
ऐसा लग रहा है कि वामपंथ के हाथ से बंगाल पूरी तरह खिसकता नजर आ रहा है. इससे पहले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर मे बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई थी, उस समय माना गया था यह मोदी लहर का नतीजा हो सकता है.
लेकिन उसके बाद से बीजेपी बंगाल में सड़क पर खूब संघर्ष करती दिखाई दे रही है और धीरे-धीरे वामपंथी पार्टियों का विकल्प बनती जा रही है. बंगाल विधानसभा चुनाव में कई जगहों पर बीजेपी प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे हैं.
जबकि लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन करने के बाद भी कुछ खास नहीं कर पाई थीं. खबरों की मानें तो बीजेपी के इस उभार के पीछे आरएसएस का बड़ा हाथ माना जा रहा है. संघ बहुत बंगाल के अंदर अब विस्तार रहा है उसकी शाखाएं भी बढ़ रही हैं और उसमें आने वाले लोगों की संख्या भी.
पड़ोसी राज्य में असम में बीजेपी अपनी सरकार पहले बना चुकी है. बंगाल में वह तेजी से आगे बढ़ रहा है. लेकिन बीजेपी के सामने ममता बनर्जी का जादू तोड़ पाना अभी बहुत मुश्किल है. क्योंकि ममता ने बंगाल की राजनीति में सालों काम किया है.
उन्होंने वामपंथ के 35 साल पुराने किलो ढहा कर यहां पर अपनी सरकाई बनाई थी और दूसरी बार भी प्रचंड बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनीं हैं और कांठी विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बाकी राज्यों में भले ही मोदी के लहर के आगे कांग्रेस सहित दूसरे दलों ने घुटने टेक दिए हों लेकिन बंगाल में ममता का जादू अभी भी बरकरार है.
दूसरी ओर लेफ्ट पार्टियों के लिए अब यह आत्मचिंतन का बड़ा विषय है कि आखिर बंगाल में वह क्यों धीरे-धीरे अपनी प्रसांगिकता खोता जा रहा है और बीजेपी उसके विकल्प के तौर पर उभर रही है.