नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को वो दावा किया कि दिल्ली के मुख्मंत्री अरविंद केजरीवाल के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. स्मृति ईरानी ने कहा कि 6 महीने में दिल्ली में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होंगे. ये बयान इस वजह से हैरान करने वाला है क्योंकि केजरीवाल सरकार को अभी दो साल ही हुए हैं.
दिल्ली में 6 महीने बाद चुनाव !
केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि हम 6 महीने बाद फिर से मनजिंदर सिंह सिरसा मैदान-ए-जंग में उतरेंगे. फर्क सिर्फ इतना होगा कि 6 महीने बाद हम आपके विधायक के लिए वोट मांगने आएंगे और आज हम आपसे आशिर्वाद मांगने आए हैं.
दरअसल राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर उप-चुनाव है और मनजिंदर सिंह सिरसा बीजेपी के उम्मीदवार हैं. प्रचार के आखिरी दिन स्मृति ईरानी ने उनके लिए वोट मांगा और इसी दौरान ये दावा किया कि 6 महीने बाद दिल्ली में चुनाव होंगे. दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस उम्मीदवार मीनाक्षी चंदीला के लिए प्रचार किया.
कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि ये जो पंजाब में ड्रग माफिया से, ट्रांसपोर्ट माफिया से और केबल माफिया से वो इनका चेला यहां आकर चुनाव में हराम का पैसा लगा रहा है. नत्था सिंह और प्रेम सिंह एक ही हैं. ये बादलों के ही चेला हैं.
दरअसल राजौरी गार्डन सीट आम आदमी पार्टी के विधायक जरनैल सिंह के इस्तीफे से खाली हुई थी जो प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ लांबी सीट पर लड़ने गए थे लेकिन हार मिली.
स्मृति ईरानी ने ऐसा क्यों कहा?
दरअसल, आम आदमी पार्टी के 67 में से 21 विधायकों की सदस्यता पर लाभ का पद मामले में तलवार लटकी है. चुनाव आयोग जल्दी ही उन पर अपना फैसला सुना सकता है. दूसरी तरफ, पंकज पुष्कर और देवेंद्र सहरावत जैसे विधायक पहले से ही बागी हैं. इन सबके बीच राजौरी गार्डन की सीट और एमसीडी चुनावों के नतीजे आने वाले हैं. अगर दोनों ही फैसले आम आदमी पार्टी के खिलाफ जाते हैं तो विधायकों में खलबली मच सकती है. यही वजह है कि बीजेपी ने राजौरी गार्डन सीट और एमसीडी चुनावों में पूरी ताकत लगा रखी है. दूसरी तरफ, कांग्रेस में भी अपना खाता खोलने की बेचैनी है.
अंदर की बात
अंदर की बात ये है कि बीजेपी फिलहाल दिल्ली के लोगों का मूड भांप रही है. उसके लिए पहला संकेत राजौरी गार्डन उप-चुनावों का नतीजा होगा और दूसरा बड़ा संकेत होगा एमसीडी का चुनाव. अगर इन दोनों में ही जनता ने आम आदमी पार्टी को खारिज कर दिया तो बीजेपी केजरीवाल के खिलाफ अपना एजेंडा और तेज कर सकती है.
दूसरी तरफ उसकी नज़र केजरीवाल के उन विधायकों पर होगी जो उनसे नाराज़ चल रहे हैं और मौका मिलते ही पाला बदल सकते हैं. विधायकों की सदस्यता और शुंगलू कमेटी रिपोर्ट से घिरे केजरीवाल के लिए हार के बाद पार्टी को एकजुट रखना मुश्किल हो सकता है. बीजेपी चाहेगी कि वो ऐसा हालात पैदा कर दे ताकि केजरीवाल खुद विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दें और इसके लिए उसने 6 महीने का समय तय कर रखा है.