हद से ज्यादा उलझा है मंदिर-मस्जिद विवाद, बातचीत से सुलझना मुश्किल
नई दिल्ली. अयोध्या में सालों से चल रहा है मंदिर-मस्जिद विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत से सुलझाने के लिए कहा है. यह बात सुनने में तो अच्छी लग सकती है लेकिन इस मुद्दे की तह में जाएं तो मामला इतना उलझा है कि लगता नहीं इस पर कोई सहमति बन पाएगी. सच्चाई ये है […]
March 22, 2017 9:16 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. अयोध्या में सालों से चल रहा है मंदिर-मस्जिद विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत से सुलझाने के लिए कहा है. यह बात सुनने में तो अच्छी लग सकती है लेकिन इस मुद्दे की तह में जाएं तो मामला इतना उलझा है कि लगता नहीं इस पर कोई सहमति बन पाएगी.
सच्चाई ये है कि अगर इस कोर्ट कोई फैसला सुना भी दे या फिर सहमति बन भी जाए तो भी भविष्य में कोई जनहित याचिका दाखिल नहीं होगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.
इस मामले पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केहर ने कहा कि यह मामला धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है.
उन्होंने कहा कि अगर दोनों पक्ष आपस में मिलकर बैठकर मामला सुलझा लें तो ज्यादा अच्छा है और जरूरत पड़ी तो न्यायाधीश मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं. कोर्ट की इस राय का सुब्रमण्यम स्वामी ने स्वागत किया है.
लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी कोर्ट के इस फैसले से खुश नहीं है उनका मानना है कि अगर इस मामले में फैसला आया तो वह उन्हीं के पक्ष में होगा. उन्होंने कहा कि समझौता से निकला रास्ता सबको स्वीकार नहीं होगा.
वहीं रामलला की ओर से पेश वकील रंजना अग्निहोत्री ने भी समझौते से इनकार किया है. उनका कहना है कि इसका फैसला कोर्ट या तो कानून बना कर ही किया जा सकता है. आपको बता दें कि बातचीत करने की कोशिश पहले भी की जा चुकी है.
2016 में ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरी ने इस मामले के सबसे पुराने मुद्दई हाशिम अंसारी से मुलाकात कर बातचीत का सुझाव दिया था तो वह भी तैयार हो गए लेकिन इसी बीच अंसारी दुनिया छोड़कर चले गए और मामला बीच में ही रुक गया.
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांटने का फैसला सुनाया था जिसमें एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था लेकिन इससे कोई भी पक्ष सहमत नहीं हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया.
अब सवाल इस बात का है जब दोनों ही पक्ष इस मामले में सीधे कोई फैसला सुनने के लिए तैयार हैं तो कैसे इसको बातचीत के जरिए हल किया जा सकता है. कोर्ट की दिक्कत इस बात की है न तो वह मुस्लिमों के पक्ष में कोई फैसला सुना सकता है और न हिंदुओं के पक्ष में.
क्योंकि दोनों ही मामलों में कोर्ट के ऊपर पक्षपात का आरोप लग सकता है. ऐसे हालात में कोई इस बात की उम्मीद करे कि मामला कोर्ट के बाहर आसानी से सुलझ जाएगा यह सुनने में अच्छा लग सकता है.